एक अनूठी पहल के तहत 1 लाख से अधिक पेड़ों को QR कोड और जियो-टैगिंग से जोड़ा गया
पर्यावरण संरक्षण में अनोखी पहल
पर्यावरण संरक्षण की बढ़ती चिंताओं के बीच, तेलंगाना के आदिलाबाद जिले के मुखरा (K) गांव ने ‘डिजिटल ट्री आधार’ पहल शुरू कर भारत में एक नई मिसाल कायम की है। इस नवाचार के तहत, प्रत्येक पेड़ को एक डिजिटल पहचान दी गई है। यह तकनीक पर्यावरणीय संरक्षण को आधुनिक तकनीक से जोड़कर पेड़ों की व्यवस्थित निगरानी और दीर्घकालिक अस्तित्व सुनिश्चित करेगी।
1 लाख से अधिक पेड़ों को मिली डिजिटल पहचान
मंगलवार को गांव की सरपंच मीनाक्षी ने बारकोड चिपकाने के कार्यक्रम का उद्घाटन किया, जिससे यह पहल औपचारिक रूप से शुरू हुई। इस परियोजना के तहत 1,05,624 पेड़ों को जियो-टैग किया गया और QR कोड प्रदान किया गया।
इस QR कोड को स्कैन करके किसी भी व्यक्ति को पेड़ की संपूर्ण जानकारी प्राप्त होगी, जैसे—उसका स्वास्थ्य, आयु, ऑक्सीजन उत्पादन क्षमता, विकास की गति और सटीक स्थान। यह डेटा केंद्रीकृत डेटाबेस में संग्रहीत किया जाएगा, जिससे रीयल-टाइम मॉनिटरिंग और बेहतर प्रबंधन संभव होगा।
‘डिजिटल ट्री आधार’ क्यों महत्वपूर्ण है?
यह पहल भारत में नागरिकों के लिए लागू आधार कार्ड प्रणाली से प्रेरित है, जहां हर व्यक्ति की विशिष्ट पहचान संख्या होती है। इसी तरह, अब प्रत्येक पेड़ की डिजिटल पहचान होगी।
ग्राम सरपंच मीनाक्षी के अनुसार, “यह परियोजना पेड़ों के दीर्घकालिक संरक्षण को सुनिश्चित करेगी। जैसे लोगों का आधार कार्ड होता है, वैसे ही अब पेड़ों की भी अपनी डिजिटल पहचान होगी।” उन्होंने आगे कहा कि यदि इस तरह की पहल अन्य गांवों और कस्बों में भी अपनाई जाए, तो पेड़ संरक्षण के प्रयासों में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है।
पर्यावरण संरक्षण में डिजिटल तकनीक की भूमिका
पेड़ों को डिजिटल रूप से चिह्नित करने की अवधारणा नई नहीं है, लेकिन मुखरा (K) इस तरह की योजना को पूरी तरह से लागू करने वाला भारत का पहला गांव बन गया है।
इस पहल की तुलना जम्मू-कश्मीर में किए गए हालिया संरक्षण प्रयासों से की जा सकती है, जहां सरकार ने चिनार के पेड़ों की जियो-टैगिंग शुरू की है। शहरीकरण, सड़क विस्तार और बीमारियों के कारण खतरे में आए लगभग 29,000 चिनार के पेड़ों को QR कोड के माध्यम से डिजिटल डेटाबेस में जोड़ा गया है।
यह प्रवृत्ति दर्शाती है कि भारत में पर्यावरण संरक्षण के लिए डिजिटल तकनीक का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। QR कोड के माध्यम से पेड़ों के स्वास्थ्य की निगरानी, वनों की कटाई पर नज़र रखने और बेहतर संरक्षण रणनीतियाँ विकसित करने में मदद मिलेगी।
राष्ट्रीय स्तर पर सराहना और विस्तार की संभावना
मुखरा (K) की इस पहल को राष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिल रही है। प्रमुख पर्यावरणविद् और सार्वजनिक हस्ती संतोष कुमार जे ने इस पहल की प्रशंसा करते हुए कहा, “ग्राम सरपंच गाडगे मीनाक्षी की ‘डिजिटल ट्री आधार’ पहल पर्यावरण संरक्षण के नए रास्ते खोल रही है। प्रत्येक पेड़ को जियो-टैग करके यह प्रयास हमारे प्राकृतिक संसाधनों की बेहतर सुरक्षा और देखभाल सुनिश्चित कर रहा है।”
यह परियोजना अन्य गांवों और शहरों के लिए एक मिसाल बन सकती है, जिससे पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम को अपनाने की प्रेरणा मिलेगी। यह पहल यह भी दर्शाती है कि स्थानीय स्तर पर नेतृत्व किस प्रकार बड़े पैमाने पर पर्यावरणीय परिवर्तन ला सकता है।
भविष्य के लिए एक आदर्श मॉडल
मुखरा (K) ने तकनीक और पर्यावरण संरक्षण के संयोजन के माध्यम से भारत में सतत वृक्ष संरक्षण का एक नया मॉडल प्रस्तुत किया है।
यदि इस पहल को अन्य क्षेत्रों में भी लागू किया जाए, तो यह वनों, शहरी हरित क्षेत्रों और संकटग्रस्त वृक्षों के संरक्षण के लिए एक प्रभावी तरीका बन सकता है।
भारत जहां वृक्षों की कटाई और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से जूझ रहा है, डिजिटल ट्री आधार जैसी पहलें पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण में एक क्रांतिकारी बदलाव ला सकती हैं। यह पहल पेड़ों को भी इंसानों की तरह एक पहचान देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, ताकि वे मान्यता प्राप्त करें, संरक्षित रहें और आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित बनाए जा सकें।
(स्रोत: Indian Express/Reuters/X)
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