वर्तमान युग में जहाँ भारत विश्व शक्ति बनने की ओर तेज़ी से अग्रसर हो रहा है, वहीं दूसरी ओर सामाजिक समस्याएं नित नए तरीके से पैर पसार रही हैं। सामाजिक विसंगतियों और समस्याओं का समाधान निकालने ही होंगे, अन्यथा समाज में विषमताएं बढ़ती ही जाएँगी।
किसी भी देश के लिए आवश्यक है कि मूलभूत सुविधाओं जैसे – शिक्षा, स्वास्थ, आवास, भोजन, सुरक्षा एवं न्याय जैसी आवश्यकताओं की पूरी ज़िम्मेदारी के साथ व्यवस्था की जानी चाहिए।
भारत आज एक युवा देश होने के साथ-साथ विश्व में उभरती हुई एक शक्तिशाली अर्थव्यवस्था है, जहाँ विकास की अपार संभावनाएं इसलिए भी निवास करती हैं क्योंकि 125 करोड़ की आबादी वाले देश में लगभग 65 प्रतिशत हिस्सेदारी युवाओं की है, परन्तु यह स्थिति सदैव रहने वाली नहीं है। कुछ वर्षों पश्चात् हम भी उन वृद्ध देशों में की श्रेणी में आ जायेंगे।
विचारणीय तथ्य ये है कि एक ओर जहाँ देश नित नए अविष्कार कर रहा है। डिजिटल क्रांतियां हो रही हैं वहीं दूसरी ओर न्याय प्रक्रिया के समय से पूरा न हो पाने के कारण लाखों लोग जेलों की सलाखों के पीछे घुटन भरी एकाकी ज़िन्दगी जीने को मजबूर हैं।
इंडियन ज्यूडिसरी वार्षिक रिपोर्ट 2015-16 एवं सबअार्डिनेट कोर्ट आफ इंडियाः ए रिर्पोट दल एक्सेस टू जस्टिस 2016 के अनुसार 2,81,25000 मुक़दमे देश की विभिन्न अदालतों में चल रहे हैं एवं ये अदालतें न्यायधीशों की कमी से जूझ रही हैं। दुखद यह है कि इसका असर उन लोगों पर पड़ रहा है जो न्याय के इंतज़ार में जेलों की काल कोठरियों में रहने को मजबूर हैं।
देश के गृह मंत्रालय के अधीन आने वाला नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो सन् 1995 से प्रिजन स्टेटिस्टिक्स रिपोर्ट तैयार करके साझा कर रही है। प्रिजन स्टेटिस्टिक्स रिपोर्ट 2016 के अनुसार समूचे देश में 1401 विभिन्न प्रकार के कारागार हैं, जहाँ 4196323 क़ैदी बंद हैं। इन बंदियों में 401789 (95.7 प्रतिशत) पुरुष एवं 17834 (4.3 प्रतिशत) महिला बंदी हैं।
इन 1401 जेलों की क्षमता सिर्फ 377781 बंदियों की है अर्थात् लगभग 53000 लोगों के रहने के लिए स्थान न होते हुए भी उनको अमानवीय स्थिति में रहने को मजबूर होना पड़ रहा है। यहाँ तक तो ठीक हैं परन्तु जो सबसे चौकाने वाले आंकड़े हैं वो बताते हैं कि समस्त बंदियों में से सिर्फ 134168 (32 प्रतिशत) लोग ही सज़ायाफ्ता है और 67.2 प्रतिशत यानि 282076 बंदी विचाराधीन है।
एक और आंकड़ा चौकाने वाला है कि चाहे वह सज़ायाफ्ता बंदी हो या विचारधीन दोनों ही स्थितियों में लगभग 70 प्रतिशत बंदी या तो निरक्षर हैं या उनकी शिक्षा 10वें दर्जे तक है।
निष्कर्ष यह निकाला जा सकता है कि असल समस्या अशिक्षा है जिसके अभाव में या तो लोगों को समझ नहीं हैं और वो गलत कार्य कर बैठते हैं या यह कहा जाए कि कुछ लोग उनके अशिक्षित होने का फ़ायदा उठा लेते हैं। कारागार सुधार हेतु कई कदम उठाये जा रहे हैं, परन्तु वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि वह नाकाफी है। मूल सुविधाओं और सुधारों में न्याय प्रक्रिया में तेजी लाने के साथ साथ देश में सर्व शिक्षा के अभियान को पुरजोर तरीके से लागू करने की जरूरत है। कारागारों में जो बंदी अशिक्षित है उन्हें शिक्षित करने की आवश्यकता है और जो शिक्षित है उन्हें पुस्तकों से जोड़ने की।
जेल मैनुअल 2003 एवं 2016 में बंदियों को शिक्षित करने, व्यस्त करने, अपने अधिकारों के बारे में जानने, सकारात्मक सोच पैदा करने एवं कर्तव्य का पालन करने साथ-साथ अनुशासित जीवन जीने के लिए पुस्तकों के प्रचार-प्रसार को बल दिया है एवं राज्य शासन को सुझाव दिए हैं कि वे इस ओर ध्यान दें, परन्तु हकीकत में इन सुझावों को कई प्रशासनिक मजबूरियों से पूर्ण रूप से अमली जामा नहीं पहनाया जा पा रहा है।
इस कार्य को सिर्फ सरकार के हवाले न छोड़कर व्यक्तिगत तौर पर सजग लोगों को, समाजसेवी संस्थाओं को, एनजीओ को भी सामने आना होगा एवं इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी।
रंगनाथन सोसाइटी फॅार सोशल वेलफेयर एंड लाइब्रेरी डेवलपमेंट एक गैर-सरकारी संस्था है एवं ऐसी ही सोच के साथ आगे बढ़ रही है। संस्था देश की विभिन्न कारागारों में वर्ष 2012 से निरंतर बंदी सुधार हेतु विभिन कार्यक्रम, एक अभियान के रूप में चला रही है। संस्था ने अपने कार्यों की शुरुआत देश के सबसे बड़े प्रान्त उत्तरप्रदेश से प्रारम्भ की है। उत्तरप्रदेश की विभिन प्रकार की 67 जेलों में लगभग 90000 बंदी हैं। प्रांतीय स्तर पर भी हालात वही है, जो राष्ट्रीय स्तर पर है। यानि कि लगभग 70 प्रतिशत बंदी विचारधीन हैं, लगभग अशिक्षित है एवं लागभग सभी जेलों में बंदियों की संख्या उनकी क्षमता से कही अधिक है।
इसी सोच को ध्यान में रखते हुए, एक कारगर रणनीति के तहत संस्था ने वर्ष 2012 में जिला कारागार गाज़ियाबाद में एक सुसज्जित पुस्तकालय स्थापित की, जिसमें सामान्य ज्ञान, धार्मिक एवं नामी साहित्यकारों की लगभग 4000 पुस्तकों को संग्रहित किया गया।
उसके अलावा लगभग 400 हिंदी की रुचिकर एवं मनोरंजनदायक फिल्मों की डीवीडी के साथ एक फिल्म लाइब्रेरी की स्थापना की गई। सन 2012 में बंदी संख्या के आधार पर गाज़ियाबाद जिला कारागार उत्तरप्रदेश का सबसे बड़ा कारागार था जिसमें लगभग 4500 बंदी रहते थे।
तदुपरांत, एक वर्ष तक पुस्तकों एवं पुस्तकालय से बंदियों के जीवन एवं कार्यकलापों का अध्ययन किया गया और यह निष्कर्ष निकला कि पुस्तकालय की स्थापना के बाद से बंदियों की सोच एवं आपसी व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन आया है। इस प्रयोग के सकारात्मक परिणामों से उत्साहित हो, संस्था ने यह सुनिश्चित किया कि इस प्रकार के पुस्तकालय देश की हर जेल में खोले जाने चाहिए। इस अभियान को आगे बढ़ाते हुए संस्था ने 2013 में जिला कारागार लखनऊ, 2014 में जिला कारागार गौतम बुद्ध नगर, 2017 में जिला कारागार अलीगढ़, मेरठ एवं आगरा में सुसज्जित पुस्तकालयों की स्थापना की। उत्तरप्रदेश की कुल बंदियों की संख्या में से तकरीबन 15 प्रतिशत (लगभग 13500) इन 6 जेलों में हैं एवं पुस्तकालयों से लाभान्वित हो रहे हैं।
आने वाले कुछ महीनो में संस्था की ओर से जिला कारागार मथुरा, इटावा, फ़िरोज़ाबाद एवं बुलंदशहर में पुस्तकालय स्थापित कर दिए जाएंगे। खास बात यह है कि पुस्तकालय प्रारम्भ करने से पूर्व एक विधिवत प्रक्रिया के तहत उस कारागार के बंदियों एवं प्रशासनिक कर्मियों के साथ एक सर्वेक्षण किया जाता है एवं इनकी रूचि और आवश्यकताओं को जानने का प्रयास होता है।। उसी के अनुसार पुस्तकों का चयन एवं संकलन किया जाता है। इससे पुस्तकालय का उपयोग भरपूर मात्रा में होता है एवं हर वक़्त लगभग 60-70 प्रतिशत पुस्तकें बंदियों के पास पढ़ने हेतु जारी होती हैं।
प्रत्येक कारागार पुस्तकालय पूर्ण रूप से कंप्यूटराइज्ड है एवं पुस्तकों पर बार-कोड लगाए गए हैं। एक पुस्तकालय स्थापित करने पर तकरीबन 5 से 6 लाख रूपए का खर्च आता है जिसमें से अधिकाँश भाग, ग्रेटर नॉएडा स्थित देश के प्रतिष्ठित प्रबंधन संस्थान बिरला इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी (बिमटेक) द्वारा वहन किया जाता है।
संस्था प्रयासरत है कि देश के हर प्रान्त की सभी जेलों में पुस्तकालयों की स्थापना की जा सके, ताकि जो अशिक्षित हैं उन्हें शिक्षित किया जा सके एवं जो शिक्षित हैं उन्हें पुस्तकों से जोड़ा जा सके, ताकि उनके अंदर एक सकारात्मक सोच का विकास हो, समाज की मुख्या धारा से जुड़े एवं राष्ट्र निर्माण में अपनी भागीदारी को सुनिश्चित करे।
(लेखक – डॉ. ऋषि तिवारी, सीईओ- बिमटेक फाउंडेशन हैं। जेलों में पुस्तकालय स्थापित करने के कार्य में लगे हुए हैं।)
लेखक के यह निजी विचार हैं। इंडिया सीएसआर नेटवर्क और उसके संपादक को इस संबंध में सहमत होना आवश्यक नहीं है।
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