सौहार्द और सौहार्द्र दोनों शब्दों का प्रयोग होता है, लेकिन सही शब्द सौहार्द है।
अक्सर लोग “सौहार्द” और “सौहार्द्र” के बीच भ्रमित हो जाते हैं। कई प्रतिष्ठित समाचार पत्र भी कभी “सौहार्द” तो कभी “सौहार्द्र” का उपयोग कर देते हैं, जिससे पाठकों में असमंजस की स्थिति उत्पन्न होती है। सवाल यह है कि इनमें से सही शब्द कौन सा है?
संस्कृत में “सौहार्द” का अर्थ है मित्रता, सद्भावना या हृदय की सरलता। इसका व्याकरणिक और शाब्दिक रूप सही है और यही प्रचलित है। “सौहार्द्र” का उपयोग भाषाई भूलवश हो सकता है, और संस्कृत में इस रूप का प्रयोग नहीं होता है।
इसलिए, सही शब्द सौहार्द ही है।
भाषा विशेषज्ञों की राय
हिंदी और संस्कृत के जानकारों ने स्पष्ट रूप से “सौहार्द” को ही सही शब्द माना है, जबकि “सौहार्द्र” को गलत ठहराया है।
हिंदी के प्रतिष्ठित शब्दकोशों में भी “सौहार्द” का अर्थ मैत्री, मित्रता और सद्भाव के रूप में दर्ज है। उदाहरण के लिए, डॉ. हरदेव बाहरी के शब्दकोश में पृष्ठ संख्या 852 पर “सौहार्द” शब्द का अर्थ “दोस्ती, मैत्री, सद्भाव” के रूप में स्पष्ट किया गया है।
मैंने अन्य दो प्रमुख शब्दकोशों की भी समीक्षा की, जिनमें “सौहार्द” शब्द तो दर्ज है, लेकिन “सौहार्द्र” कहीं नहीं मिलता।
समाचार पत्रों में असावधानी
हाल ही में, 4 सितंबर 2022 के दैनिक भास्कर में “रसरंग” के पृष्ठ पर प्रकाशित एक लघुकथा में “सौहार्द” को गलत रूप में “सौहार्द्र” लिखा गया। इसी प्रकार, “देश-विदेश” पृष्ठ पर नीतीश कुमार के बयान से जुड़ी एक खबर में “सामाजिक सौहार्द” की जगह “सामाजिक सौहार्द्र” का प्रयोग किया गया।
भाषा विशेषज्ञ अजित वडनेरकर का मत
प्रसिद्ध भाषा विशेषज्ञ अजित वडनेरकर का कहना है कि “सौहार्द्र” या “सौहार्द्रता” जैसे शब्द गलत हैं। सही शब्द “सौहार्द” है, जो हार्दिकता और मैत्रीभाव से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि “सौहार्द्र” में जो “आर्द्रता” का भाव जुड़ता है, वह “सौहार्द” में निहित भावनाओं को प्रकट नहीं करता। इसके अलावा, “सौहार्द्र” जैसा कोई शब्द किसी शब्दकोश में नहीं मिलेगा।
भाषा के विकास में अक्सर नए शब्दों का चलन बढ़ जाता है, लेकिन इस मामले में “सौहार्द्र” का प्रयोग भाषा में शुद्धता की कमी और असावधानी का परिणाम है। वडनेरकर के अनुसार, “सौहार्द” की तुलना में “सौहार्द्र” न केवल कठिन उच्चारण है बल्कि इसका प्रयोग भी अनावश्यक है।
विद्वानों द्वारा संपादित आधुनिक संस्कृत कोश, जैसे कि आप्टे संस्कृत-हिंदी शब्दकोश में भी “सौहार्द” का ही उल्लेख मिलता है।
आइए, आपको समझाता हूँः
सौहार्द शब्द का मूल संस्कृत में ‘सुहृद्’ और ‘अण्’ प्रत्यय से है, जिसका शाब्दिक अर्थ “मित्र का पुत्र” होता है। लेकिन इसके व्यापक अर्थ में इसका तात्पर्य मित्रता, सरलता, स्नेह, और सद्भाव से है। संस्कृत साहित्य में ‘सौहार्द’ का उल्लेख मानवता, मित्रता और हृदय की कोमलता को प्रदर्शित करने के लिए किया गया है। इस लेख में सौहार्द की गहन व्याख्या, इसके सांस्कृतिक महत्व, और संस्कृत साहित्य में इसके उपयोगों पर चर्चा की जाएगी।
सौहार्द का शब्दार्थ एवं व्युत्पत्ति
संस्कृत में ‘सुहृद्’ का अर्थ है “मित्र” और “अण्” प्रत्यय का प्रयोग करने से यह “मित्रता” या “स्नेह” के अर्थ में प्रयुक्त होता है। ‘सौहार्द’ का शाब्दिक अर्थ है वह भावना जो सच्चे मित्र के प्रति होती है—प्रेम, विश्वास, और सहयोग का प्रतीक।
सौहार्द: सरलता, स्नेह और सद्भाव
सौहार्द का संबंध सरलता, स्नेह और सद्भाव से है। यह वह गुण है जो व्यक्ति के हृदय की कोमलता और दूसरों के प्रति सौहार्द्रपूर्ण दृष्टिकोण को प्रकट करता है। एक सौहार्दपूर्ण व्यक्ति अपने मित्रों और समाज के प्रति सहजता और सहानुभूति की भावना रखता है। ‘रघुवंश’ में कहा गया है, “विश्राण्य सौहार्दनिधि: सुहृदभ्यः,” जो यह संकेत करता है कि सौहार्द वह निधि है जो मित्रों के प्रति उदारता और प्रेम का भाव रखती है।
साहित्यिक सन्दर्भ
संस्कृत साहित्य में सौहार्द का उल्लेख विभिन्न काव्यों और महाकाव्यों में मिलता है। ‘रघुवंश’ (१४।१५) में सौहार्द को मित्रों के साथ विभाजन करने की क्षमता का प्रतीक बताया गया है। ‘मेघदूत’ (११५) में सौहार्द का प्रयोग यह दिखाने के लिए किया गया है कि कैसे सच्चे मित्र दूसरों के हित में अपना सर्वस्व अर्पण कर देते हैं। कालिदास जैसे कवियों ने सौहार्द को मित्रता और सरलता के प्रतीक के रूप में दर्शाया है।
सौहार्द का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
भारतीय संस्कृति में सौहार्द का अत्यधिक महत्व है। यह समाज के सामूहिक जीवन का अभिन्न अंग है। यह सामाजिक संबंधों को प्रगाढ़ बनाने में सहायक होता है। सौहार्द एक ऐसी भावना है जो केवल व्यक्ति के लाभ तक सीमित नहीं रहती, बल्कि समाज में शांति, प्रेम और सहानुभूति के विस्तार में सहायक होती है।
सौहार्द के जीवन में महत्त्व
सौहार्द एक ऐसी भावना है जो मानवता को एकता और शांति की ओर अग्रसर करती है। यह हमें दूसरों के प्रति समर्पण, आदर, और स्नेह की भावना सिखाती है। एक सौहार्द्रपूर्ण व्यक्ति अपने मित्रों और समाज के प्रति सहजता और सहानुभूति की भावना रखता है, जो जीवन में आनंद और संतोष लाती है।
संस्कृत साहित्य में सौहार्द एक अत्यंत महत्वपूर्ण और बहुआयामी अवधारणा है। यह न केवल स्नेह और मित्रता को दर्शाता है, बल्कि जीवन में स्थायित्व, संतोष, और सामूहिकता को भी बढ़ावा देता है।
(इंडिया सीएसआर)