दिल्ली: फोर्टिस हैल्थकेयर ने लोगों की जीवनरक्षा करने और उनके जीवन को समृद्ध बनाए रखने के अपने लक्ष्य को जारी रखते हुए कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं जिसके चलते थैलेसीमिया से ग्रस्त कमज़ोर आर्थिक वर्ग के बच्चों का उपचार किया जाएगा। कोल इंडिया की सीएसआर पहल ‘थैलेसीमिया बाल सेवा योजना’ के तहत्, इस समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर 28 जुलाई को फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम में श्रीमती रेनू चतुर्वेदी, जनरल मैनेजर (सीएसआर), कोल इंडिया, श्रीमती शोभा तुली, सचिव (थैलेसमिक्स इंडिया), श्री अनिल विनायक, ग्रुप सीओओ, फोर्टिस हैल्थकेयर, डॉ राहुल भार्गव, प्रिंसीपल डायरेक्टर – हेमेटोलॉजी एंड बोन मैरो ट्रांसप्लांट, फोर्टिस गुरुग्राम समेत फोर्टिस के अन्य वरिष्ठ अधिकारीगणों की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए गए। कोल इंडिया ने कम सुविधाप्राप्त वर्ग के थैलेसीमिया ग्रस्त बच्चों के उपचार के लिए 2017 में ‘थैलेसीमिया बाल सेवा योजना’ लॉन्च की थी। आगे चलकर 2020 में, अप्लास्टिक एनीमिया को भी इस प्रोग्राम से जोड़ा गया।
इस समझौते के मुताबिक, कोल इंडिया लिमिटेड द्वारा पात्र मरीज़ों के बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए 10 लाख की वित्तीय मदद दी जाएगी और उनका उपचार फोर्टिस अस्पताल, गुरुग्राम में किया जा सकता है। फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट देश में सबसे बड़े और सबसे व्यापक बीएमटी सेंटर्स में से है जिसके पास करीब 20 ऐसे डॉक्टरों की अनुभवी टीम है जो सभी तरह के रक्त विकारों (ब्लड डिसॉर्डर) का इलाज करने तथा जटिल बोन मैरो ट्रांसप्लांट करने में भी सक्षम हैं। गुड़गांव स्थित बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) सेंटर में 26 बिस्तरों वाले बीएमटी आईसीयू की सुविधा है और यहां अब तक 1500 से अधिक बोन मैरो ट्रांसप्लांट किए जा चुके हैं जिनमें 250+ हैप्लॉइडेंटिकल बीएमटी, 100+ सिकल सैल एनीमिया बीएमटी, 100+ थैलेसीमिया बीएमटी तथा 75+ मल्टीपल स्कलेरॉसिस बीएमटी शामिल हैं।
श्री अनिल विनायक, ग्रुप सीओओ, फोर्टिस हैल्थकेयर ने कहा, ”भारत को दुनिया की थैलेसीमिया राजधानी का दर्जा हासिल है, यहां करीब 42 मिलियन थैलेसीमिया कैरियर्स और लगभग 100,000 मरीज़ β थैलेसीमिया सिंड्रोम से ग्रस्त हैं। इसलिए, इस रोग का बोझ कम करने की दिशा में कोशिश करना तथा सही उपचार करना जरूरी है। फोर्टिस हैल्थकेयर थैलेसीमिया ग्रस्त मरीज़ों का इलाज करने की दिशा में काफी प्रयास कर रहा है, और यहां तक कि ग्रामीण इलाकों में भी सक्रिय है और अब कोल इंडिया लिमिटेड के साथ इस गठबंधन के परिणामस्वरूप, आर्थिक रूप से कमजोर तबके के कई मरीज़ों को लाभ पहुंचेगा, जिससे निश्चित ही इस रोग का बोझ घटेगा।”
श्री विनय रंजन, डायरेक्टर (पी एंड आईआर), कोल इंडिया लिमिटेड ने कहा, ”थैलेसीमिया और अप्लास्टिक एनीमिया के मरीज़ों के सामने पेश आने वाली चुनौतियों के मद्देनज़र, कोल इंडिया लिमिटेड ने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के तत्वाधान में, इन दो रोगों से ग्रस्त बच्चों के इलाज में मदद देने के लिए एक सीएसआर पहल की है। हम इस पहल के तहत् फोर्टिस हैल्थकेयर के साथ गठबंधन करते हुए खुशी महसूस कर रहे हैं क्योंकि देश में उपलब्ध सबसे बड़े बीएमटी सेंटर्स में से एक प्रमुख सेंटर फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट में है। अपने अनुभवी डॉक्टरों की टीम के सहयोग से यह अस्पताल किसी भी तरह के रक्त विकार (ब्लड डिसॉर्डर) का उपचार करने और जटिल बोन मैरो ट्रांसप्लांट्स करने में सक्षम है। कोल इंडिया लिमिटेड ऐसा पहला पीएसयू (सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम) है जिसने थैलेसीमिया के इलाज के लिए 2017 में इस सीएसआर प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी। इसक तहत्, 30 अप्रैल 2023 तक 356 सफल ट्रांसप्लांट किए जा चुके हैं। अप्लास्टिक एनीमिया मरीज़ों को भी इस योजना के दायरे में शामिल किया गया है।”
थैलेसीमिया आनुवांशिकी से प्राप्त होने वाला रक्त विकार है जिसके कारण शरीर में सामान्य से कम हिमोग्लोबिन होता है। यह एक दुर्लभ किस्म का रोग है जिसके लिए प्रभावित व्यक्ति को आजीवन ब्लड ट्रांसफ्यूज़न करवाने की जरूरत होती है, और समय-समय पर अन्य कई मंहगी उपचार प्रक्रियाओं की भी जरूरत पड़ती है। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में हर साल 10,000 से अधिक थैलेसीमिक बच्चे जन्म लेते हैं। दुनियाभर में थैलैसीमिया मेजर बच्चों की सबसे बड़ी आबादी भारत में है, यहां करीब 1.5 लाख व्यक्ति इससे प्रभावित हैं। थैलेसीमिया इंटरनेशनल फेडरेशन के अनुमान के मुताबिक, उपचार के अभाव में, भारत में थैलेसीमिया ग्रस्त मरीज़ों की संख्या 2026 तक 2,75,000 तक पहुंचने की संभावना है। उधर, अप्लास्टिक एनीमिया ऐसी मेडिकल कंडीशन है जिसमें शरीर पर्याप्त मात्रा में नई रक्तकोशिकाओं का निर्माण नहीं कर पाता। देश में हर साल लगभग 9,400 लोगों में इस रोग की पुष्टि होती है। ये दोनों रोग प्रभावित परिवारों पर भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और आर्थिक रूप से बोझ बढ़ाते हैं, खासतौर से ग्रामीण और गरीब पृष्ठभूमि से आने वाले मरीज़ों के परिवारों पर यह बोझ अधिक होता है, और हैल्थकेयर सेवाओं पर भी दबाव बढ़ता है। इन रोगों का स्थायी उपचार स्टैम सैल ट्रांसप्लांट है जिसे बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) भी कहते हैं। उल्लेखनीय है कि यह उपचार उस स्थिति में अधिक सफल पाया गया है जब बीएमटी कम उम्र में किया जाए।