गांधी के ग्रामीण विकास दर्शन पर चरखा डायलाग 11 अक्टूबर 2019 को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आयोजित किया जा रहा है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में खादी, खाद, खेती के माध्यम से खुशहाली परिचर्चा के मुख्य विषय हैं।
रूसेन कुमार द्वारा
महान भारत के नवनिर्माण में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ‘बापूजी’ के महानतम योगदान और दूरदर्शी विचारों का पुण्य स्मरण करते हुए कृतज्ञ राष्ट्र उनकी 150वीं जयंती मना रहा है। नागरिकों और संगठनों का कर्तव्य है कि आधुनिक भारत की नीव रखने में अग्रणी योगदान देने वाले गांधीजी के गुणों का स्मरण करें तथा देश हित के उनके विचारों का विस्तार करे तथा सुझाए गए चले। चरखा संवाद का आयोजन इसी उद्देश्य की पूर्ति करने के लिए है। इस महत्वपूर्ण आयोजन विषयों में राष्ट्र हित के उपयोगी बातों को ही प्राथमिकता दी गई है। गांवों में खादी, खाद, भूमि एवं पर्यावरण संरक्षण, भारतीय कृषि पद्धति को बढ़ावा देकर किस तरह से लोगों के जीवन में खुशहाली लाई जा सकती है, यही सब इस परिचर्चा के केंद्र बिन्दु हैं। ग्रामीण युवाओं के मध्य व्याप्त बेकारी को घटाना, राष्ट्रीय उत्पादन बढ़ाना, घरेलू मांग में वृद्धि करना, ऐसी व्यवस्था पैदा करना जिससे की लोगों की क्रयशक्ति बढ़े, गांवों की प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण हो और आर्थिक रूप से स्वावलंबी हो, चरखा संवाद के विषय वस्तु हैं।
राष्ट्र में आज सभी ओर सामाजिक प्रगति का वातावरण है। नागरिकों में व्यक्तिगत एवं सामूहिक विकास की भावना बलवती हुई है तथा इसको लेकर तीव्रता से जागरुकता बढ़ रही है। लोग अब ज्यादा मुखरता से स्वयं के साथ-साथ सबकी प्रगति की भावना से ओतप्रोत हो रहे हैं। सरकारें एक ओर उच्च ढंग से विकास की योजनाओं को लागू करने में लगी हुई हैं, वहीं दूसरी ओर सामाजिक संगठन और कारपोरेट जगत अपने कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के माध्यम से भी अपनी भागीदारी को तत्परता से निभाने के लिए आगे आते हुए दिखाई पड़ते हैं। बापूजी कहते थे कि भारत की आत्मा गाँवों में बसती है, अतः गाँवों की प्रगति ही राष्ट्र की सच्ची प्रगति है। गाँवों की संरचना निवासरत लोगों एवं जीविकोपार्जन के लिए उपलब्ध प्राकृतिक एवं सामाजिक संसाधनों के मेलजोल से ही निर्मित होती है। आधुनिक भारत के गाँव पहले की तुलना में ज्यादा समृद्ध और साधन संपन्न दिखाई पड़ते हैं। गाँवों तक उच्चकोटि की सड़कों का जाल पहुंच चुका है।
व्यापकता, विविधता, समृद्धि और खुशहाली उनके सपनों के भारत की परिकल्पना के आधार स्तंभ हैं। खुशहाल ग्रामीण विकास के लिए बापूजी जिन आधारभूत बातों को अत्यावश्यक मानते थे, उनमें ग्राम स्वराज, पंचायती राज व्यवस्था, कुटिर उद्योग, उन्नत कृषि पद्धति, देशी खाद का अधिकाधिक उपयोग, मृदा संरक्षण, सूती व खादी वस्त्रों का उपयोग, स्वच्छता, पशुधन विकास, पर्यावरण संरक्षण, आरोग्य, समन्वय और लोगों के मध्य परस्पर सौहार्द्र आदि प्रमुख हैं।
बापूजी के खुशहाल भारत की परिकल्पना में उनके विचारों और चिन्तन को रेखांकित करने हेतु देश की राजधानी में राष्ट्रीय संगोष्ठी चरखा संवाद का आयोजित होना अभिनव और आवश्यक कार्य है। इस सभा में अधिक से अधिक नवीन विचारों का समावेश हो, इसके लिए विविध विचारधाराओं वाले विद्वानों को आमंत्रित किया गया है, जिससे कि विषयों की व्यापकता और गंभीरता को ठीक-ठीक समझकर कोई हल खोजने की पहल की जा सके।
चरखा संवाद का परम उद्देश्य समोन्नत ग्राम विकास में सरकार, समाज, सामाजिक संगठनों, व्यापारिक संगठनों तथा नागरिकों से अधिकाधिक सहयोग और यथोचित पहल करने का आव्हान करना है। संवाद के उद्देश्यों में स्वदेश में निर्मित उत्पादों की मांग एवं आर्पिूत को गति प्रदान करने हेतु नवीनतम पहल करने को बढ़ावा देना भी है।
इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में राजनैतिक विचारकों, अतिप्रभावशाली व्यक्तित्वों, गाँधीवादी विचारकों, अग्रणी उद्योगपतिओं, विद्वान विषय विशेषज्ञों और नीति निर्धारकों को बापूजी के जीवनदर्शन, ग्रामीण विकास, खेती, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और ग्रामोद्योग से खुशहाली लाने हेतु अपने नवाचार, विचार और चिन्तन व्यक्त करने हेतु आमंत्रित किया गया है।
चरखा संवाद को प्रभावी एवं सफल बनाने हेतु राजनीतिक हस्तियों, राजनेताओं, सामाजिक संगठनों, राष्ट्रीय – अंतराष्ट्रीय एजेंसियों, मीडिया जगत, सार्वजनिक क्षेत्र एवं निजी क्षेत्र की कंपनियों, औद्योगिक घरानों, व्यापारिक संगठनों तथा नागरिकों ने अधिकाधिक मार्गदर्शन, सहयोग, साझेदारी व भागीदारी करके इस आयोजन को एक विशिष्ट आयोजन का दर्जा प्रदान करने में विशेष योगदान दिया है।
इस परिचर्चा के आयोजन को लेकर हमारा दृढ़ विश्वास है कि चर्चा-परिचर्चा के माध्यम से ही जटिलतम समस्याओं का निदान खोजा जा सकता है।
गांधी ने सर्वोदय समाज और ग्राम स्वराज्य का उल्लेख किया है। सर्वोदय गांधी की कल्पनाओं का समाज था, जिसके केन्द्र में हमारी ग्राम व्यवस्था थी। ग्राम व्यवस्था को उन्नत बनाने से ही हमारी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को संबल मिलेगा। हमारे सामने आज विज्ञान तथा वैज्ञानिक विचारधाराओं को भी ग्रामों तक पहुंचाने का उत्तदायित्व है।
आधुनिक भारत को ऐसी सामाजिक ढांचा विकसित करना है जो सबके योगदान से निर्मित हो, जिससे कि सर्व शक्ति का उदय हो और सभी सर्व हित के कार्य करें। दूरस्थ गांवों में रहने वाले व्यक्ति ही समाज का अंतिम व्यक्ति हैं। ग्रामीण संसाधनों का संरक्षण करके ही हम अपने गांवों को समृद्धशाली और लोगों को खुशहाल बना पाएंगे।
गांवों में कुटिर उद्योग की स्थिति उन्नत स्तर पर नहीं पहुंच पाई है। अपने सपनों के भारत में गांव के विकास को प्रमुखता प्रदान करके उससे देश की उन्नति निर्धारित होने की बात गांधी जी कही थी। गांधीजी ने नवीन भारत की परिकल्पना में व्यापक दृष्टि का परिचय देते हुए ग्रामीण विकास की मूलभूत आवश्यकताओं की प्रतिपूर्ति करके ग्रामों में स्वराज्य लाकर, समग्र विकास के माध्यम से स्वावलंबी व सशक्त समाज एवं राष्ट्र के निर्माण का मार्ग सुझाया था।
खादी, खाद, खेती को विकसित करके हम बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर गांवों में ही पैदा कर सकते हैं। देश के भीतर एवं बाहर दोनों ही जगहों पर खादी की मांग तेजी से बढ़ रही है। खादी से बने वस्त्रों की मांग बढ़ाकर बड़े पैमाने पर युवाओं को श्रम के साधन देकर रोजगार के अवसर मुहैया कराया जा सकता है। खेती में प्रयुक्त हो रहे रसायनयुक्त खादों से हमारी मिट्टी की ऊवर्रता प्रभावित हो रही है। मिट्टी की गुणवत्ता को पुनः वापस प्राने के लिए हमें विशेष जागरुकता अभियान चलाकर कृषि पद्धि में आमूलचूल परिवर्तन करना होगा, जिसमें प्राकृतिक व देशी खाद का महत्वपूर्ण योगदान होगा। भारत की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर रहती है। बहुसंख्य लोगों का जीवनयापन कृषि तथा कृषि से जुड़े कार्यों और उद्योगधंधों पर ही अवलंबित है। सरकार की तथाकथित कल्याणकारी योजनाओं से ग्रामीणजनों में अकर्मण्यता स्वभाव विकसित हो रहा है। वे लोग तेजी से कृषि से विमुख हो रहे हैं। संसाधनों की अधिकता होने के बाद भी कृषि के प्रति लगाव कम होता जा रहा है। कृषि के द्वारा ही हम प्राकृतिक पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों का उत्पादन कर पाते हैं। खेती की ओर पर्याप्त रूप से ध्यान देने से ही देश में व्याप्त कुपोषण की समस्या से निजात पाया जा सकता है।
निःसंदेह ही, गांधीजी के सपनों के भारत के निर्माण में नागरिकों की भागीदारी निर्णायक भूमिका निभाएगी। नागरिकों की भागीदारी ही राष्ट्र के विकास और लोगों के भाग्य की दशा एवं दिशा निर्धारित करती है। गांधीजी के सपनों का भारत बनाने में गांधी दर्शन पर सतत् चिन्तन करे की आवश्यकता है। आइए, हम सब अपने महान राष्ट्र के प्रति अपनी नैतिक जिम्मेदारियों को समझें और अपने विषय क्षेत्रों मे अग्रणी रहकर अधिकाधिक योगदान देने का उद्यम करें।
(रूसेन कुमार, चरखा संवाद के संस्थापक हैं और 11 अक्टूबर 2019 को नई दिल्ली में आयोजित चरखा संवाद (डायलाग) के सह संयोजक हैं। वे कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) की अग्रणी संस्था इंडिया सीएसआर नेटवर्क के संस्थापक हैं। युवा उद्यमी और चिन्तक के रूप में उनकी पहचान है। भारत में कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व के दर्शन के बढ़ावा देने में उनका विशिष्ट योगदान है। एक दशक से इस क्षेत्र में उत्कृष्ठता लाने में योगदान दे रहे हैं।