वैसे तो परिवर्तन संसार का सबसे बडा नियम है। सुबह होती है, शाम होती है, रात्रि आती है, पुनः सवेरा आता है, लेकिन तकनीक ने इस परिवर्तन की रफ्तार को और तेज कर दिया है, उससे भी ज्यादा कोविड-19 ने। कोविड-19 ने परिवर्तन की गति बढ़ाने के अलावा अनिश्चितता को और जन्म दिया है। अगर अर्थवव्यस्था को लें तो दो ही सैैक्टर हैं, जो प्रभावित नही हो रहे हैं, वो हैं, कृषि तथा फार्मा कम्पनियाॅ। कृषि में तो उलट वार्षिक वृद्धि दर में बढ़ोत्तरी हुई है। अनिश्चितता इतनी है कि मानव को देंखे तो आज वह स्वस्थ है, जरा भी सतर्कता घटी वह कोरोना बीमारी से ग्रसित होकर, जीवन से जीने के संघर्ष की स्थिति में आ जाता है।
करीब 158 दिन बाद अगर हम कोरोना काल का सिंहावलोकन करें तो पाएंगे कि जहाँ पुराने व बडे प्रजातंत्र हैं, वहां कोरोना का ग्राफ बढ़ा है। इस समय सबसे ज्यादा केसों की संख्या देंखें तो अमेरिका प्रथम स्थान पर है। अमेरिका एक पुराना प्रजातंत्र है। दूसरे स्थान पर ब्राजील है, वह आबादी के हिसाब से दुनिया का छठा प्रजातांत्रिक के देश हैं। तीसरे स्थान पर भारत है, जो दुनिया का सबसे बडा लोकतंत्र है।
अमेरिका व ब्राजील में स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा भारत से ज्यादा बेहतरीन एवं मजबूत है, लेकिन अगर तीनों देशों की तुलना करें तो भारत की केस लोड का ग्राफ ज्यादा खतरनाक है, क्योकिं ग्राफ शुरू से ही कभी फ्लैट होने की बजाय उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा है। अगर यही हालात रहे तो भारत का केस लोड आने वाले समय में दोनों देशों को पछाड़कर प्रथम स्थान पर आ सकता है। जब तक या तो यह प्रक्रिया उलट नहीं होती है, या कोई कोरोना वैक्सीन का ईजाद नहीं होता है।
भारत में रोजाना औसतन 66 हजार मरीज मिलने लगे हैं, वो दुनिया में अब सबसे ज्यादा रोजाना का औसत है। हमारे देश में 16 जुलाई के बाद आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, उत्तरप्रदेश, वेस्ट बंगाल एवं बिहार से करीब 42 प्रतिशत केस आये हैं।
अभी भी महाराष्ट्र देश के 23 प्रतिशत मरीजों के साथ देश में प्रथम स्थान पर है। तमिलनाडु जो दूसरे स्थान पर था वह आन्ध्रप्रदेश के दूसरे स्थान पर आने की वजह से अब तीसरे स्थान पर आ गया है। अतः इन सात राज्यों, महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश, तमिलनाड़ू, कर्नाटक, उत्तरप्रदेश, वेस्ट बंगाल एवं बिहार में 76 प्रतिशत मरीज हैं। हमारे देश में अभी तक करीब 50 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं एवं दुनिया के 27 प्रतिशत मरीज मिलने लगे हैं।
इसके साथ ही दुनिया की 20 प्रतिशत मौतें भारत में होने लगी हैं। संतोष की सिर्फ बात यह है कि वास्तविक मृत्युदर 2.8 प्रतिशत है जो विकसित देंशो से काफी कम है। कोरोना के खिलाफ लड़ाई में राज्यों की बात करें तो केरल ने शुरू से ही कोरोना को काबू करने की लडाई सबसे प्रभावी ढंग से लडी है एवं दूसरा राज्य इस समय दिल्ली उभर कर आया है। इन राज्यों से हमें सीख लेने की जरूरत है।
यह कौन-सी सीख हैं जिससे हम जीवन एवं जीविका दोनों को बचा सकते हैं।
इसके लिये सूची फार्मूला निम्न हैः
1. जीवन
ज्यादा से ज्यादा कोरोना की टैस्टिंग
इससे संक्रमित व्यक्ति की जल्दी पहचान होगी और लोग संक्रमित नहीं होंगे, क्योकि उस रोगी का अलग रखकर उपचार होगा। चल टैस्टिंग इसमें सबसे प्रभावी हो सकती है। आक्सी मीटर तथा थर्मल जाँच से भी रोगी की प्रारभिंक पहचान आसान हो जाती है।
कान्टेक्ट ट्रैसिंग
जो भी लोग कोरोना मरीज के सम्पर्क में आये हैं उनकी ट्रैसिंग करना एवं अनुमान के अनुसार एक रोगी करीब 47 लोगों को संक्रमित कर सकता है। अतः इस पर ध्यान देना बहुत आवश्यक है।
ट्रीटमेंट (उपचार)
यह उपचार प्रभावी तथा असरदार होना चाहिये। यहां पर हम भूल रहे हैं कि आयुर्वेद ने इस दौरान वैसा काम किया है जैसा कि कामगारों के पलायन के समय समाज ने भोजन देकर किया था। समय आ गया है आयुर्वेद को उसका यथोचित सम्मान देने का।
रिकवरी रेट को बढ़ाना
जिन देशों में रिकवरी रेट ज्यादा है, वहां कोरोना को रोकने में कामयाबी मिली है। चीन 94 प्रतिशत, दक्षिण कोरिया 93 प्रतिशत, जर्मनी 91 प्रतिशत इत्यादि। अतः रिकवरी रेट 70 प्रतिशत से ऊपर होनी चाहिये।
चार सुनहरे नियम अगर इन नियमों का पालन होता है तो फ्लैट कर्व जल्दी आ जायेगा। मास्क पहनना, दो गज की तन-दूरी तथा हैण्ड हाइजिन का पालन करना एवं पौष्टिक भोजन खाना। स्वयं सहायता समूह इस काम को बखूबी कर सकते हैं। इसका व्यापक जागृति अभियान चलाने की जरूरत है जब तक यह हमारी आदत न बन जाये। संस्थागत क्वारंटाइन करना स्कूलों तथा काॅलेजों व अच्छे इन्डोर स्टैडियम को संस्थागत क्वारंटाइन सेंटर में बदलना।
धारावी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां 2.1 वर्ग किमी. में 10 लाख लोग रहतें है, वहां पर संस्थागत क्वारंटाइन के तहत कन्ट्रोल किया गया है। मुम्बई ने बिगड़े हालातों में इसी से काबू पाया है। कन्टेनमेन्ट यह बहुत सख्ती से होनी चाहिये, हाॅट स्पाॅट की पहचान, वहीं पर भयंकर सख्ती। सारे जगह में लोकडाउन की कोई जरूरत नही है। इससे जीविका बची रहेगी। संक्रमण बढ़ेगा नहीं। एनफोर्समेन्ट एनफोर्समेन्ट इसको काबू करने का बहुत बड़ा हथियार है, अतः इसके कभी-कभी भयकंर सख्त होने की भी जरूरत है।
शुरू का भीलवाडा माॅडल हमारे सामने है। हम यहाँ से सीख ले सकते हैं। फ्रन्टलाइन वर्कस की ट्रेनिंग इन फ्रन्ट लाइन वर्कस को आन लाइन ट्रेनिंग दी जानी चाहिये, अच्छी प्रेक्टिसों को बताना चाहिये। इससे इन कोरोना वारियर्स का मनोबल भी बना रहेगा तथा नवीनतम जानकारी भी मिलेगी। समाज की भागीदारी जिला स्तर पर एक कमेटी का निर्माण करना, जिसमें समाज, स्वयंसेवी संस्थाऐं तथा सरकार के नुमाइंदे हों।
उन सबका रोल डिविजन तथा वह अपनी-अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करें। अगर कोरोना सेन्टरों पर किन-किन चीजों की कमी है, यह कमेटी उन केन्द्रों को आदर्श बना सकती है तथा जिला प्रशासन उनके सुझावों पर अमल कर सकता है। संवेदनशीलता यह पहलू बहुत ही महत्वपूर्ण है। कोरोना मरीजों के साथ हर स्तर पर सहानभूति, प्रेम तथा संवेदनशीलता दिखाने की जरूरत है। उनको कभी यह नहीं लगना चाहिये कि अस्पताल में तथा समाज उनके प्रति सकारात्मक सोच नहीं रखता है बल्कि उनकी मदद करने को सदैव तत्पर है।
2. जीविका
ऊपर हमने जीवन की बात की है, अगर जीविका पर ध्यान नहीं दिया गया तो, लोग कोरोना से ज्यादा जीविका नहीं होने से मौत के शिकार हो जायेगें। अवसाद में चले जाएंगे, आत्महत्या का सिलसिला चालू हो जायेगा जिसकी शुरूआत कहीं-कहीं तो हो भी चुकी है। सबसे बड़ा सवाल है कि इस समय जीविका कैसी हो। जैसा कि मैंने ऊपर कहा है, कृषि ने काफी हद तक अर्थव्यवस्था को स्थायित्व प्रदान किया है।
अतः सबसे पहले कृषि व डेयरी आधारित कुटीर उद्योगों पर ध्यान देना होगा एवं मूल्य संवर्द्धन पर कार्य करना होगा। सबसे पहले बात डेयरी कुटीर उद्योगों की है, लुपिन संस्था ने, देश में जहां भी कुटीर उद्योगों की मशीन तथा तकनीक पर काम हो रहा है, उन शहरों को चिन्ह्ति किया है, उनमें कोल्हापुर से डेयरी तथा ढाबे के लिए, पुणे तथा भोपाल से दालों तथा अन्य खाद्य सामाग्री के लिए राजकोट, जयपुर, आगरा, फरीदाबाद तथा लुधियाना जैसे शहरों से विभिन्न मशीनें मंगवाकर सरकारी योजना में लुपिन, तथा उद्यमियों की भागीदारी से यह मशीनें लगवायी जाएंगी।
गांधीजी का कथन ”ज्यादा उत्पादन नहीं, बल्कि ज्यादा लोगों के द्वारा उत्पादन के कथन पर ध्यान रखकर कार्य किया जायेगा जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार मिल सके“।
संस्था ने इससे पहले मधुमक्खी पालन, मछली पालन, मुर्गी पालन तथा तुलसीमाला के निर्माण में हजारों लोगों को रोजगार दिया है। वह जिले के लिए एक वरदान साबित हुआ है। उसी को आगे बढाते हुए, आत्मनिर्भर भारत का सपना संजोये हुए तेजी से प्रभावी निर्णय हमें लेने होंगे।
लगातार तेजी से परिवर्तन एवं अनिश्चितता में हमें सतर्क, सजग, संवेदनशील एवं नवाचारों के साथ अगर त्वरित निर्णय लियेे तो हम इस आपदा को एक बडे अवसर के रूप में बदल सकते हैं। देश जब दो साल के बाद अपनी आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा होगा तो एक नये भारत का उदय होगा, बशर्त इन दो सालों में नये राष्ट्र के निर्माण में हम सभी नई इच्छा, शान्ति तथा राष्ट्र के पुनर्रूत्थान लिये एकसाथ काम करें।
आज फिर से एक आव्हान है, यह नया आव्हान हर मनुष्य के विकास और उनके उद्धार के लिए याद रहे।
कोई भी कोशिश कभी नाकाम नहीं हो सकती।
मंजिल अगर ना भी मिली, तो फाँसले घट जायेगें।।