नई दिल्ली। दिग्गज सूचना प्रौद्योगिकी कंपनी इन्फोसिस टेक्नोलॉजिज के संस्थापक एन आर नारायणमूर्ति आखिर क्यों हैं सीएसआर पर 10 फीसदी खर्च के पक्ष में, यह बहुत ही विचरणीय प्रश्न है। उनका ऐसा मानना है कि कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व (सीएसआर) के मद में अनिवार्य 2 फीसदी से बढ़कर अतिरिक्त और 8 फीसदी आवंटित किया जाना चाहिए, जिससे कि वैज्ञानिक एवं शोध गतिविधियों में निजी क्षेत्र का योगदान को बढ़ाया जा सके।
नारायणमूर्ति द्वारा विगत 10 जनवरी, बुधवार को बेंगलूरु में बिज़नेस स्टैंडर्ड के साथ एक पैनल परिचर्चा में शिरकत करते हुए बड़ी कंपनियों द्वारा सीएसआर अंशदान बढ़ाने का अनुरोध किया गया था। इसके बाद गोदरेज समूह के चैयरमैन आदि गोदरेज ने इस बात पर ऐतराज जताते हुए कहा था कि सीएसआर पर अधिक राशि खर्च करने का अवसर कंपनी की आय पर होगा।
वोकहार्ट लिमिटेड के डायरेक्टर और वोकहार्ट फाउंडेशन के ट्रस्टी एवं सीईओ डा. हुजैफा खोराकीवाला कंपनियों द्वारा सामाजिक कार्यक्रमों में वर्तमान में किए जा रहे लाभ के 2 फीसदी राशि को बहुत कम बताते हुए था यह सामाजिक विकास के लिए यह बहुत ही छोटी राशि है और इसे बढ़ाकर 10 फीसदी तक बढ़ा दिया जाए तो बहुत अच्छा होगा।
यह बहुत ही सही बात है कि भारत सैकड़ों वर्षों से विभिन्न सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों से जूझता रहा है और इन समस्याओं और विषमताओं से ऊपर आने में कारपोरेट जगत को आगे बढ़कर ज्यादा से ज्यादा योगदान देकर सामाजिक समरसता और समानता लाने में योगदान देने की जरूरत है।
नारायणमूर्ति का कहना था कि फिलहाल कंपनियों के लिए अपने लाभ का दो फीसदी हिस्सा ही सीएसआर के मद में देना जरूरी है लेकिन सौ बड़ी कंपनियों के मुख्य कार्याधिकारियों के साथ मिल-बैठकर अंशदान बढ़ाने की बात रखना के लिए पहल करने के लिए तैयार हैं।
उनका स्पष्ट तौर पर कहना है कि इन कंपनियों को अलग से अनुसंधान कार्यों के लिए दो फीसदी, सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए दो फीसदी, गरीब बच्चों के पोषण के लिए दो फीसदी और प्राथमिक शिक्षा के लिए दो फीसदी अंशदान करना चाहिए।
नारायणमूर्ति ने कहा कि अगर बड़ी कंपनियां अपने लाभ का 10 फीसदी हिस्सा शोध एवं सामाजिक कार्यों के लिए देती हैं तो एक बेहतर समाज निर्माण में बहुत ही कारगर साबित होगा।
नारायणमूर्ति से जब भारतीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अनुसंधान में निजी क्षेत्र की भूमिका बढ़ाने के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि,एक गरीब देश में धनवान होना कोई बहुत खुशनुमा अहसास नहीं है। यह थोड़ा विचित्र लग सकता है लेकिन मेरा मानना है कि हमें एक समाज के तौर पर इस तरह की चर्चाएं करनी चाहिए।
नारायणमूर्ति ने कहा कि अधिक लोगों को कर दायरे में लाने से भी सरकार को शोध एवं विकास कार्यों पर खर्च करने के लिए अतिरिक्त राशि मिल पाएगी।
उनका कहना है, ‘किसी यूनिवर्सिटी के लिए फंड जुटाने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि नारायणमूर्ति, रतन टाटा और क्रिस गोपालकृष्णन जैसे निजी निवेशकों का भरोसा हासिल किया जाए। ये लोग जब किसी संस्थान को फंड देते हैं तो उनमें यह भरोसा होना जरूरी है कि वह गुणवत्तापरक संस्थान है, वहां का प्रबंधन कुशल है और उच्च दृष्टिकोण रखता है। ‘