हमारी सरकारों को नागरिक को संविधान प्रदान करना चाहिए, ताकि हर कोई अपने दृष्टिकोण और व्यवहार को तदनुसार संरेखित कर सके। भारतीयों ने अपने संविधान के बारे में केवल सुना है कि उनके देश में एक संविधान है। संविधान को देखा और पढ़ा नहीं है, यह कहना है उद्यमी एवं सामाजिक कार्यकर्ता रुसेन कुमार का।
यह एक ज्वलंत प्रश्न है कि लोग संविधान से वंचित क्यों हैं? लोकतांत्रिक देश में संविधान की प्रति उपलब्ध होना प्रत्येक नागरिक की एक मूलभूत आवश्यकता है। संविधान को पढ़ना हर व्यक्ति का उत्तरदायित्व और अधिकार है। अपने नागरिकों को संविधान उपलब्ध करना सरकार की महति जिम्मेदारी है।
रुसेन कुमार ने कहा कि लोकतंत्र की उन्नति के लिए सरकारी कर्मचारियों और जन प्रतिनिधियों को संविधान के बारे में गहन जानकारी ग्रहण करके गहरी समझ विकसित करनी होगी तथा यह कार्य सतत रूप से होता रहे, इसके लिए सक्षम व्यवस्था विकसित करनी होगी। वर्तमान में जनप्रतिनिधियों और सरकारी कर्मचारियों को संविधान की प्रतियाँ उपलब्ध नहीं हैं। आम जनता को संविधान की नवीनतम प्रतियाँ मिलना अत्यंत ही दुष्कर है। कितनी हास्यास्पद बात है कि सरकारी संस्थानों में भी संविधान की प्रतियाँ उपलब्ध नहीं हैं।
संविधान की नवीनतम प्रतियाँ सभी सार्वजनिक स्थानों जैसे – पंचायत, पटवारी कार्यालय, थाने, तहसील कार्यलय, न्यायालय परिसर, कलेक्टोरेट परिसर, सभी सरकारी कार्यालयों के प्रतीक्षा कक्ष में उपलब्ध रहना चाहिए। सभी शिक्षण संस्थानों के मुख्यद्वार पर संविधान की कापी को प्रदर्शित करने की जरूरत है, ताकि युवा भारतीय संविधान को जब चाहे पढ़ सकें, अध्ययन कर सकें।
सभी कार्यालायों में प्रतिदिन संविधान की प्रस्तावना और कर्तव्यों का सामूहिक वाचन अनिवार्य होना चाहिए। स्कूलों की प्रार्थना सभाओं में मूल कर्तव्यों का वाचन किया जाना चाहिए।
रुसेन कुमार ने चौकाने वाली बात उजागर करते हुए कहा कि भारत सरकार संविधान को न तो ज्यादा मात्रा में छापती है और न हीं ज्यादा प्रति छापने के बारे में उसके पास कोई नीति है। सरकार संविधान की प्रतियाँ ज्यादा मात्रा में छापने की नीति बनाए और उसे जनता सहजता से प्राप्त कर सके उसके बारे में जागरुकता अभियान चलाकर उपलब्धता सुनिश्चित करे। केंद्र एवं राज्य सरकारों के पास संविधान के थोक मुद्रण और उसे लोगों को मुफ्त में उपलब्ध कराने की नीति होनी चाहिए। सभी राज्य सरकारों को चाहिए कि वे केंद्र सरकार से संविधान की प्रतियाँ प्राप्त करने के लिए अपनी मांग पत्र भेजें।
उन्होंने यह भी कहा कि प्रत्येक नागरिक को एक जिम्मेदार भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। हर कोई अपने कर्तव्यों का पालन करे, अपने कार्यकलापों में सेवा भावना को वरीयता दे तो बेहतर समाज का मार्ग प्रशस्त होता है।
रुसेन कुमार यह भी कहा कि संविधान जीवन का एक हिस्सा होना चाहिए, न कि केवल कानूनी जरूरत के लिए। संविधान दिवस के अवसर पर संविधान के संस्थापक पिताओं के योगदान को याद किया और कहा कि संविधान केवल एक सैद्धांतिक विचार नहीं है बल्कि इसे देश के हर हिस्से में व्यक्तियों के जीवन के लिए महत्वपूर्ण बनाया जाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि संविधान के अनुपालन में नागरिकों के हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
रुसेन कुमार ने कहा कि नागरिकों के कर्तव्यों और जिम्मेदारियाँ निभाने से यह सुनिश्चित होता है कि वह मौलिक अधिकारों का प्रयोग करते हुए अपने कर्तव्यों की अनदेखी नहीं करता है। सभी लोग अधिकारों के बारे में जानते हैं लेकिन शायद ही कभी देश के प्रति अपने कर्तव्यों के बारे में जानते हों। अधिकारों के साथ कर्तव्यों की चर्चा आवश्यक है, यही समय की मांग है। रुसेन कुमार ने सुझाव दिया कि सरकारों को नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों पर एक विशेष जागरूकता अभियान को डिजाइन और कार्यान्वित करना चाहिए। सार्वजनिक स्थानों और सार्वजनिक संस्थानों में मौलिक कर्तव्यों का प्रदर्शन अनिवार्य होना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि 26 नवंबर को संविधान दिवस की 70 वीं वर्षगांठ थी। भारत की संविधान सभा ने 26 नवंबर, 1949 को भारत के संविधान को अपनाया और यह 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। भारत रत्न डॉ. बीआर अंबेडकर संविधान के जनक हैं जिन्होंने भारतीय संविधान की रचना की।