इस बात का अंदेशा है कि डिजिटल पेमेंट के बेलगाम विस्तार से परम्परागत भारतीय बैंकिंग व्यवस्था खतरे में पड़ सकती है।
इंडिया सीएसआर हिंदी में आपका स्वागत है। हम आपके लिए एक विशेष लेख लेकर आए हैं, जिसमें भारत में बढ़ते डिजिटल पेमेंट के संभावित खतरों के बारे में चिंता व्यक्त की गई है। उम्मीद है यह लेख आपको उपयोगी लगेगी।
सिंगापुर से समझौते के बाद यूपीआई यानी यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस का जलवा जी-20 और वैश्विक स्तर पर बढ़ना देश के लिए गौरव की बात है। नीति आयोग के पूर्व सीईओ अमिताभ कांत के अनुसार अमेरिका और यूरोप से 11 गुना और चीन से चार गुना ज्यादा डिजिटल पेमेंट भारत में हो रहे हैं। नोटबंदी के बाद 130 करोड़ आधार, 85 करोड़ इंटरनेट, 78 करोड़ स्मार्टफोन, 43.76 करोड़ जन-धन खाते, सस्ता डाटा और ई-कॉमर्स में बढोतरी से यूपीआई पेमेंट ने लम्बी छलांग लगाई है।
2022 के अंत में डिजिटल वॉलेट से 126 लाख करोड़ रुपए के लेन-देन हुए थे। वकील विराग गुप्ता ने दैनिक भास्कर में छपे नवीनतम लेख में चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि इस क्रांति को भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती में तब्दील करने के लिए सरकार और रिज़र्व बैंक को इन 6 मंत्रों पर मंथन की जरूरत हैः
इन छह उपायों का क्रमः विवरण इस प्रकार है।
(1) गूगल ने नया लाइव टीवी पेश किया है। उसमें 800 से ज्यादा टीवी चैनल फ्री में देख सकते हैं। यूपीआई के बाजार में फोन-पे और गूगल-पे ने 80% से ज्यादा हिस्सेदारी हासिल कर ली है। बड़े पैमाने पर कारोबार कर रही डिजिटल पेमेंट कम्पनियों का रहस्यमी बिजनेस मॉडल क्या है? आशंका यह है कि कहीं ये कम्पनियाँ डेटा के अवैध कारोबार से तो मुनाफा नहीं कमा रहीं? पारदर्शित नहीं बरती गई तो भारत में डिजिटल कम्पनियाँ मौजूदा बैंकिंग सिस्टम और देश की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान भी पहुँचा सकती हैं।
(2) सोशल मीडिया कारोबार में अग्रणी फेसबुक और वाट्सएप जैसी दिग्गज कम्पनियाँ पिछले कई वर्षों से अवैध तरीके से डेटा के कारोबार के साथ लोगों की गोपनीयता का उल्लंघन करती रही हैं। इस मामले में केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक दफे कहा है कि मॉनसून सत्र में डेटा सुरक्षा कानून का विधेयक पेश किया जाएगा। पिछले कई वर्षों से लम्बित यह कानून क्या लोकसभा चुनावों के पहले लागू हो पाएगा?
(3) परंपरागत बैंकिंग व्यवस्था में केवाईसी (ग्राहक की जानकारी का निरीक्षण) की सख्त व्यवस्था को डिजिटल पेमेंट कम्पनियाँ नजरअंदाज कर रही हैं। यूपीआई के विस्तार के साथ लोगों में डिजिटल साक्षरता का प्रसार उस अनुपात में नहीं हुआ, जैसी उम्मीद की जानी चाहिए। रेगुलेटर की सुस्ती से जनता का डेटा, फोन नम्बर और बैंक खातों के विवरण थर्ड पार्टी को बेरोकटोक पहुँच रहा है।
साइबराबाद पुलिस ने ऐसे गिरोह का खुलासा किया है, जिसने 70 करोड़ डेटा (ग्राहकों की सूचनाओं) की चोरी की है। पुलिस ने अन्य गिरोह का पर्दाफाश किया है जो लोगों के निजी जानकारियों को चीनी कम्पनी के सर्वर पर अपलोड करने के बाद ही लोन की रकम जारी करती थी। साइबर और वित्तीय अपराध पूरे देश में महामारी की तरह फैल रहे हैं। इससे निपटने के लिए बनाई गई टोल फ्री नम्बर और हेल्पलाइन की सुविधा के बावजूद अधिकांश लोगों को ठगी के पैसे वापस नहीं मिलते। इसके चलते लोगों का ऑनलाइन पेमेंट पर भरोसा कमजोर होता दिखाई पड़ रहा है और भविष्य में यह कमजोर हो सकता है।
(4) संसद द्वारा बनाए गए कानूनों के तहत चल रही बैंक सिस्टम अर्थव्यवस्था की मजबूत रीढ़ है। बैकों के अनेक सामाजिक उत्तरदायित्व हैं, जिनके द्वारा बड़े पैमाने पर रोजगारों सृजन भी होता है। आरबीआई (रिजर्व बैंक आफ इंडिया) के डिप्टी गवर्नर टी. रबीशंकर ने पिछले वर्ष सतर्क करते हुए कहा था कि डिजिटल पेमेंट के अराजक विस्तार से परम्परागत भारतीय बैंकिंग व्यवस्था खतरे में पड़ सकती है। यूपीआई के बाद एटीएम, क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड के इस्तेमाल में कमी आई है। डिजिटल कम्पनियों को क्रेडिट लाइन के तहत लोन जारी करने की इजाजत मिलने से बैंकों में सन्नाटा और बढ़ सकता है।
(5) कारोबार बढ़ाने और रिझाने के लिए शुरुआती दौर में कम्पनियाँ ग्राहकों को इंसेंटिव (अतिरिक्त वित्तीय लाभ) बोनस देती थीं। लेकिन अब बड़े विस्तार के बावजूद ये कंपनियाँ नियमों और मर्चेंट डिस्काउंट रेट (एमडीआर) जैसे भुगतान के दबाव से बाहर रहना चाहती हैं। बैंक इन कम्पनियों को करोड़ों रुपए की स्विचिंग फीस का भुगतान करते हैं, लेकिन बदले में इन कम्पनियों से उन्हें कोई आमदनी नहीं होती। नेशनल पेमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इण्डिया ने इन कम्पनियों का एकाधिकार रोकने के लिए नवम्बर 2020 में 30% की कारोबारी लिमिट (टीपीएपी) का नियम बनाया था, जिसे अभी तक लागू नहीं किया गया। यह गंभीर चिंता का विषय है।
(6) लॉकडाउन के बाद पूरी दुनिया में डिजिटल पेमेंट करने का चलन बढ़ने से बैंक करेंसी का चलन कम हो गया, इस साफ तौर पर देखा जा सकता है। लेकिन भारत में डिजिटल पेमेंट की क्राँति के बावजूद नगदी की बढ़ोतरी गंभीर विषय है। डिजिटल के औपनिवेशिक दौर में बचपन में पढ़े गए लेखों को नए सिरे से समझने की जरूरत है। उसमें कहा गया था कि ‘विज्ञान एक अच्छा सेवक लेकिन खराब स्वामी है।’ 21वीं सदी में आत्मगौरव से भरपूर इतिहास को लिखने के लिए पुख्ता लगाम से डिजिटल के घोड़े की सवारी करने की जरूरत है।
यूपीआई सिस्टम में कोई 381 बैंक शामिल हैं, जिनमें रोजाना औसतन 26 करोड़ ट्रांजेक्शन हो रहे हैं। वहीं, क्षमता प्रतिदिन 100 करोड़ ट्रांजेक्शन की है। पर कुछ पहलुओं पर गौर करने की जरूरत है।
डिजिटल वित्तीय प्रणाली अधिक महत्वपूर्ण होती है। यह नए संसाधनों के लिए नए द्वार खोलने के साथ-साथ, उद्यमिता और संभावनाओं को बढ़ावा देने में मदद कर सकती है। नए संसाधनों का उपयोग करके लोगों को डिजिटल वित्तीय समाधानों के लाभों की जानकारी देने के लिए, डिजिटल वित्तीय प्रणाली के अनेक फायदे होते हैं । यहाँ कुछ फायदे गिनाए गए हैंः
सुविधा: डिजिटल वित्तीय प्रणाली लोगों को सुविधाजनक और त्वरित भुगतान विकल्प प्रदान करती है। यह नगदी के मुकाबले अधिक सुरक्षित और सुरक्षित होता है।
अधिक विकल्प: डिजिटल वित्तीय प्रणाली लोगों को अधिक भुगतान विकल्प प्रदान करती है।
अल्पकालीन उद्योग: डिजिटल वित्तीय प्रणाली उद्योग को अल्पकालीन भुगतान समाधान प्रदान करने में मदद करती है। उदाहरण के लिए, यह ई-कॉमर्स और बाजार विक्रेताओं को त्वरित और सुरक्षित भुगतान समाधान प्रदान करती है।
खुशहाल अर्थव्यवस्था: डिजिटल वित्तीय प्रणाली का उपयोग एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था के विकास में मदद करता है। यह वित्तीय समाधानों की उपलब्धता में वृद्धि करता है और संसाधनों के उपयोग को बढ़ाता है।
संरक्षण: डिजिटल वित्तीय प्रणाली नगदी की तुलना में अधिक सफल भुगतान एवं परेशानी मुक्त आदान-प्रदान सुनिश्चित करती है। यह सुरक्षा सुनिश्चित करता है कि वित्तीय संबंधों में कोई अनधिकृत व्यक्ति या अप्राप्त तरीके से पहुँच नहीं होता है।
उद्यमिता को प्रोत्साहित करना: डिजिटल वित्तीय प्रणाली उद्यमिता को प्रोत्साहित करती है। इसके द्वारा आईटी और डिजिटल माध्यमों के विकास में लगातार सुधार होते रहते हैं, जो वित्तीय संबंधों को अधिक सुरक्षित और सुविधाजनक बनाता है।
सामाजिक समावेश: डिजिटल वित्तीय प्रणाली विभिन्न वर्गों के लोगों को एक ही प्लेटफॉर्म पर लाती है। यह वित्तीय समाधानों को आम जनता के लिए सुलभ और उपयोग में आसान बनाता है और सामाजिक समावेश को बढ़ावा देता है।
उपरोक्त कारणों के मद्देनजर, भारत में सरकारी स्तर पर डिजिटल पेमेंट के उपयोग को बढ़ाने के लिए विभिन्न स्तरों पर उपाय किए जा रहे हैं। यह समाधानों की विस्तारित उपलब्धता, उपयोग में आसानी, सुरक्षा और सुविधाजनकता का सुनिश्चय करता है। इसके लिए, डिजिटल पेमेंट उपयोगकर्ताओं के लिए सुविधाजनक विकल्प प्रदान करने वाले विभिन्न एप्लिकेशन, दिग्गज बैंक और वित्तीय संस्थाएँ, सरकार की नीतियों को प्रोत्साहित करने वाले कदम, और इसे आम जनता के बीच फैलाने के लिए सक्रिय सामाजिक मीडिया का उपयोग किया जा रहा है।
(इस लेख में जो विचार शामिल किए गए हैं, उनसे इंडिया सीएसआर का सहमत होना आवश्यक नहीं है)