रायपुर (छत्तीसगढ़)। CSR की राशि खर्च करने के लिए सरकार ने गाइडलाइन भी जारी की है पर कंपनियों और अफसरों ने मिलकर इस में पलीता लगा दिया है। सीएसआर की राशि में जमकर बंदरबांट चल रही है। 6 वर्षों में देश को सीएसआर मद में मिले 50 हजार करोड़, छत्तीसगढ़ को 5 वर्ष में मिला 985 करोड़। प्रदेश में सर्वाधिक राशि रायपुर में की जा रही है खर्च।
कंपनियां सिर्फ अपना प्रॉफिट ही न देखें बल्कि अपनी आय का छोटा सा हिस्सा समाज के लिए भी खर्च करें। इस मंशा को लेकर केंद्र सरकार ने वर्ष 2014 में CSR (Corporate Social Responsibility) के लिए पृथक कानून बना दिया, ताकि इस राशि से पिछड़े इलाकों का विकास हो सके और सामाजिक आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सशक्त बनाया जा सके।
सीएसआर की राशि खर्च करने के लिए सरकार ने गाइडलाइन भी जारी की है, पर कंपनियों और अफसरों ने मिलकर इस में पलीता लगा दिया है। CSR की राशि में जमकर बंदरबांट चल रही है। गाड़ियों से लेकर अफसरों के बंगलों का मेंटीनेंस और अपनों के एनजीओ से लेकर नेताओं के खेल संगठनों को करोड़ों का अनुदान देकर उपकृत किया जा रहा है। कई कलेक्टर और वन अधिकारी अपने प्रभाव का उपयोग कर कम्पनियों से सीएसआर की राशि लेकर कमीशन के आधार पर कार्य का वितरण करते हैं।
यदि इसकी निष्पक्ष जांच हो जाए तो सुनियोजित फर्जीवाड़े का नया घोटाला सामने आ सकता है।
केंद्र सरकार के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2014 से लेकर 2019 तक पूरे देश में विभिन्न कंपनियों ने सीएसआर मद में 50 हजार करोड़ से अधिक का योगदान दिया है। छत्तीसगढ़ में वर्ष 2016-17 से 2022-21 तक सीएसआर के नाम पर कुल 985.12 करोड़ रुपए मिले हैं।
क्या है CSR कानून
जिन इलाकों में उद्योगों की स्थापना होती है। वहां पर इनके कारण होने वाले सामाजिक,आर्थिक और पर्यावरण में होने वाली क्षति की पूर्ति के लिए सीएसआर मद की स्थापना की गई है। यह भारत सरकार ने 2014 में कंपनी अधिनियम 2013 की धारा 135 में संशोधनों के द्वारा अधिसूचित किया है। इसके तहत 500 करोड़ से अधिक की संपत्ति या एक हजार करोड़ के व्यापार अथवा 5 करोड़ की शुद्ध आय अर्जित करने वाली कंपनी को अपनी औसत आय का 2 फीसदी सीएसआर में खर्च करना होगा।
प्रदेश में 199 कंपनियां देती हैं CSR
छत्तीसगढ़ में छोटे बड़े मिलाकर लगभग 500 से अधिक उद्योग हैं जिनमे से वर्ष 2019-20 में सर्वाधिक 199 कम्पनियो ने सीएसआर में योगदान दिया है जबकि 2016-17 में यह आंकड़ा 106 कम्पनियों का था।
वर्ष 2021-22 में कोरोना काल के बाद प्रदेश की 190 कम्पनियों ने सीएसआर मद में अपनी राशि खर्च करने का दावा किया है। वर्ष 2020-21 में प्रदेश में सर्वाधिक सीएसआर साउथ ईस्टर्न कोल फील्ड्स लिमिटेड ने 78.4 करोड़ दिया है वहीं एनएमडीसी दूसरी बड़ी कंपनी है जिसने इस मद में 73.36 करोड़ दिए है।
मॉनिटरिंग का प्रभावी सिस्टम नहीं
केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए सीएसआर एक्ट में कई खामियां है जिसका लाभ कंपनी,नेता और अफसर उठाते हैं।
मसलन केंद्र द्वारा जारी गाइड लाइन के मुताबिक शिक्षा,स्वास्थ्य,पेयजल,कुपोषण,पर्यावरण संरक्षण,ग्रामीण विकास जैसे तय मानकों आधार पर राशि खर्च करने का नियम तो बनाया गया है। ऐसा होने पर भी यह खर्च कम्पनियों के विवेक पर छोड़ दिया गया है कि वे इसे कहां खर्च करते हैं। जैसे छत्तीसगढ़ में कार्यरत एक कंपनी अपने सीएसआर का 90 फीसदी राशि स्वास्थ्य में खर्च करने का दावा करती है जबकि हकीकत यह है कि इस कंपनी ने एक बड़ा अस्पताल राजधानी में बनवा रखा है। वहां भी मोटी रकम लेकर लोगों का इलाज होता है लेकिन यह कंपनी इसका खर्च अपने सीएसआर में दिखाती है। नियमानुसार यह गलत है।
5 वर्षों के दौरान प्रदेश को मिली सीएसआर की राशि (वर्ष राशि)
- 2016-17 84.66
- 2017-18 176.7
- 2018-19 149.35
- 2019-20 268.8
- 2020-21 305.73
कंपनी रुपया (करोड़ों में)
एसईसीएल 78.4
एनएमडीसी 73.39
बालको 47.41
सेल 29.51
एनपीसीएल 6.5
गोदावरी पावर 5.18
बजरंग पावर एंड स्टील 4.4
रियल इस्पात एंड पावर 4.05
एनटीपीसी 3.81
इंडोफिल इंडस्ट्री 3.66
पेयजल, स्वास्थ्य, कुपोषण 189.68शिक्षा, प्रशिक्षण 65.62 पर्यावरण संरक्षण 21.28 ग्रामीण विकास 15.44 खेल गतिविधियां 06.82 महिला सशक्तीकरण 5.21 कला एवं संस्कृति 1.50सुरक्षा में खर्च 0.13 स्लम एरिया का विकास 0.05 (राशि करोड़ रुपए में)
एनएमडीसी सीएसआर मद के अधिकांश कार्य शासन के निर्देशानुसार प्रशासन द्वारा जारी सूची के मुताबिक स्वीकृत किए जाते हैं। जिला प्रशासन ही तकनीकी और प्रशासकीय स्वीकृति जारी करता है यदि कोई शिकायत मिलती है तो एनएमडीसी और जिला प्रशासन के अधिकारी संयुक्त निरीक्षण करते हैं। अभी तक हमें अनियमितता की शिकायत नही मिली है।
-बी. के. माधव, उपमहाप्रबंधक (कार्मिक ) एनएमडीसी, किरंदुल कॉम्प्लेक्स