गजट नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया है; 20 सितंबर 2023 को लोकसभा, 21 को राज्यसभा में पास हुआ था महिला सशक्तिकरण बिल
नई दिल्ली (इंडिया सीएसआर)। भारत के लोकतंत्र के इतिहास में एक और महत्वपूर्ण घटना घटी है। महिला आरक्षण बिल, जिसे नारी शक्ति वंदन अधिनियम नाम दिया गया है, वह अब कानून बन गया है। 29 सितंबर 2023 को भारत के राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इससे जुड़े दस्तावेजों पर दस्तखत कर दिए। इसके साथ ही सरकार द्वारा इस सिलसिले में गजट नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया है।
क्या मिलेगा महिलाओं को
अब इस बिल के कानून बन जाने से लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में 33% सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी। इस पर आरक्षण नई जनगणना के बाद परिसीमन के उपरान्त लागू किया जाएगा।
अब इस नए बिल को देश भर की विधानसभाओं में भेजा जाएगा। इसे लागू होने के लिए देश की 50% विधानसभाओं में पारित होना जरूरी है। लोकसभा में फिलहाल 82 महिला सांसद हैं, नारी शक्ति वंदन कानून के अंतर्गत लोकसभा में 181 महिला सांसद रहेंगी।
सरकार ने 5 दिन का स्पेशल सत्र बुलाया
सरकार द्वारा 18 से 22 सितंबर 2023 तक संसद का विशेष सत्र बुलाया गया। इसका एजेंडा नहीं बताया गया था। इसको लेकर विपक्ष की आलोचना की आलोचना झेलनी पड़ी थी। 18 सितंबर की रात्रि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट की मीटिंग बुलाई गई। मीटिंग के बाद कोई प्रेस ब्रीफिंग नहीं की गई। अंदरखाने से खबर आई थी कि सरकार 19 सितंबर को लोकसभा में महिला आरक्षण बिल ला सकती है। बात सही निकली और 19 सितंबर को सरकार ने लोकसभा में नारी शक्ति वंदन बिल पेश कर दिया।
20 सितंबर को लोकसभा में बिल पर 7 घंटे चर्चा हुई। इसमें 60 सांसदों ने भाग लिया। शाम को पर्ची से हुई वोटिंग में बिल पास हो गया। समर्थन में 454 और विरोध में 2 वोट डले।
21 सितंबर को बिल पर राज्यसभा में चर्चा हुई। यहां बिल सर्वसम्मति से पास हो गया और किसी ने बिल के खिलाफ वोट नहीं दिया। हाउस में मौजूद सभी 214 सांसदों ने बिल का समर्थन किया था।
राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल पास होने के बाद महिला सांसदों ने एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर जश्न मनाया था।
नई संसद में कामकाज के पहले दिन पेश हुआ
नई संसद में कामकाज के पहले दिन यानी 19 सितंबर को लोकसभा में महिला आरक्षण बिल (नारी शक्ति वंदन विधेयक) पेश किया गया। इस बिल के मुताबिक, लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% रिजर्वेशन लागू किया जाएगा।
लोकसभा की 543 सीटों में से 181 महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। ये रिजर्वेशन 15 साल तक रहेगा। इसके बाद संसद चाहे तो इसकी अवधि बढ़ा सकती है। यह आरक्षण सीधे चुने जाने वाले जनप्रतिनिधियों के लिए लागू होगा। यानी यह राज्यसभा और राज्यों की विधान परिषदों पर लागू नहीं होगा।
लोकसभा में 20 सितंबर को महिला आरक्षण बिल पास, 60 सांसदों ने अपने विचार रखे
लोकसभा में वोटिंग में बिल के पक्ष में 454 और विपक्ष में सिर्फ 2 वोट पड़े।
लोकसभा में बिल पर चर्चा में 60 सांसदों ने अपने विचार रखे। राहुल गांधी ने कहा कि OBC आरक्षण के बिना यह बिल अधूरा है। इस पर अमित शाह ने कहा कि यह आरक्षण सामान्य, SC और ST में समान रूप से लागू होगा। चुनाव के बाद तुरंत ही जनगणना और डिलिमिटेशन होगा और महिलाओं की भागीदारी जल्द ही सदन में बढ़ेगी। विरोध करने से रिजर्वेशन जल्दी नहीं आएगा। पढ़ें पूरी खबर
परिसीमन के बाद ही लागू होगा कानून
नए विधेयक में सबसे बड़ा पेंच यह है कि यह डीलिमिटेशन यानी परिसीमन के बाद ही लागू होगा। परिसीमन इस विधेयक के पास होने के बाद होने वाली जनगणना के आधार पर होगा। 2024 में होने वाले आम चुनावों से पहले जनगणना और परिसीमन करीब-करीब असंभव है।
इस फॉर्मूले के मुताबिक विधानसभा और लोकसभा चुनाव समय पर हुए तो इस बार महिला आरक्षण लागू नहीं होगा। यह 2029 के लोकसभा चुनाव या इससे पहले के कुछ विधानसभा चुनावों से लागू हो सकता है।
अधिनियम के समर्थन में तर्क
महिला आरक्षण अधिनियम को पारित करने के लिए, सरकार ने निम्नलिखित तर्क दिए:
- महिलाओं को सशक्त बनाने और उन्हें राजनीतिक निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल करने के लिए आरक्षण आवश्यक है।
- आरक्षण महिलाओं को सत्ता में आने और अपने अधिकारों और हितों की रक्षा करने का अवसर प्रदान करेगा।
- आरक्षण भारत में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने में मदद करेगा।
तीन दशक से पेंडिंग था महिला आरक्षण बिल
संसद में महिलाओं के आरक्षण का प्रस्ताव करीब 3 दशक से पेंडिंग है। यह मुद्दा पहली बार 1974 में महिलाओं की स्थिति का आकलन करने वाली समिति ने उठाया था। 2010 में मनमोहन सरकार ने राज्यसभा में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण बिल को बहुमत से पारित करा लिया था।
तब समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल ने बिल का विरोध करते हुए तत्कालीन UPA सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी दे दी थी। इसके बाद बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया गया। तभी से महिला आरक्षण बिल पेंडिंग था।
इंडिया सीएसआर के संस्थापक रुसेन कुमार ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि महिला आरक्षण अधिनियम महिलाओं को भारतीय संसद और राज्य विधान सभाओं में सीटों के लिए आरक्षण देता है। यह कानून बनने से पहले, इस पर बहसें हो रही थीं और कई पार्टियां इसका समर्थन और विरोध भी कर रही थीं। महिला आरक्षण कानून से महिलाएं राजनीतिक प्रक्रिया में अधिक सक्रिय और प्रभावित हो सकती हैं, और इससे उनके अधिकारों और स्वाभाविक विकास में सहायता मिल सकती है। यह भारतीय लोकतंत्र में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण होगा। यह भारतीय समाज में लिंग संतुलन को मजबूती प्रदान करेगा और महिलाओं को सोशल और आर्थिक विकास में भी बढ़ावा देगा।
आलोचना का कारण
महिला आरक्षण अधिनियम का विरोध करने वाले कुछ लोगों का तर्क है कि यह आरक्षण के सिद्धांत के खिलाफ है, जो योग्यता के आधार पर नियुक्ति या नियुक्ति प्रदान करता है। वे यह भी तर्क देते हैं कि आरक्षण महिलाओं को अपने लिए खड़े होने और अपने अधिकारों और हितों की रक्षा करने के लिए प्रोत्साहित नहीं करेगा।
(India CSR)