इंडिया सीएसआर हिंदी समाचार सेवा । 17 जुलाई 2022
भारत में सीएसआर अब आम बात हो गई है। सीएसआर को कंपनियों द्वारा अपने व्यावसाय की रणनीति में शामिल कर लिया है साथ ही यह अवधारणा उनकी कार्य-संस्कृति का भी अभिन्न हिस्सा बन गया है। कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व को शुद्ध हिंदी में नैगम सामाजिक दायित्व कहा जाता है। नैगम शब्द निगम से प्रेरित है। निगम को कारपोरेशन के स्थान पर उपयोग किया जाता है। यह सर्वमान्य तथ्य है कि उत्तरदायित्व या कर्तव्य निभाने से सबको लाभ मिलता है।
कंपनियाँ चूँकि अपना लाभ समाज और पर्यावरण से अर्जित करती हैं इसलिए उसे अधिकाधिक समाज और पर्यावरण के उत्थान के लिए करना होता है।
भारत में सीएसआर करना एक कानूनी जरूरत है।
कंपनी (नैगम सामाजिक दायित्व – सीएसआर नीति) नियमावली 2014 के नियम 8 के उप नियम (3) के अनुसरण में सीएसआर परियोजनाओं पर प्रभावोत्पादकता का विववरण प्रस्तुत करना अनिवार्य है।
कहने का आशय है कंपनियों को अपने सामाजिक कार्यक्रमों की जानकारी समाज को देना अनिवार्य किया गया है। कंपनियों के हितधारकों की निरंतर बदलती जरूरतों और पूर्ण विकसित समाज बनाने की देश की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए कंपनियों को अपनी सीएसआर नीति एवं रणनीति को लगातार परिष्कृत करते रहने की आवश्यकता रहती है।
इसके भाग के रूप में कंपनियों को अपनी सीएसआर नीति में संशोधन करना होता है।
किसी कंपनी का विजन, मिशन, उद्देश्य, कार्यक्षेत्र, मार्गदर्शक सिद्धांत, कवरेज, तंत्र, प्रक्रिया, फोकस क्षेत्र, निधि आबंटन एवं व्यय, योजना एवं कार्यान्वयन, निगरानी और मूल्यांकन एवं रिपोर्टिंग तथा एमआईएस को रिपोर्ट करने के माध्यम से अपनी प्रतिबद्धता को रेखांकित करना होता है। सभी बड़ी बातों को निदेशक मंडल अर्थात बोर्ड द्वारा अनुमोदित किया जाना आवश्यक रहता है।
हितधारकों, साझेदार संगठनों और सभी संबंधित व्यक्तियों एवं एजेंसियों के लिए एक पारदर्शी और प्रभावकारी संचार के लिए सीएसआर गतिवधियों के विभिन्न सीएसआर के पहलुओं पर संचार के लिए इसे कंपनियों को अपनी वेबसाइट पर अपलोड करना अनिवार्य किया गया है।
नैगम सामाजिक दायित्व गतिविधियां
भारत में सीएसआर अब आम बात हो गई है। सीएसआर को केवल व्यावसाय की रणनीति में शामिल कर लिया है साथ ही यह कंपनियों की कार्यसंस्कृति का ही एक हिस्सा बन गया है। अनेक कंपनियाँ अपने सीएसआर कार्यक्रम सुदूरवर्ती एवं पिछड़े क्षेत्रों में संचालित करने लगी हैं। विशेष रूप से वहाँ जहां पर वाममार्गी अतिवाद के कारण कानून एवं व्यवस्था की समस्याएं हैं।
उदारहण के रूप में छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र को लिया जा सकता है। यहाँ पर खनन कंपनियाँ जैसे लौह अयस्क खनन कंपनी एनएमडीसी आदि द्वारा सीएसआर परियोजनाएँ चलाई जा रही हैं। यह क्षेत्र भारत के सर्वाधिक पिछड़े क्षेत्रों में से एक है तथा इसमें प्रमुख रूप सेअनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या निवास करती है जो गरीब,वंचित तथा कुपोषण का शिकार हैं।
यह समुदाय आज भी सामाजिक एवं आर्थिक आवश्यकताओं संबंधी सहायता से वंचित हैं। स्थानीय समुदाय के जीवन स्तर में प्रगति के लक्ष्य सहित कंपनियों द्वारा चलाए जा रहे सामाजिक दायित्व संबंधी कार्यक्रमों के कारण से इन क्षेत्रों में लोगों के रहन-सहन में सुधार देखा जा रहा है।
कंपनियाँ, विशेष रूप से अपने प्रचालनगत क्षेत्रों के आसपास शिक्षा, भौतिक आधारभूत संरचनाओं के विकास, स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने, स्वच्छ पेयजल के साथ-साथ रोजगार की संभावनाएं बढ़ाने एवं आय उत्पन्न करने के उद्देश्य से तकनीकी कौशल प्रदान करने के लिए बड़ी मात्रा में निवेश कर रही हैं।
इसके साथ ही कंपनियों ने पीएम (प्रधानमंत्री) केयर फंड में कोविड -19 महामारी के खिलाफ लड़ाई में अपना योगदान करने में आगे आई थीं। परिसरीय एवं सामुदायिक विकास के लिए कंपनियों की सीएसआर नीतियों का क्रियान्वयन सीएसआर विभाग द्वारा संचालित की जाती हैं।
सीएसआर विभाग की टीम अपने कार्य क्षेत्रों के आसपास के स्थानीय समुदायों से परामर्श करती है। विभिन्न सीएसआर गतिविधियों के कार्यांवयन के लिए अपेक्षित प्रमुख क्षेत्रों की पहचान करती है।
कंपनियों द्वारा समाज के प्रति सडकें, पुल,आवासीय स्कूल एवं छात्रावास का निर्माण,अस्पताल ऑन व्हील,चिकित्सा शिविरों का आयोजन एवं स्थानीय जनजातियों को नि:शुल्क दवाइयां, गावों का विद्युतीकरण एवं ऐसी कई गतिविधियों का संचालन किया जाता है। सीएसआर टीम को लाभान्वित होने वालों से इसके प्रभाव, सुधार की गुंजाइश यदि है, तो उसे जानने के लिए फीडबैक लेनी की आवश्यकता रहती है।
अपनी प्रमुख सीएसआर पहलों का प्रभाव मूल्यांकन कंपनियों की सीएसआर टीम के साथ तृतीय पक्ष द्वारा भी किया जाता है। सामुदायिक विकास परियोजनाओं की प्रभावकारिता का पता लगाना आवश्यक रहता है एवं इन कार्यक्रमों के प्रति समुदाय के लोगों की प्रतिक्रिया प्राप्त करना अत्यंत हितकर होता है।
कंपनियों द्वारा सामुदायिक विकास पहल को सुनिश्चित करने हेतु समुदाय के साथ बातचीत द्वारा उनकी आवश्यकता का आकलन करना आवश्यक रहता है। सामाजिक विकास परियोजनाओं के कार्यान्वयन से पूर्व परामर्श, मूल्यांकन प्रक्रिया की जरूरतों तथा कार्यान्वयन के पश्चात प्रदान किए गए बुनियादी सुविधा एवं सहायता के संरक्षण एवं रखरखाव तथा पहल शुरू करने से पूर्व लाभार्थियों के बीच स्वामित्व की भावना पैदा करने एवं लाभार्थी हितधारकों से ठोस एवं लिखित प्रतिबद्धता प्राप्त करने पर अपेक्षित सभी उपाय कंपनियों को करना होता है।
अतः सुस्थिरता यानी टिकाउपन सीएसआर पहलुओं का अभिन्न अंग बन गई है।