कुछ विरले लोग ही होते हैं, जिनका समाज में कुछ भी स्वार्थ नहीं होता, अपने लिए वे कुछ भी नहीं चाहते। किसी कार्य को करने में केवल कर्तव्य ही निभाते हैं। बहाना, टालमटोल जैसे शब्द उनके शब्दकोश में होते ही नहीं। सबके लिए, सबके प्रति उनकी भावनाएँ समान होती हैं। वे समझाते हैं और उनकी समझाइश का असर बहुत गहरे तक होता है। कुछ ऐसे ही व्यक्तित्व के धनी थे – प्रोफेसर नागेन्द्र नाथ शर्मा। 10 अप्रैल 2021 को ब्रह्म में विलीन हो गए। मृत्यु देवता से संघर्ष में हार गए लेकिन अपने शिष्यों, मित्रों और अनुयायियों हेतु हमेशा के लिए मानवीय मूल्य, लगन, सहयोग, सद्भाव, प्रेम, समर्पण, सदाचार सीखा कर अनंतकाल के लिए अमर हो गए। उन्हें आदरपूर्वक प्रो. एन.एन शर्मा संबोधित किया जाता था।
बिरला समूह द्वारा संचालित लब्ध प्रतिष्ठित प्रबंध संस्थान बिरला इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी (बिमटेक) में सस्टेनेबिलिटी एवं कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) के डेढ़ दशक से प्रोफेसर थे। विषय में गहरी विशेषज्ञता, वाणी में मधुरता व सरल व्यवहार के कारण उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली हुई थी। सोशल सेक्टर विशेषज्ञ प्रो. एन.एन. शर्मा ने कंपनियों को समाज से जोड़ने के लिए मूल्यवान योगदान दिया।
भारत में सामाजिक विकास और कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) के क्षेत्र के जाने माने अग्रणी विशेषज्ञ और विद्वान के रूप में उनकी विशिष्ट पहचान थी। सामाजिक, राजनीतिक एवं कारपोरेट जगत तीनों ही क्षेत्रों में उनके विचारों को न केवल महत्व दिया जाता था बल्कि उन पर अमल भी किया जाता था। समकालीन सामाजिक विकास और कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) क्षेत्र के विरले ही लोग होंगे जो उन्हें जानते-पहचाने न थे। सामाजिक विकास, सीएसआर, उद्यमशीलता विकास, शिक्षा, मानव संसाधन जैसे विषयों पर आयोजित होने वाले सम्मेलनों एवं कार्यशालाओं में पहुँच कर वक्ता एवं श्रोता दोनों ही भूमिकाओं में सभा की शोभा बढ़ाते थे।
जहाँ तक उन्हें समझ पाता हूँ वे बोलने के लिए उतने लालायित नहीं होते थे, जितना कि सुनने के लिए। विशेषकर दिल्ली में कई अवसरों पर उनसे भेंट होती थी। सभा में वे अग्रिम पंक्ति के बजाय जहाँ जगह मिले वहाँ बैठ जाते थे। किसी आदर के भूखे तो बिल्कुल भी नहीं रहते थे। द्वेष, अहंकार और लालच विहीनता उनके व्यक्तित्व की विशेषता थी। शायद इन्हीं अंतर्निहित मूल्यों के कारण ही एन.एन. शर्मा जिनसे भी मिलते थे, उनको अपना परम मित्र बना लेते थे।
एक शिक्षक में जो कुछ भी महानतम गुण होने चाहिए, वे सभी गुण उनके भीतर असीम मात्रा में थे। बाह्य आडम्बर की कोई भी बात उन पर लागू ही नहीं थी। अत्यंत साधारण वस्त्र ही उन्हें प्रिय थे। लोग क्या कहेंगे, या लोग क्या कहते हैं, इसको लेकर बहुत ज्यादा परवाह नहीं करते थे बल्कि बेबाक और स्पष्ट ही अपनी बात रखते थे।
भारतीय कारपोरेट समाज को उनका विशिष्ट योगदान है – सोशल आडिट। सोशल आडिट को अत्यधिक व्यावहारिक बनाकर इस गूढ़ अवधारणा को कंपनियों के निदेशक मंडल तक पहुँचाने का महान कार्य उन्होंने किया। उनके शिष्य और अनुयायी कारपोरेट पेशेवर उनकी सोशल आडिट की संकल्पना को अमल में लाने का उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं। ग्रामीण बालिकाओं में शिक्षा के द्वारा महत्वाकांक्षा जगाने में शिक्षक कितनी बड़ी भूमिका निभा सकते हैं उसका ज्वलंत उदाहरण है – प्रोजेक्ट चिरैया। उत्तर प्रदेश के नीमका गाँव की बेटियों में जीवन के प्रति नई चेतना जगाने का काम उनके द्वारा किया गया। वंचित समाज में शिक्षा के द्वारा जागृति लाना आज के समय की महति आवश्यकता है।
उनके साथ मेरे संबंध का विकास तब हुआ जब उनके नेतृत्व में बिमटेक द्वारा सस्टेनेबल डेवलपमेंट प्रैक्टिसेस विषय पर पोस्ट ग्रेजुएट पाठ्यक्रम संचालित किया जा रहा था। वर्ष 2013 में उनके साथ मेरा सम्पर्क हुआ। मेरे द्वारा स्थापित इंडिया सीएसआर डाट इन उन्हें अत्यंत ही पसंद आई थी। उन्हीं के प्रेरणा में ही मैं बिमटेक के निदेशक जानेमाने शिक्षाविद डा. हरिवंश चतुर्वेदी जी के सम्पर्क में आया। इसके बाद तो उनसे मेलजोल का सिलसिला प्रारंभ हो गया और जब से अब तक भरपूर सानिध्य, सहयोग, मार्गदर्शन और जीवन तथा कार्यों को संचालित करने के लिए आवश्यक ऊर्जा लगातार मिलती रही। जितनी बार भी मेरा बिमटेक जाना हुआ, उनसे नहीं मिलने का तो प्रश्न ही नहीं होता था। मेरा कुछ भी आग्रह करने पर कहते थे कि इस संबंध में डा. हरिवंश चतुर्वेदी जी से ही मिलूँ। वे अपनी सीमाओं में रहकर असीम कार्य करते देखे जाते थे।
एक महत्वपूर्ण बात स्मरण आती है। एक सभा आयोजित करने के लिए दिल्ली गया हुआ था और ग्रेटर कैलाश के आर्य समाज के गेस्ट हाउस में ठहरा हुआ था। तब तक मेरी उनसे प्रत्यक्ष मुलाकात नहीं हुई थी। केवल फोन पर ही बातें होती थीं। मेरे प्रति उनके प्रेम की गहराई का आभास इस बात से हुआ कि मुझसे मिलने स्वयं ही वहाँ पहुँच गए, जबकि वे मुझे किसी अन्य स्थान पर मिलने आने के लिए कह सकते थे। उस भेंट में आश्वस्त किया कि उन्हें डा. हरिवंश चतुर्वेदी जी ने विशेष रूप से भेजा है ताकि सभा के आयोजन में किसी तरह की कठिनाई आने पर उसे दूर किया जा सके।
मेरे प्रति उन्होंने असीम दयालुता और सहृदता दिखाई, जब उनके बुलावे पर हैदराबाद गया था। वहाँ पर नेशनल सेंटर फॉर मैनेजमेंट ऑफ एग्रीकल्चर एक्सटेंशन (मैनेज) और बिमटेक द्वारा कृषि विकास में कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व की भूमिका विषय पर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया था। वे जरूरी खानपान की सुविधाओं के बारे में परवाह करते और जरूरी मार्गदर्शन देते। वे कभी अभिभावक तो कभी गुरु, कभी मित्र तो कभी महान हितैषी बन जाते थे।
बहुत समृद्ध किया उन्होंने मुझे। मुझे उनका भरपूर सानिध्य मिला। जब भी मिलता मुझे विशेष बातें ही सीखने-जानने को मिलती थी। जब भी मिला मेरी मूढ़ता छटाक भर अवश्य ही कम हुई। बातचीत में वे मेरी मूढ़ताओं को, मेरी कमजोरियों को, आधारहीन बातों को समझ लेते थे। वही व्यक्ति ठीक है, जो हमें संवार दे, हमारे भीतर की मलिनता को धो दे। पता नहीं कुछ तो था उनमें जो दिखाई तो नहीं देता था पर प्रभावित अवश्य करता था। उनमें दिलों को जोड़ने की शक्ति थी। मुझे किताबों का नाम बताकर पढ़ने के लिए कहते थे। किसी को पढ़ने के लिए कहना महान उपकार की बात है। यह दुर्लभ सौभाग्य की बात है कि हमारे आसपास आज भी कुछ विशिष्ट लोग हैं जो हमें सुधरने के लिए कहते हैं। वे मुझे बहुत ऊँचाई पर देखना चाहते थे।
वे अक्सर उदाहरण देकर समझाया करते कि देखो वह व्यक्ति कितना अच्छा काम कर रहा है, उसी तरह ही तुम्हें भी कुछ बड़ा करने का सोचना चाहिए। इस तरह के, उस तरह के विशेष आयोजनों की आवश्यकता भारत को है। वे अकारण ही मेरे प्रति इतना ज्यादा आदर रखते थे। इसके पीछे यह कारण तो नहीं कि वे हमें सुधार रहे थे, हमारा गौरव वर्धन कर रहे थे । सचमुच में वे मेरा नवनिर्माण ही कर रहे थे। मेरी अल्प समझ के हिसाब से वे मनोविज्ञान प्रकांड विद्वान थे। मुझे सबसे अधिक प्रिय था उनका भोलापन। उनका हृदय बिल्कुल बच्चों की तरह निश्छल था। काश वैसा भोलापन हमारे में आ जाय। एक महान कर्मयोगी और उच्च कोटि के गुरु को विनम्र श्रद्धांजलि।
Rusen Kumar, Harivansh Chaturvedi, BIMTECH, BIMTECH Foundation, India CSR, Corporate Social Responsibility, Sustainability, Social Audit