रुसेन कुमार
राष्ट्र निर्माण एक जटिल और बहुआयामी प्रक्रिया है, जो केवल भौगोलिक सीमाओं से परे जाती है। यह एक साझा इतिहास, संस्कृति, भाषा, और मूल्यों का ताना-बाना होता है, जो एक राष्ट्र की पहचान को परिभाषित करता है। किसी राष्ट्र की विफलता और अस्थिरता के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें सांस्कृतिक, सामाजिक, और आर्थिक तत्व प्रमुख भूमिका निभाते हैं। बांग्लादेश और श्रीलंका के उदाहरणों को लेते हुए, इन राष्ट्रों की मौजूदा स्थितियों का विश्लेषण करना महत्वपूर्ण है ताकि यह समझा जा सके कि किस प्रकार कुछ तत्व किसी राष्ट्र की स्थिरता को प्रभावित कर सकते हैं।
राष्ट्र की नींव: संस्कृति, भाषा और इतिहास
एक मजबूत राष्ट्र बनने के लिए नींव की मजबूती आवश्यक होती है, जो समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, एक साझा इतिहास और एक आधिकारिक भाषा पर आधारित होती है। यह भाषा, केवल संचार का माध्यम नहीं होती, बल्कि राष्ट्रीय पहचान का प्रतीक होती है, जिस पर लोग गर्व करते हैं। बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों में, जहाँ विविधता समृद्ध है, यह चुनौतीपूर्ण हो सकता है कि एक एकता का भाव कैसे बनाए रखा जाए। केवल परिश्रम, संघर्ष, और महत्वकांक्षा के बल पर राष्ट्र को खड़ा करना घातक ही होगा।
सांस्कृतिक विरासत और राष्ट्र की आयु
किसी भी राष्ट्र की अस्थिरता का एक प्रमुख कारण उस राष्ट्र की कम आयु हो सकती है। यदि किसी राष्ट्र का गठन हाल ही में हुआ है और उसकी सांस्कृतिक विरासत समृद्ध नहीं है, तो वह राष्ट्र कमजोर हो सकता है। बांग्लादेश का इतिहास 1971 में स्वतंत्रता के बाद से ही अस्थिरता से भरा हुआ है। इसके विपरीत, श्रीलंका की आयु भी लगभग उतनी ही है, लेकिन उसकी सांस्कृतिक विरासत समृद्ध है।
इसके बावजूद, श्रीलंका को आर्थिक और सामाजिक अस्थिरता का सामना करना पड़ा है, जो इस तथ्य को दर्शाता है कि केवल सांस्कृतिक विरासत ही पर्याप्त नहीं है, उसमें सतत विकास की क्षमता भी होनी चाहिए। सांस्कृतिक विरासत और सामाजिक विकास सतत चलते रहना चाहिए। अभी के समय में आर्थिक विकास को अत्यधिक महत्व दिया जा रहा है। सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्य राष्ट्र के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करते हैं। ये मूल्य नैतिकता, सम्मान, सहयोग और एकता को बढ़ावा देते हैं।
किसी राष्ट्र की आधिकारिक भाषा उस राष्ट्र की एकता और सांस्कृतिक पहचान को दर्शाती है। बांग्लादेश में बंगाली भाषा के प्रति गर्व और उसकी रक्षा ने राष्ट्र की पहचान को मजबूत किया है। इसके विपरीत, श्रीलंका में सिंहली और तमिल भाषाओं के बीच विवाद ने राष्ट्र को विभाजित किया और एक लंबा गृहयुद्ध पैदा किया। विचार सही प्रतीत होता है कि आधिकारिक भाषा का अभाव या उसके प्रति गर्व का न होना किसी राष्ट्र को विफलता की ओर धकेल सकता है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था और लघु-उद्योगों की भूमिका
किसी भी राष्ट्र की आर्थिक स्थिरता ग्रामीण क्षेत्रों में निहित है। कृषि आधारित लघु उद्योगों का विकास और समर्थन करना महत्वपूर्ण है। जब ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत होती है, तो राष्ट्र समृद्ध होता है। ग्रामीण स्तर के कृषि आधारित लघु-उद्योगों का संरक्षण आवश्यक है। जब यह उद्योग धंधे नष्ट हो जाते हैं, तो राष्ट्र की अर्थव्यवस्था कमजोर हो जाती है। बंग्लादेश में, ग्रामीण उद्योगों और कृषि का संरक्षण किया गया है, जिससे वहाँ की अर्थव्यवस्था को स्थिरता मिली है। इसके विपरीत, श्रीलंका में आर्थिक नीतियों के कारण कृषि और लघु-उद्योगों को नुकसान हुआ, जिससे देश की आर्थिक स्थिति बिगड़ी और अस्थिरता बढ़ी। भारत में सुनियोजित तरीकों से कुटीर उद्योगों को नष्ट करने की प्रक्रिया बहुत लंबे समय से चल रही है।
शिक्षा: आकांक्षाओं और वास्तविकता के बीच संतुलन
शिक्षा किसी भी राष्ट्र की उन्नति का आधार होती है। शिक्षा एक शक्तिशाली उपकरण है जो राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। लेकिन शिक्षा केवल ज्ञान प्रदान करने में ही नहीं, बल्कि आकांक्षाओं को नियंत्रित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह बहुत ही संवेदनशील तथ्य है कि अगर शिक्षा लोगों में अवास्तविक आकांक्षाएँ भर देती है, जो वास्तविकता से मेल नहीं खाती हैं, तो निराशा और असंतोष पैदा होना स्वाभाविक है। भारत सहित कई राष्ट्रों में राजनेताओं द्वारा शिक्षा के माध्यम से लोगों में अत्यधिक महत्वाकांक्षा भर दी जा रही हैं।
महत्वाकांक्षा बहुत बुरी होती हैं, लेकिन इस बात को मानने को तैयार नहीं होगा। महत्वाकांक्षाओं के पूरा होने पर नई महत्वाकांक्षाएं बढ़ती हैं और पूरा नहीं होने पर निराशा पैदा होती हैं। बांग्लादेश और श्रीलंका में शिक्षा के स्तर में सुधार हुआ है, लेकिन इसके साथ ही बेरोजगारी और असंतोष भी बढ़ा है। इससे यह सिद्ध होता है कि शिक्षा के साथ रोजगार के अवसरों का निर्माण भी आवश्यक है, अन्यथा राष्ट्र अस्थिरता की ओर बढ़ सकता है। लेकिन बांग्लादेश के मामले में देखें तो यह स्पष्ट दिखाई पड़ता है कि शिक्षा में असंतुलन के कारण ही वह राष्ट्र बर्बादी के कगार पर है।
हिंसा और अस्थिरता
हिंसा किसी भी राष्ट्र के लिए विनाशकारी होती है। यह सामाजिक ताने-बाने को तोड़ती है, विश्वास को नष्ट करती है और विकास को रोकती है। हिंसा किसी भी राष्ट्र को अस्थिर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। श्रीलंका का लंबा गृहयुद्ध इसका उदाहरण है, जहाँ हिंसा ने राष्ट्र की एकता और स्थिरता को गंभीर रूप से प्रभावित किया। दूसरी ओर, बांग्लादेश ने भी राजनीतिक हिंसा का सामना किया है, लेकिन वहाँ पर स्थिति श्रीलंका से बेहतर रही है। इससे यह स्पष्ट होता है कि हिंसा किसी भी राष्ट्र की अस्थिरता में एक निर्णायक कारक हो सकती है।
सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्य
राष्ट्र की स्थिरता के लिए सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्यों का महत्व अनिवार्य है। बांग्लादेश ने अपनी संस्कृति और सामाजिक मूल्यों को बनाए रखा है, जिससे उसकी स्थिरता में सहायता मिली है। इसके विपरीत, श्रीलंका में सांस्कृतिक विभाजन ने राष्ट्र को कमजोर किया है। संस्कृति, भाषा, शिक्षा, और सामाजिक मूल्यों को मजबूत करना महत्वपूर्ण है। बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देश अपने अतीत से सीख सकते हैं और अपनी विविधता को एक ताकत में बदल सकते हैं।
यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि राष्ट्र निर्माण एक सामूहिक प्रयास है, जिसमें सभी नागरिकों की भागीदारी आवश्यक है। यह एक सतत प्रक्रिया है, जिसमें निरंतर प्रयास और समर्पण की आवश्यकता होती है। बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों में, जहाँ विविधता समृद्ध है, यह चुनौतीपूर्ण हो सकता है कि एक एकता का भाव कैसे बनाए रखा जाए।
अनियंत्रित आर्थिक गतिविधियाँ
अनियंत्रित आर्थिक गतिविधियाँ, जैसे कि अत्यधिक उपभोगवाद और आर्थिक असमानता, राष्ट्र को खोखला बना सकती हैं। ये सामाजिक विभाजन को बढ़ावा देते हैं और राष्ट्र की एकता को कमजोर करते हैं। अनियंत्रित आर्थिक गतिविधियाँ भी राष्ट्र को खोखला करती हैं। श्रीलंका की आर्थिक नीतियों ने इसी दिशा में काम किया, जिससे राष्ट्र अस्थिर हुआ। राष्ट्र निर्माण एक सतत प्रक्रिया है, जिसमें चुनौतियां और अवसर दोनों शामिल हैं, लेकिन इनके बीच संतुलन ही राष्ट्र को बचा सकती है।
आर्थिक विकास बहुत घातक चीज है – क्योंकि यह नागरिकों लालची, निकम्मा और अतिआशावादी बनाता है। पूंजीवादी समाज का लक्ष्य केवल लाभ कमाना है,उन्हें आपके राष्ट्र की समृद्धि से कुछ लेना देना नहीं है। सावधानी बरतनी चाहिए।
(लेखक – पत्रकार एवं सामाजिक विषयों के जानकार हैं)