- भारत बना बाघों की संख्या बढ़कर तीन हजार पार हुई, यह बाघों के संरक्षण की दिशा में शानदार पहल है।
प्रोजेक्ट टाइगर के सफलतम 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 में ‘अमृत काल का टाइगर विजन’ जारी किया। प्रोजेक्ट टाइगर किसी वन्य प्राणी के संरक्षण की दिशा में सुनियोजित प्रयास की अद्भुत मिसाल है। ऐसी परियोजनाएँ दुनियाभर में कहीं और देखने को नहीं मिलती है। इसी प्रोजेक्ट की बदौलत आज भारत में बाघों की संख्या दुनिया के कुल बाघों की करीब दो तिहाई तक पहुँच गई है। यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
प्रोजेक्ट टाइगर ने अभी हाल ही में पचास वर्ष पूरे कर लिए हैं। उन्नीस सौ सत्तर के दशक की शुरुआत में इसका विभिन्न राज्यों के नौ टाइगर रिजर्व में शुभारंभ किया गया था। अब इस प्रोजेक्ट का दायरा वर्तमान में अठारह राज्यों के 53 टाइगर रिजर्व में विस्तार पा चुका है। ये रिजर्व विभिन्न वन प्रकारों के अत्यधिक ऊँचाई से लेकर समुद्र तल तक में स्थित हैं और अपने आप में विशेष पारिस्थितिकीय विशेषताएँ समेटे हुए हैं।
पैमाने, आकार और प्रयासों के संदर्भ में देखा जाय तो वन्य जीव संरक्षण को लेकर इस प्रोजेक्ट के माध्यम से सफलता की अद्भुत इबारत लिखी गई है और दुनिया में इसका कोई मुकाबला नहीं है।
1973 में प्रोजेक्ट टाइगर शुरू हुआ था
किसी समय भारत में बाघों की संख्या हजारों में हुआ करती थी। कुछ समय तक फिर एक समय इनकी संख्या तीन अंकों में आ कर सिमट गई थी। तब बाघों को उनके रहने की जगह पर ही संरक्षित करने और उनकी संख्या बढ़ाने के मकसद से 1 अप्रैल 1973 को प्रोजेक्ट टाइगर शुरू किया गया।
आज इस प्रोजेक्ट के तहत 75,796.83 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र कवर होता है। यह हमारे देश के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 2.3 फीसदी है। किसी प्राणी के संरक्षण का विश्व स्तर पर यह ऐसा सफल उदाहरण है। इसमें केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकारों ने मिलकर उल्लेखनीय एवं सराहनीय काम किया है। वन्यजीव के मुद्दे के समवर्ती सूची में शामिल होने से केंद्र को कानून व नियम-कायदों को लागू कराने और फंडिंग मुहैया करवाने में मदद मिली।
टाइगर स्टेट्स ने भी अपनी ओर से मैचिंग ग्रांट्स उपलब्ध करवाकर सपोर्ट मुहैया करवाया है।
प्रयासों की श्रृंखला
- सबसे पहले बाघों के कोर एरिया में उनकी सुरक्षा के प्रयास किए गए। ये प्रयास दो स्तर पर किए गए।
- एक, शिकारियों से बचाना, सुरक्षा प्रणालियों का सुदृढ़ीकरण करना, संचार व्यवस्था स्थापित करना, दैनिक गश्ती की व्यवस्था करना, नैसर्गिक आवास का विकास करना तथा दूसरा, बाघ रहवासी क्षेत्रों के समीप स्थानीय लोगों की बसावट के कारण होने वाले बाघ-मानव संघर्ष को रोकना।
- स्थानीय लोगों को समझाइश से बाघ क्षेत्रों से हटाकर उनका पुनर्वास किया गया और उनके लिए पर्याप्त रोजगार की व्यवस्था की गई।
- बाघ क्षेत्रों में आगजनी व बाढ़ से बचाव के प्रबंध किए गए। बाघों की बीमारी पर निगरानी रखी गई। इसके लिए सैटेलाइट माइक्रो कोर्स स्थापित किए गए।
दूसरी परियोजनाओं का अनुभव
प्रोजेक्ट टाइगर किसी भी प्राणी के संरक्षण को लेकर एक शानदार लर्निंग रहा है। वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के साथ मिलकर यह एक रोल मॉडल के रूप में सामने आया है, जिसमें ढेर सारे अच्छे सबक मिले हैं। किसी प्राणी का उसी के आवास स्थलों पर किस तरह से संरक्षण किया जा सकता है, प्रोजेक्ट ने यह सिखाया है।
मनुष्य और जंगली प्राणियों के बीच टकराव का प्रबंधन किस तरह किया जा सकता है, वह जंगली हाथियों की समस्या से निपटने में कारगर हो सकता है।
हाल ही में भारत में नामीबिया से चीते लाए गए हैं। चीतों का संरक्षण और उनकी आबादी को बढ़ाने में प्रोजेक्ट टाइगर के अनुभव अवश्य काम आएँगे। प्रोजेक्ट टाइगर के अनुभवों का फायदा अन्य टाइगर रैंज देश भी उठा सकते हैं। भारत ने हाल ही में कंबोडिया में बाघों के संरक्षण को लेकर समझौता किया है। यह दक्षिण पूर्वी एशियाई क्षेत्रों के लिए काफी महत्वपूर्ण है।
ऐसे बढ़ी बाघों की आबादी
क्रम | वर्ष | बाघों की आबादी |
1. | 2006 | 1411 |
2. | 2010 | 1706 |
3. | 2014 | 2226 |
4. | 2018 | 2967 |
5. | 2022 | 3167 |
स्थायी बाघ आबादी की जरूरत
ऑल इंडिया टाइगर एस्टिमेशन की ताजा रिपोर्ट (2022) के अनुसार हमारे यहां बाघों की संख्या तीन हजार को पार कर चुकी है। इसलिए बाघों के संदर्भ में हम कह सकते हैं कि हमारी इकोलॉजिकल क्षमता के हम करीब पहुँचते जा रहे हैं। अगर हमारे सभी टाइगर रिजर्व पूरी सक्रियता के साथ काम करें, तब भी हमारे यहाँ बाघों की अधिकतम संख्या 4,000 से 4,500 से ऊपर नहीं जा सकती। ऐसे में हमें स्थाई बाघ आबादी की आवश्यकता है।
भारत में वर्ष 2018 में राज्यवार बाघों की संख्या
क्रम | राज्य | संख्या |
1. | उत्तराखंड | 442 |
2. | असम | 190 |
3. | मध्यप्रदेश | 526 |
4. | उत्तरप्रदेश | 173 |
5. | महाराष्ट्र | 312 |
6. | कर्नाटक | 524 |
7. | केरल | 190 |
8. | तमिलनाडु | 264 |
प्रोजेक्ट टाइगर से विविध फायदे
प्रोजेक्ट टाइगर की बदौलत आज दुनियाभर में पाए जाने वाले कुल बाघों का लगभग 75 फीसदी बाघ भारत में रहते हैं। पिछले डेढ़ दशक में भारत में बाघों की संख्या में भी ढाई गुनी वृद्धि हुई है। साल 2006 में जहाँ बाघों की संख्या केवल 1,411 थी, वहीं 2022 में इनकी संख्या अधिकतम स्तर बढ़कर 3,167 पर पहुँच गई है। लेकिन प्रोजेक्ट टाइगर के फायदे केवल बाघों की संख्या तक सीमित न होकर कहीं व्यापक हैं:
- सस्टेनेबल इकोसिस्टम सर्विसेस में मिली मदद
इकोसिस्टम सर्विसेज का मतलब है कि इकोसिस्टम या पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा मनुष्यों के भले और उनके जँवन की गुणवत्ता के लिए उपलब्ध करवाई जाने वालीं सेवाएं, जैसे भोजन, पानी, स्वच्छ हवा आदि। प्रोजेक्ट टाइगर ने सस्टेनेबल इकोसिस्टम सर्विसेस में मदद की है।
- जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन में सहायता
जिन जंगलों में बाघों की संख्या ज्यादा है, वहां कॉर्बन सीक्वेस्ट्रैशन में मदद मिली है। कॉर्बन सीक्वेस्ट्रैशन वह नेचुरल प्रोसेस होती है, जिसमें कॉर्बन डायऑक्साइड पेड़ों के तनों और जंगलों की सतह में स्टोर हो जाती है। इससे अतिरिक्त कॉर्बन डायऑक्साइड वातावरण में नहीं जा पाती है और ग्रीनहाउस गैसों का प्रभाव कम होता है। जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) के असर को कम करने में भी मदद मिलती है।
3. स्थानीय लोगों के लिए रोजगार एवं आय का सृजन
प्रोजेक्ट टाइगर की वजह से परियोजना वाले क्षेत्रों में लोगों के लिए रोजगार व आय का भी सृजन हुआ है। इस पर केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा जो खर्च किया गया है, उससे सालाना 50 लाख मानव दिवस श्रम पैदा होता है।
75 प्रतिशत बाघ भारत में (बाघों का देशवार वितरण)
क्रम | देश | बाघों की संख्या |
1. | भारत | 3,167 |
2. | रूस | 500 |
3. | इंडोनेशिया | 393 |
4. | नेपाल | 355 |
5. | थाईलैंड | 161 |
अमृत काल का टाइगर विजन
अमृत काल का टाइगर विजन भारत में टाइगर परिवार की संरक्षण को समर्पित एक ऐतिहासिक पहल है। इसका मुख्य उद्देश्य भारत के प्रमुख टाइगर अभयारण्यों में टाइगरों की संख्या को दोबारा बढ़ाना और टाइगरों के विस्तार को बढ़ाना है। इस पहल के तहत, टाइगर के जीवन समर्थक विभिन्न अभियांत्रिकी, समुद्री संचार, बायोमेट्रिक्स, न्यूरो-इमेजिंग और अन्य तकनीकों का उपयोग करते हुए टाइगरों के जीवन को सुरक्षित बनाने के लिए काम किया जाता है। इसके साथ ही, प्रदेश सरकारों, स्थानीय समुदायों, वन्यजीव व्यवस्थापकों और अन्य संगठनों को भी इस योजना में सम्मिलित किया जाता है।
बाघों की संरक्षण की आवश्यकता क्यों
बाघों का संरक्षण बहुत आवश्यक है। यह एक महत्वपूर्ण वन्य जीव है। यह जानवर हमारी पृथ्वी के जंगलों में सबसे शक्तिशाली और आकर्षक शेरों में से एक हैं। ये जंगली जानवर वनों में अपने आवास में रहते हैं और शिकार करते हैं। बाघों का संरक्षण भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वे एक विलुप्त होती जा रही जाति हैं। इसके पीछे कुछ मुख्य कारण हैं जैसे वनों का कटाव, उनके आवास के नुकसान, अवैध शिकार, बाघों की बिक्री और वाणिज्यिक विकास।
इन सभी कारणों के कारण बाघों की संख्या बहुत तेजी से कम हो रही है और वे अब बहुत ज्यादा समय तक बचेंगे या नहीं, यह अज्ञात है। इसलिए, बाघों का संरक्षण हमारी जिम्मेदारी है, जो न केवल इन जंगली जानवरों के लिए बल्कि इनकी जंगलों की सुरक्षा के लिए भी आवश्यक है।
कर्नाटक के मैसूर में ‘प्रोजेक्ट टाइगर के 50 वर्ष पूरे होने के स्मरणोत्सव’
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 9 अप्रैल 2023 के दिन कर्नाटक के मैसूर में मैसूर विश्वविद्यालय में आयोजित ‘प्रोजेक्ट टाइगर के 50 वर्ष पूरे होने के स्मरणोत्सव’ कार्यक्रम का उद्घाटन किया था। उस अवसर पर प्रधानमंत्री ने इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस (आईबीसीए) का भी शुभारंभ किया। उन्होंने ‘अमृत काल का विजन फॉर टाइगर कंजर्वेशन’ तथा टाइगर रिजर्व के प्रबंधन प्रभावशीलता मूल्यांकन के पांचवें चक्र की एक सारांश रिपोर्ट का लोकार्पण किया था।
स्मारक शिक्का
बाघों की संख्या की घोषणा की और अखिल भारतीय बाघ अनुमान (पाचवां चक्र) की सारांश रिपोर्ट जारी कीगई है। प्रोजेक्ट टाइगर के 50 साल पूरे होने पर एक स्मारक सिक्का भी जारी किया गया है।
ऐतिहासिक घटना
सभा को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री ने भारत में बाघों की बढ़ती आबादी के गौरवपूर्ण क्षण की चर्चा की और खड़े होकर बाघों के प्रति सम्मान दर्शाते हुए इसकी सराहना की। उन्होंने कहा कि प्रोजेक्ट टाइगर के आज 50 साल पूरे होने की ऐतिहासिक घटना का हर कोई गवाह है।
भारत के लिए गौरव के क्षण
उन्होंने कहा कि इस प्रोजेक्ट की सफलता न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए गर्व का क्षण है। प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि भारत ने न केवल बाघों की आबादी को घटने से बचाया है बल्कि बाघों को फल-फूलने के लिए एक बेहतरीन इकोसिस्टम भी प्रदान किया है।
75,000 वर्ग किलोमीटर में बाघ अभयारण्य
प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि भारत की आजादी के 75वें वर्ष में दुनिया की 75 प्रतिशत बाघों की आबादी भारत में ही रहती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह भी एक सुखद संयोग है कि भारत में बाघ अभयारण्य 75,000 वर्ग किलोमीटर भूमि पर फैले हैं और पिछले दस से बारह वर्षों में देश में बाघों की आबादी में 75 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
भारत का वन्यजीव प्रेम
दुनिया भर के वन्यजीव प्रेमियों के मन में अन्य देशों, जहां बाघों की आबादी या तो स्थिर है या फिर उसमे गिरावट में हो रही है, की तुलना में भारत में बाघों की बढ़ती आबादी के बारे में उठने वाले सवालों को दोहराते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि इसका जवाब भारत की परंपराओं एवं संस्कृति और जैव विविधता एवं पर्यावरण के प्रति इसके नैसर्गिक प्रेम में निहित है।
भारत के इतिहास में बाघों का महत्व
प्रधानमंत्री ने कहा, “भारत इकोलॉजी और अर्थव्यवस्था के बीच संघर्ष में विश्वास नहीं करता बल्कि वह दोनों के सह-अस्तित्व को समान महत्व देता है।” भारत के इतिहास में बाघों के महत्व को याद करते हुए, प्रधानमंत्री ने इस तथ्य का उल्लेख किया कि मध्य प्रदेश में दस हजार साल पुरानी रॉक (शैल चित्र) कला में बाघों का चित्रण पाया गया है।
बाघों की पूजा
उन्होंने यह भी कहा कि मध्य भारत के भरिया समुदाय और महाराष्ट्र के वर्ली समुदाय के लोग जहां बाघ की पूजा करते हैं, वहीं भारत के कई अन्य समुदाय बाघ को दोस्त और भाई मानते हैं। उन्होंने आगे कहा कि मां दुर्गा और भगवान अयप्पा की सवारी बाघ है।
वैश्विक जैव विविधता में आठ प्रतिशत का योगदान
वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में भारत की अनूठी उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा, “भारत एक ऐसा देश है जहां प्रकृति की रक्षा करना संस्कृति का एक हिस्सा है।” उन्होंने इस तथ्य का उल्लेख किया कि भारत के पास दुनिया की कुल भूमि का केवल 2.4 प्रतिशत हिस्सा ही है, लेकिन यह ज्ञात वैश्विक जैव विविधता में आठ प्रतिशत का योगदान देता है। उन्होंने कहा कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा टाइगर रेंज वाला देश है। लगभग तीस हजार हाथियों के साथ यह दुनिया का सबसे बड़ा एशियाई एलीफैंट रेंज वाला देश है और यह एक-सींग वाले गैंडों की सबसे बड़ी आबादी वाला सबसे बड़ा देश भी है।
भारत एशियाई शेरों वाला एकमात्र देश
एक-सींग वाले गैंडों की संख्या यहां लगभग तीन हजार है। उन्होंने आगे कहा कि भारत एशियाई शेरों वाला दुनिया का एकमात्र देश है और इन शेरों की आबादी 2015 में लगभग 525 से बढ़कर 2020 में लगभग 675 हो गई है। उन्होंने भारत की तेंदुओं की आबादी का भी उल्लेख किया और कहा कि चार वर्षों में इसमें 60 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है।
गंगा नदी की सफाई
गंगा जैसी नदियों को साफ करने के लिए किए जा रहे कार्यों का उल्लेख करते हुए, प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कुछ जलीय प्रजातियां जिन्हें कभी खतरे में माना जाता था, उनकी संख्या में सुधार हुआ है। उन्होंने इन उपलब्धियों का श्रेय लोगों की भागीदारी और संरक्षण की संस्कृति को दिया।
इकोलाजी की आवश्यकता
भारत में किए गए विभिन्न कार्यों का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, “वन्यजीवों के फलने-फूलने के लिए इकोलॉजी का फलना-फूलना जरूरी है।” उन्होंने इस तथ्य का उल्लेख किया कि भारत ने रामसर साइटों की अपनी सूची में 11 वेटलैंड को जोड़ा है, जिससे यहां रामसर साइटों की कुल संख्या 75 हो गई है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत ने 2019 की तुलना में 2021 तक 2200 वर्ग किलोमीटर से अधिक भूमि को वन एवं वृक्षों से आच्छादित किया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले दशक में सामुदायिक रिजर्व की संख्या 43 से बढ़कर 100 से अधिक हो गई और वैसे राष्ट्रीय उद्यानों एवं अभ्यारण्यों, जिनके आसपास इको-सेंसिटिव जोन अधिसूचित किए गए थे, की संख्या 9 से बढ़कर 468 हो गई है और ऐसा सिर्फ एक दशक में हुआ है।
गुजरात में वन्यजीव संरक्षण
गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में वन्यजीवों के संरक्षण से जुड़े अपने अनुभवों को याद करते हुए, प्रधानमंत्री ने शेरों की आबादी बढ़ाने की दिशा में किए गए कार्यों का उल्लेख किया और इस बात पर जोर दिया कि एक भौगोलिक क्षेत्र तक सीमित रखकर एक जंगली जानवर को नहीं बचाया जा सकता है। उन्होंने स्थानीय लोगों और वन्यजीवों के बीच भावनाओं के साथ-साथ अर्थव्यवस्था का एक संबंध बनाने की जरूरत पर बल दिया।
गुजरात में वन्यजीव मित्र कार्यक्रम
प्रधानमंत्री ने गुजरात में वन्यजीव मित्र कार्यक्रम शुरू किए जाने के बारे में प्रकाश डाला जहां शिकार जैसी गतिविधियों की निगरानी के लिए नकद इनाम का प्रोत्साहन दिया गया। उन्होंने गिर के शेरों के लिए एक पुनर्वास केंद्र खोलने और गिर क्षेत्र में वन विभाग में महिला बीट गार्ड और वनकर्मियों की भर्ती का भी उल्लेख किया। उन्होंने पर्यटन और इकोटूरिज्म के उस विशाल इकोसिस्टम पर भी प्रकाश डाला जिसे अब गिर में स्थापित किया जा चुका है।
प्रधानमंत्री ने इस तथ्य को दोहराया कि प्रोजेक्ट टाइगर की सफलता के कई आयाम हैं और इसने पर्यटकों की गतिविधियों व जागरूकता कार्यक्रमों में वृद्धि की है और टाइगर रिजर्व के भीतर मानव-पशु संघर्ष में कमी लाई है। श्री मोदी ने कहा, “बिग कैट की मौजूदगी ने हर जगह स्थानीय लोगों के जीवन और वहां की इकोलॉजी पर सकारात्मक असर डाला है।”
दशकों पहले भारत में चीता के विलुप्त हो जाने के तथ्य पर प्रकाश डालते हुए, प्रधानमंत्री ने नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से भारत लाए गए चीतों का उल्लेख करते हुए बिग कैट के पहले सफल ट्रांस-कॉन्टिनेंटल ट्रांसलोकेशन की चर्चा की। उन्होंने याद दिलाया कि कुनो राष्ट्रीय उद्यान में कुछ दिन पहले चार सुंदर चीता शावकों का जन्म हुआ है। उन्होंने कहा कि करीब 75 साल पहले विलुप्त होने के बाद चीते ने भारत की धरती पर जन्म लिया है। उन्होंने जैव विविधता के संरक्षण और समृद्धि के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग के महत्व पर बल दिया।
सार्वभौमिक मुद्दाः जीव संरक्षण
प्रधानमंत्री ने एक अंतरराष्ट्रीय गठबंधन की जरूरत पर बल देते हुए कहा, “वन्यजीव संरक्षण किसी एक देश का मुद्दा नहीं है, बल्कि एक सार्वभौमिक मुद्दा है।” उन्होंने बताया कि वर्ष 2019 में, उन्होंने वैश्विक बाघ दिवस के अवसर पर एशिया में अवैध वन्यजीव व्यापार और अवैध शिकार के खिलाफ एक गठबंधन बनाने का आह्वान किया था। उन्होंने कहा कि इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस इसी भावना का विस्तार है। इसके लाभों को रेखांकित करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत सहित विभिन्न देशों के अनुभवों से उभरे संरक्षण एवं सुरक्षा संबंधी एजेंडे को आसानी से लागू करते हुए बिग कैट से जुड़े पूरे इकोसिस्टम के लिए वित्तीय और तकनीकी संसाधन जुटाना आसान होगा।
इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस
प्रधानमंत्री ने कहा, “इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस का फोकस बाघ, शेर, तेंदुआ, हिम तेंदुआ, प्यूमा, जगुआर और चीता सहित दुनिया के सात प्रमुख बिग कैट के संरक्षण पर होगा।” उन्होंने बताया कि बिग कैट के निवास स्थान वाले देश इस गठबंधन का हिस्सा होंगे। उन्होंने आगे विस्तार से बताया कि इसमें सभी सदस्य देश अपने अनुभवों को साझा करने में सक्षम होंगे, अपने साथी देश की अधिक तेज़ी से मदद कर सकेंगे और अनुसंधान, प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण पर जोर दे सकेंगे। श्री मोदी ने कहा, “साथ मिलकर हम इन प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाएंगे और एक सुरक्षित एवं स्वस्थ इकोलॉजी का निर्माण करेंगे।”
एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य
जी20 की भारत की अध्यक्षता के लिए ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ के आदर्श वाक्य पर प्रकाश डालते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि यह इस संदेश को आगे बढ़ाता है कि मानवता का बेहतर भविष्य तभी संभव है, जब हमारा पर्यावरण सुरक्षित रहे और हमारी जैव विविधता का विस्तार होता रहे। उन्होंने दोहराया, “यह जिम्मेदारी हम सभी की है, यह जिम्मेदारी पूरी दुनिया की है।” कॉप-26 का उल्लेख करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत ने बड़े एवं महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए हैं और आपसी सहयोग में विश्वास व्यक्त किया है जो पर्यावरण संरक्षण के हर लक्ष्य को प्राप्त करने में मददगार साबित हो सकता है।
द एलिफेंट व्हिस्पर्स
इस अवसर पर आए विदेशी मेहमानों और गणमान्य व्यक्तियों को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री ने उनसे भारत के जनजातीय समाज के जीवन एवं परंपराओं से कुछ सीख लेने का आग्रह किया। उन्होंने सह्याद्री और पश्चिमी घाट के उन इलाकों पर प्रकाश डाला जो जनजातीय लोगों के निवास स्थान रहे हैं और कहा कि वे सदियों से बाघ सहित हर जैव विविधता को समृद्ध करने में लगे हुए हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यहाँ के जनजातीय समाज की प्रकृति से पारस्परिक लेन-देन की संतुलनकारी परंपरा को अपनाया जा सकता है। अपने संबोधन का समापन करते हुए, प्रधानमंत्री ने ऑस्कर पुरस्कार प्राप्त वृत्तचित्र ‘द एलिफेंट व्हिस्पर्स’ का उल्लेख किया और कहा कि यह प्रकृति और प्राणी के बीच अद्भुत संबंधों की हमारी विरासत को दर्शाता है। प्रधानमंत्री ने कहा, “जनजातीय समाज की जीवन शैली मिशन लाइफ यानी पर्यावरण के लिए जीवन शैली के दृष्टिकोण को समझने में भी बहुत मदद करती है।”
पृष्ठभूमि
प्रधानमंत्री ने अंतरराष्ट्रीय बिग कैट एलायंस (आईबीसीए) का शुभारंभ किया। जुलाई 2019 में, प्रधानमंत्री ने एशिया में वन्यजीवों के अवैध शिकार और अवैध व्यापार से जुड़ी मांग को समाप्त करने और उसपर दृढ़ता से अंकुश लगाने के लिए वैश्विक नेताओं के गठबंधन का आह्वान किया था। प्रधानमंत्री के इसी संदेश को आगे बढ़ाते हुए, अंतरराष्ट्रीय बिग कैट एलायंस का शुभारंभ किया जा रहा है, जो दुनिया की सात प्रमुख बिग कैट यानी बाघ, शेर, तेंदुआ, हिम तेंदुआ, प्यूमा, जगुआर और चीता के संरक्षण और सुरक्षा पर ध्यान केन्द्रित करेगा और इसके सदस्यों में इन प्रजातियों को शरण देने वाले देश शामिल होंगे।
(इंडिया सीएसआर एवं डा. राजेश गोपाल का आलेख।)
(डॉ. राजेश गोपाल ग्लोबल टाइगर फोरम के सेक्रेटरी जनरल है। ये इससे पहले नेशनल टाइगर कंर्जेवेशन अथॉरिटी (NTCA) के मेंबर सेक्रेटरी रहे हैं। कान्हा एवं बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर सहित बाघ संरक्षण के क्षेत्र में पिछले 35 वर्षों से सक्रिय हैं। )
- भारत बना बाघों की संख्या बढ़कर तीन हजार पार हुई, यह बाघों के संरक्षण की दिशा में शानदार पहल है।
प्रोजेक्ट टाइगर के सफलतम 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 में ‘अमृत काल का टाइगर विजन’ जारी किया। प्रोजेक्ट टाइगर किसी वन्य प्राणी के संरक्षण की दिशा में सुनियोजित प्रयास की अद्भुत मिसाल है। ऐसी परियोजनाएँ दुनियाभर में कहीं और देखने को नहीं मिलती है। इसी प्रोजेक्ट की बदौलत आज भारत में बाघों की संख्या दुनिया के कुल बाघों की करीब दो तिहाई तक पहुँच गई है। यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
प्रोजेक्ट टाइगर ने अभी हाल ही में पचास वर्ष पूरे कर लिए हैं। उन्नीस सौ सत्तर के दशक की शुरुआत में इसका विभिन्न राज्यों के नौ टाइगर रिजर्व में शुभारंभ किया गया था। अब इस प्रोजेक्ट का दायरा वर्तमान में अठारह राज्यों के 53 टाइगर रिजर्व में विस्तार पा चुका है। ये रिजर्व विभिन्न वन प्रकारों के अत्यधिक ऊँचाई से लेकर समुद्र तल तक में स्थित हैं और अपने आप में विशेष पारिस्थितिकीय विशेषताएँ समेटे हुए हैं।
पैमाने, आकार और प्रयासों के संदर्भ में देखा जाय तो वन्य जीव संरक्षण को लेकर इस प्रोजेक्ट के माध्यम से सफलता की अद्भुत इबारत लिखी गई है और दुनिया में इसका कोई मुकाबला नहीं है।
1973 में प्रोजेक्ट टाइगर शुरू हुआ था
किसी समय भारत में बाघों की संख्या हजारों में हुआ करती थी। कुछ समय तक फिर एक समय इनकी संख्या तीन अंकों में आ कर सिमट गई थी। तब बाघों को उनके रहने की जगह पर ही संरक्षित करने और उनकी संख्या बढ़ाने के मकसद से 1 अप्रैल 1973 को प्रोजेक्ट टाइगर शुरू किया गया।
आज इस प्रोजेक्ट के तहत 75,796.83 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र कवर होता है। यह हमारे देश के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 2.3 फीसदी है। किसी प्राणी के संरक्षण का विश्व स्तर पर यह ऐसा सफल उदाहरण है। इसमें केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकारों ने मिलकर उल्लेखनीय एवं सराहनीय काम किया है। वन्यजीव के मुद्दे के समवर्ती सूची में शामिल होने से केंद्र को कानून व नियम-कायदों को लागू कराने और फंडिंग मुहैया करवाने में मदद मिली।
टाइगर स्टेट्स ने भी अपनी ओर से मैचिंग ग्रांट्स उपलब्ध करवाकर सपोर्ट मुहैया करवाया है।
प्रयासों की श्रृंखला
- सबसे पहले बाघों के कोर एरिया में उनकी सुरक्षा के प्रयास किए गए। ये प्रयास दो स्तर पर किए गए।
- एक, शिकारियों से बचाना, सुरक्षा प्रणालियों का सुदृढ़ीकरण करना, संचार व्यवस्था स्थापित करना, दैनिक गश्ती की व्यवस्था करना, नैसर्गिक आवास का विकास करना तथा दूसरा, बाघ रहवासी क्षेत्रों के समीप स्थानीय लोगों की बसावट के कारण होने वाले बाघ-मानव संघर्ष को रोकना।
- स्थानीय लोगों को समझाइश से बाघ क्षेत्रों से हटाकर उनका पुनर्वास किया गया और उनके लिए पर्याप्त रोजगार की व्यवस्था की गई।
- बाघ क्षेत्रों में आगजनी व बाढ़ से बचाव के प्रबंध किए गए। बाघों की बीमारी पर निगरानी रखी गई। इसके लिए सैटेलाइट माइक्रो कोर्स स्थापित किए गए।
दूसरी परियोजनाओं का अनुभव
प्रोजेक्ट टाइगर किसी भी प्राणी के संरक्षण को लेकर एक शानदार लर्निंग रहा है। वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के साथ मिलकर यह एक रोल मॉडल के रूप में सामने आया है, जिसमें ढेर सारे अच्छे सबक मिले हैं। किसी प्राणी का उसी के आवास स्थलों पर किस तरह से संरक्षण किया जा सकता है, प्रोजेक्ट ने यह सिखाया है।
मनुष्य और जंगली प्राणियों के बीच टकराव का प्रबंधन किस तरह किया जा सकता है, वह जंगली हाथियों की समस्या से निपटने में कारगर हो सकता है।
हाल ही में भारत में नामीबिया से चीते लाए गए हैं। चीतों का संरक्षण और उनकी आबादी को बढ़ाने में प्रोजेक्ट टाइगर के अनुभव अवश्य काम आएँगे। प्रोजेक्ट टाइगर के अनुभवों का फायदा अन्य टाइगर रैंज देश भी उठा सकते हैं। भारत ने हाल ही में कंबोडिया में बाघों के संरक्षण को लेकर समझौता किया है। यह दक्षिण पूर्वी एशियाई क्षेत्रों के लिए काफी महत्वपूर्ण है।
ऐसे बढ़ी बाघों की आबादी
क्रम | वर्ष | बाघों की आबादी |
1. | 2006 | 1411 |
2. | 2010 | 1706 |
3. | 2014 | 2226 |
4. | 2018 | 2967 |
5. | 2022 | 3167 |
स्थायी बाघ आबादी की जरूरत
ऑल इंडिया टाइगर एस्टिमेशन की ताजा रिपोर्ट (2022) के अनुसार हमारे यहां बाघों की संख्या तीन हजार को पार कर चुकी है। इसलिए बाघों के संदर्भ में हम कह सकते हैं कि हमारी इकोलॉजिकल क्षमता के हम करीब पहुँचते जा रहे हैं। अगर हमारे सभी टाइगर रिजर्व पूरी सक्रियता के साथ काम करें, तब भी हमारे यहाँ बाघों की अधिकतम संख्या 4,000 से 4,500 से ऊपर नहीं जा सकती। ऐसे में हमें स्थाई बाघ आबादी की आवश्यकता है।
भारत में वर्ष 2018 में राज्यवार बाघों की संख्या
क्रम | राज्य | संख्या |
1. | उत्तराखंड | 442 |
2. | असम | 190 |
3. | मध्यप्रदेश | 526 |
4. | उत्तरप्रदेश | 173 |
5. | महाराष्ट्र | 312 |
6. | कर्नाटक | 524 |
7. | केरल | 190 |
8. | तमिलनाडु | 264 |
प्रोजेक्ट टाइगर से विविध फायदे
प्रोजेक्ट टाइगर की बदौलत आज दुनियाभर में पाए जाने वाले कुल बाघों का लगभग 75 फीसदी बाघ भारत में रहते हैं। पिछले डेढ़ दशक में भारत में बाघों की संख्या में भी ढाई गुनी वृद्धि हुई है। साल 2006 में जहाँ बाघों की संख्या केवल 1,411 थी, वहीं 2022 में इनकी संख्या अधिकतम स्तर बढ़कर 3,167 पर पहुँच गई है। लेकिन प्रोजेक्ट टाइगर के फायदे केवल बाघों की संख्या तक सीमित न होकर कहीं व्यापक हैं:
- सस्टेनेबल इकोसिस्टम सर्विसेस में मिली मदद
इकोसिस्टम सर्विसेज का मतलब है कि इकोसिस्टम या पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा मनुष्यों के भले और उनके जँवन की गुणवत्ता के लिए उपलब्ध करवाई जाने वालीं सेवाएं, जैसे भोजन, पानी, स्वच्छ हवा आदि। प्रोजेक्ट टाइगर ने सस्टेनेबल इकोसिस्टम सर्विसेस में मदद की है।
- जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन में सहायता
जिन जंगलों में बाघों की संख्या ज्यादा है, वहां कॉर्बन सीक्वेस्ट्रैशन में मदद मिली है। कॉर्बन सीक्वेस्ट्रैशन वह नेचुरल प्रोसेस होती है, जिसमें कॉर्बन डायऑक्साइड पेड़ों के तनों और जंगलों की सतह में स्टोर हो जाती है। इससे अतिरिक्त कॉर्बन डायऑक्साइड वातावरण में नहीं जा पाती है और ग्रीनहाउस गैसों का प्रभाव कम होता है। जलवायु परिवर्तन (क्लाइमेट चेंज) के असर को कम करने में भी मदद मिलती है।
3. स्थानीय लोगों के लिए रोजगार एवं आय का सृजन
प्रोजेक्ट टाइगर की वजह से परियोजना वाले क्षेत्रों में लोगों के लिए रोजगार व आय का भी सृजन हुआ है। इस पर केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा जो खर्च किया गया है, उससे सालाना 50 लाख मानव दिवस श्रम पैदा होता है।
75 प्रतिशत बाघ भारत में (बाघों का देशवार वितरण)
क्रम | देश | बाघों की संख्या |
1. | भारत | 3,167 |
2. | रूस | 500 |
3. | इंडोनेशिया | 393 |
4. | नेपाल | 355 |
5. | थाईलैंड | 161 |
अमृत काल का टाइगर विजन
अमृत काल का टाइगर विजन भारत में टाइगर परिवार की संरक्षण को समर्पित एक ऐतिहासिक पहल है। इसका मुख्य उद्देश्य भारत के प्रमुख टाइगर अभयारण्यों में टाइगरों की संख्या को दोबारा बढ़ाना और टाइगरों के विस्तार को बढ़ाना है। इस पहल के तहत, टाइगर के जीवन समर्थक विभिन्न अभियांत्रिकी, समुद्री संचार, बायोमेट्रिक्स, न्यूरो-इमेजिंग और अन्य तकनीकों का उपयोग करते हुए टाइगरों के जीवन को सुरक्षित बनाने के लिए काम किया जाता है। इसके साथ ही, प्रदेश सरकारों, स्थानीय समुदायों, वन्यजीव व्यवस्थापकों और अन्य संगठनों को भी इस योजना में सम्मिलित किया जाता है।
बाघों की संरक्षण की आवश्यकता क्यों
बाघों का संरक्षण बहुत आवश्यक है। यह एक महत्वपूर्ण वन्य जीव है। यह जानवर हमारी पृथ्वी के जंगलों में सबसे शक्तिशाली और आकर्षक शेरों में से एक हैं। ये जंगली जानवर वनों में अपने आवास में रहते हैं और शिकार करते हैं। बाघों का संरक्षण भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वे एक विलुप्त होती जा रही जाति हैं। इसके पीछे कुछ मुख्य कारण हैं जैसे वनों का कटाव, उनके आवास के नुकसान, अवैध शिकार, बाघों की बिक्री और वाणिज्यिक विकास।
इन सभी कारणों के कारण बाघों की संख्या बहुत तेजी से कम हो रही है और वे अब बहुत ज्यादा समय तक बचेंगे या नहीं, यह अज्ञात है। इसलिए, बाघों का संरक्षण हमारी जिम्मेदारी है, जो न केवल इन जंगली जानवरों के लिए बल्कि इनकी जंगलों की सुरक्षा के लिए भी आवश्यक है।
कर्नाटक के मैसूर में ‘प्रोजेक्ट टाइगर के 50 वर्ष पूरे होने के स्मरणोत्सव’
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 9 अप्रैल 2023 के दिन कर्नाटक के मैसूर में मैसूर विश्वविद्यालय में आयोजित ‘प्रोजेक्ट टाइगर के 50 वर्ष पूरे होने के स्मरणोत्सव’ कार्यक्रम का उद्घाटन किया था। उस अवसर पर प्रधानमंत्री ने इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस (आईबीसीए) का भी शुभारंभ किया। उन्होंने ‘अमृत काल का विजन फॉर टाइगर कंजर्वेशन’ तथा टाइगर रिजर्व के प्रबंधन प्रभावशीलता मूल्यांकन के पांचवें चक्र की एक सारांश रिपोर्ट का लोकार्पण किया था।
स्मारक शिक्का
बाघों की संख्या की घोषणा की और अखिल भारतीय बाघ अनुमान (पाचवां चक्र) की सारांश रिपोर्ट जारी कीगई है। प्रोजेक्ट टाइगर के 50 साल पूरे होने पर एक स्मारक सिक्का भी जारी किया गया है।
ऐतिहासिक घटना
सभा को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री ने भारत में बाघों की बढ़ती आबादी के गौरवपूर्ण क्षण की चर्चा की और खड़े होकर बाघों के प्रति सम्मान दर्शाते हुए इसकी सराहना की। उन्होंने कहा कि प्रोजेक्ट टाइगर के आज 50 साल पूरे होने की ऐतिहासिक घटना का हर कोई गवाह है।
भारत के लिए गौरव के क्षण
उन्होंने कहा कि इस प्रोजेक्ट की सफलता न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए गर्व का क्षण है। प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि भारत ने न केवल बाघों की आबादी को घटने से बचाया है बल्कि बाघों को फल-फूलने के लिए एक बेहतरीन इकोसिस्टम भी प्रदान किया है।
75,000 वर्ग किलोमीटर में बाघ अभयारण्य
प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि भारत की आजादी के 75वें वर्ष में दुनिया की 75 प्रतिशत बाघों की आबादी भारत में ही रहती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह भी एक सुखद संयोग है कि भारत में बाघ अभयारण्य 75,000 वर्ग किलोमीटर भूमि पर फैले हैं और पिछले दस से बारह वर्षों में देश में बाघों की आबादी में 75 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
भारत का वन्यजीव प्रेम
दुनिया भर के वन्यजीव प्रेमियों के मन में अन्य देशों, जहां बाघों की आबादी या तो स्थिर है या फिर उसमे गिरावट में हो रही है, की तुलना में भारत में बाघों की बढ़ती आबादी के बारे में उठने वाले सवालों को दोहराते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि इसका जवाब भारत की परंपराओं एवं संस्कृति और जैव विविधता एवं पर्यावरण के प्रति इसके नैसर्गिक प्रेम में निहित है।
भारत के इतिहास में बाघों का महत्व
प्रधानमंत्री ने कहा, “भारत इकोलॉजी और अर्थव्यवस्था के बीच संघर्ष में विश्वास नहीं करता बल्कि वह दोनों के सह-अस्तित्व को समान महत्व देता है।” भारत के इतिहास में बाघों के महत्व को याद करते हुए, प्रधानमंत्री ने इस तथ्य का उल्लेख किया कि मध्य प्रदेश में दस हजार साल पुरानी रॉक (शैल चित्र) कला में बाघों का चित्रण पाया गया है।
बाघों की पूजा
उन्होंने यह भी कहा कि मध्य भारत के भरिया समुदाय और महाराष्ट्र के वर्ली समुदाय के लोग जहां बाघ की पूजा करते हैं, वहीं भारत के कई अन्य समुदाय बाघ को दोस्त और भाई मानते हैं। उन्होंने आगे कहा कि मां दुर्गा और भगवान अयप्पा की सवारी बाघ है।
वैश्विक जैव विविधता में आठ प्रतिशत का योगदान
वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में भारत की अनूठी उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा, “भारत एक ऐसा देश है जहां प्रकृति की रक्षा करना संस्कृति का एक हिस्सा है।” उन्होंने इस तथ्य का उल्लेख किया कि भारत के पास दुनिया की कुल भूमि का केवल 2.4 प्रतिशत हिस्सा ही है, लेकिन यह ज्ञात वैश्विक जैव विविधता में आठ प्रतिशत का योगदान देता है। उन्होंने कहा कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा टाइगर रेंज वाला देश है। लगभग तीस हजार हाथियों के साथ यह दुनिया का सबसे बड़ा एशियाई एलीफैंट रेंज वाला देश है और यह एक-सींग वाले गैंडों की सबसे बड़ी आबादी वाला सबसे बड़ा देश भी है।
भारत एशियाई शेरों वाला एकमात्र देश
एक-सींग वाले गैंडों की संख्या यहां लगभग तीन हजार है। उन्होंने आगे कहा कि भारत एशियाई शेरों वाला दुनिया का एकमात्र देश है और इन शेरों की आबादी 2015 में लगभग 525 से बढ़कर 2020 में लगभग 675 हो गई है। उन्होंने भारत की तेंदुओं की आबादी का भी उल्लेख किया और कहा कि चार वर्षों में इसमें 60 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है।
गंगा नदी की सफाई
गंगा जैसी नदियों को साफ करने के लिए किए जा रहे कार्यों का उल्लेख करते हुए, प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कुछ जलीय प्रजातियां जिन्हें कभी खतरे में माना जाता था, उनकी संख्या में सुधार हुआ है। उन्होंने इन उपलब्धियों का श्रेय लोगों की भागीदारी और संरक्षण की संस्कृति को दिया।
इकोलाजी की आवश्यकता
भारत में किए गए विभिन्न कार्यों का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, “वन्यजीवों के फलने-फूलने के लिए इकोलॉजी का फलना-फूलना जरूरी है।” उन्होंने इस तथ्य का उल्लेख किया कि भारत ने रामसर साइटों की अपनी सूची में 11 वेटलैंड को जोड़ा है, जिससे यहां रामसर साइटों की कुल संख्या 75 हो गई है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत ने 2019 की तुलना में 2021 तक 2200 वर्ग किलोमीटर से अधिक भूमि को वन एवं वृक्षों से आच्छादित किया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले दशक में सामुदायिक रिजर्व की संख्या 43 से बढ़कर 100 से अधिक हो गई और वैसे राष्ट्रीय उद्यानों एवं अभ्यारण्यों, जिनके आसपास इको-सेंसिटिव जोन अधिसूचित किए गए थे, की संख्या 9 से बढ़कर 468 हो गई है और ऐसा सिर्फ एक दशक में हुआ है।
गुजरात में वन्यजीव संरक्षण
गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में वन्यजीवों के संरक्षण से जुड़े अपने अनुभवों को याद करते हुए, प्रधानमंत्री ने शेरों की आबादी बढ़ाने की दिशा में किए गए कार्यों का उल्लेख किया और इस बात पर जोर दिया कि एक भौगोलिक क्षेत्र तक सीमित रखकर एक जंगली जानवर को नहीं बचाया जा सकता है। उन्होंने स्थानीय लोगों और वन्यजीवों के बीच भावनाओं के साथ-साथ अर्थव्यवस्था का एक संबंध बनाने की जरूरत पर बल दिया।
गुजरात में वन्यजीव मित्र कार्यक्रम
प्रधानमंत्री ने गुजरात में वन्यजीव मित्र कार्यक्रम शुरू किए जाने के बारे में प्रकाश डाला जहां शिकार जैसी गतिविधियों की निगरानी के लिए नकद इनाम का प्रोत्साहन दिया गया। उन्होंने गिर के शेरों के लिए एक पुनर्वास केंद्र खोलने और गिर क्षेत्र में वन विभाग में महिला बीट गार्ड और वनकर्मियों की भर्ती का भी उल्लेख किया। उन्होंने पर्यटन और इकोटूरिज्म के उस विशाल इकोसिस्टम पर भी प्रकाश डाला जिसे अब गिर में स्थापित किया जा चुका है।
प्रधानमंत्री ने इस तथ्य को दोहराया कि प्रोजेक्ट टाइगर की सफलता के कई आयाम हैं और इसने पर्यटकों की गतिविधियों व जागरूकता कार्यक्रमों में वृद्धि की है और टाइगर रिजर्व के भीतर मानव-पशु संघर्ष में कमी लाई है। श्री मोदी ने कहा, “बिग कैट की मौजूदगी ने हर जगह स्थानीय लोगों के जीवन और वहां की इकोलॉजी पर सकारात्मक असर डाला है।”
दशकों पहले भारत में चीता के विलुप्त हो जाने के तथ्य पर प्रकाश डालते हुए, प्रधानमंत्री ने नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से भारत लाए गए चीतों का उल्लेख करते हुए बिग कैट के पहले सफल ट्रांस-कॉन्टिनेंटल ट्रांसलोकेशन की चर्चा की। उन्होंने याद दिलाया कि कुनो राष्ट्रीय उद्यान में कुछ दिन पहले चार सुंदर चीता शावकों का जन्म हुआ है। उन्होंने कहा कि करीब 75 साल पहले विलुप्त होने के बाद चीते ने भारत की धरती पर जन्म लिया है। उन्होंने जैव विविधता के संरक्षण और समृद्धि के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग के महत्व पर बल दिया।
सार्वभौमिक मुद्दाः जीव संरक्षण
प्रधानमंत्री ने एक अंतरराष्ट्रीय गठबंधन की जरूरत पर बल देते हुए कहा, “वन्यजीव संरक्षण किसी एक देश का मुद्दा नहीं है, बल्कि एक सार्वभौमिक मुद्दा है।” उन्होंने बताया कि वर्ष 2019 में, उन्होंने वैश्विक बाघ दिवस के अवसर पर एशिया में अवैध वन्यजीव व्यापार और अवैध शिकार के खिलाफ एक गठबंधन बनाने का आह्वान किया था। उन्होंने कहा कि इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस इसी भावना का विस्तार है। इसके लाभों को रेखांकित करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत सहित विभिन्न देशों के अनुभवों से उभरे संरक्षण एवं सुरक्षा संबंधी एजेंडे को आसानी से लागू करते हुए बिग कैट से जुड़े पूरे इकोसिस्टम के लिए वित्तीय और तकनीकी संसाधन जुटाना आसान होगा।
इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस
प्रधानमंत्री ने कहा, “इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस का फोकस बाघ, शेर, तेंदुआ, हिम तेंदुआ, प्यूमा, जगुआर और चीता सहित दुनिया के सात प्रमुख बिग कैट के संरक्षण पर होगा।” उन्होंने बताया कि बिग कैट के निवास स्थान वाले देश इस गठबंधन का हिस्सा होंगे। उन्होंने आगे विस्तार से बताया कि इसमें सभी सदस्य देश अपने अनुभवों को साझा करने में सक्षम होंगे, अपने साथी देश की अधिक तेज़ी से मदद कर सकेंगे और अनुसंधान, प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण पर जोर दे सकेंगे। श्री मोदी ने कहा, “साथ मिलकर हम इन प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाएंगे और एक सुरक्षित एवं स्वस्थ इकोलॉजी का निर्माण करेंगे।”
एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य
जी20 की भारत की अध्यक्षता के लिए ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ के आदर्श वाक्य पर प्रकाश डालते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि यह इस संदेश को आगे बढ़ाता है कि मानवता का बेहतर भविष्य तभी संभव है, जब हमारा पर्यावरण सुरक्षित रहे और हमारी जैव विविधता का विस्तार होता रहे। उन्होंने दोहराया, “यह जिम्मेदारी हम सभी की है, यह जिम्मेदारी पूरी दुनिया की है।” कॉप-26 का उल्लेख करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत ने बड़े एवं महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किए हैं और आपसी सहयोग में विश्वास व्यक्त किया है जो पर्यावरण संरक्षण के हर लक्ष्य को प्राप्त करने में मददगार साबित हो सकता है।
द एलिफेंट व्हिस्पर्स
इस अवसर पर आए विदेशी मेहमानों और गणमान्य व्यक्तियों को संबोधित करते हुए, प्रधानमंत्री ने उनसे भारत के जनजातीय समाज के जीवन एवं परंपराओं से कुछ सीख लेने का आग्रह किया। उन्होंने सह्याद्री और पश्चिमी घाट के उन इलाकों पर प्रकाश डाला जो जनजातीय लोगों के निवास स्थान रहे हैं और कहा कि वे सदियों से बाघ सहित हर जैव विविधता को समृद्ध करने में लगे हुए हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यहाँ के जनजातीय समाज की प्रकृति से पारस्परिक लेन-देन की संतुलनकारी परंपरा को अपनाया जा सकता है। अपने संबोधन का समापन करते हुए, प्रधानमंत्री ने ऑस्कर पुरस्कार प्राप्त वृत्तचित्र ‘द एलिफेंट व्हिस्पर्स’ का उल्लेख किया और कहा कि यह प्रकृति और प्राणी के बीच अद्भुत संबंधों की हमारी विरासत को दर्शाता है। प्रधानमंत्री ने कहा, “जनजातीय समाज की जीवन शैली मिशन लाइफ यानी पर्यावरण के लिए जीवन शैली के दृष्टिकोण को समझने में भी बहुत मदद करती है।”
पृष्ठभूमि
प्रधानमंत्री ने अंतरराष्ट्रीय बिग कैट एलायंस (आईबीसीए) का शुभारंभ किया। जुलाई 2019 में, प्रधानमंत्री ने एशिया में वन्यजीवों के अवैध शिकार और अवैध व्यापार से जुड़ी मांग को समाप्त करने और उसपर दृढ़ता से अंकुश लगाने के लिए वैश्विक नेताओं के गठबंधन का आह्वान किया था। प्रधानमंत्री के इसी संदेश को आगे बढ़ाते हुए, अंतरराष्ट्रीय बिग कैट एलायंस का शुभारंभ किया जा रहा है, जो दुनिया की सात प्रमुख बिग कैट यानी बाघ, शेर, तेंदुआ, हिम तेंदुआ, प्यूमा, जगुआर और चीता के संरक्षण और सुरक्षा पर ध्यान केन्द्रित करेगा और इसके सदस्यों में इन प्रजातियों को शरण देने वाले देश शामिल होंगे।
(इंडिया सीएसआर एवं डा. राजेश गोपाल का आलेख।)
(डॉ. राजेश गोपाल ग्लोबल टाइगर फोरम के सेक्रेटरी जनरल है। ये इससे पहले नेशनल टाइगर कंर्जेवेशन अथॉरिटी (NTCA) के मेंबर सेक्रेटरी रहे हैं। कान्हा एवं बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर सहित बाघ संरक्षण के क्षेत्र में पिछले 35 वर्षों से सक्रिय हैं। )