कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व फंड के दुरुपयोग को रोकने के लिए नया नियम
हिमाचल प्रदेश सरकार ने कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) फंड के दुरुपयोग को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। अब सभी सीएसआर व्यय प्रस्तावों के लिए मुख्यमंत्री की पूर्व मंजूरी अनिवार्य होगी। यह फैसला राज्य के वित्त विभाग ने लिया है ताकि सीएसआर फंड का उपयोग पारदर्शी और प्रभावी ढंग से हो, और यह सुनिश्चित किया जाए कि ये फंड राज्य की विकास योजनाओं के साथ तालमेल बनाए रखें। यह कदम न केवल फिजूलखर्ची को रोकेगा, बल्कि समाज कल्याण के लिए कॉरपोरेट्स और सरकार के बीच सहयोग को और मजबूत करेगा।
नया नियम क्यों?
वित्त विभाग के प्रधान सचिव देवेश कुमार द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, कुछ मामलों में यह देखा गया है कि कंपनियां सीएसआर फंड का उपयोग उन कार्यक्रमों पर कर रही थीं, जो पहले से ही राज्य सरकार के बजट के तहत वित्त पोषित थे। इससे न केवल धन की बर्बादी हुई, बल्कि संसाधनों का दोहराव भी हुआ। कुछ कंपनियों ने अनावश्यक या गैर-जरूरी गतिविधियों पर सीएसआर फंड खर्च करने का दावा किया, जिससे इसकी प्रभावशीलता कम हुई। इस समस्या को दूर करने के लिए, सरकार ने सभी सीएसआर प्रस्तावों को मुख्यमंत्री के समक्ष अनुमोदन के लिए प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
भारत में सीएसआर खर्च को लेकर नियम पहले से ही सख्त हैं। कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत, 500 करोड़ रुपये से अधिक की नेटवर्थ, 1,000 करोड़ रुपये से अधिक का टर्नओवर, या 5 करोड़ रुपये से अधिक का शुद्ध लाभ वाली कंपनियों को अपने औसत शुद्ध लाभ का कम से कम 2% सीएसआर गतिविधियों पर खर्च करना होता है। हिमाचल प्रदेश में शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास जैसे क्षेत्रों में सीएसआर फंड का महत्वपूर्ण योगदान है, और यह नया नियम सुनिश्चित करेगा कि यह धनराशि सही दिशा में उपयोग हो।
कॉरपोरेट और सरकार के बीच बेहतर तालमेल
नया निर्देश कॉरपोरेट्स और राज्य सरकार के बीच सहयोग को और सुचारू बनाएगा। मुख्यमंत्री की मंजूरी की अनिवार्यता से यह सुनिश्चित होगा कि सीएसआर पहलें राज्य की मौजूदा योजनाओं के साथ मेल खाएं। उदाहरण के लिए, स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे जैसे क्षेत्रों में सीएसआर फंड से होने वाले कार्यक्रम अब राज्य के बजट आवंटन के साथ दोहराव से बचेंगे।
इसके अलावा, यह नियम कॉरपोरेट्स में जवाबदेही को बढ़ावा देगा। हिमाचल प्रदेश में संचालित होने वाली कंपनियों, जैसे कि फार्मास्युटिकल, पर्यटन और जलविद्युत क्षेत्र की कंपनियों को अब अपने सीएसआर प्रस्तावों में उद्देश्यों, अपेक्षित परिणामों और वित्तीय आवश्यकताओं का विस्तृत विवरण देना होगा। इससे न केवल पारदर्शिता बढ़ेगी, बल्कि स्थानीय समुदायों पर दीर्घकालिक प्रभाव डालने वाले कार्यक्रमों को डिजाइन करने के लिए प्रोत्साहन भी मिलेगा।

पारदर्शिता और जवाबदेही को मजबूती
वित्त विभाग की अधिसूचना में फिजूलखर्ची को रोकने पर जोर दिया गया है। सभी प्रशासनिक सचिवों को निर्देश दिया गया है कि वे सीएसआर प्रस्तावों को पूर्ण विवरण के साथ मुख्यमंत्री के समक्ष प्रस्तुत करें। यह कदम अनावश्यक खर्च को खत्म करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि सीएसआर फंड का उपयोग केवल उन परियोजनाओं के लिए हो जो सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों को प्रभावी ढंग से संबोधित करें।
हिमाचल प्रदेश, जो अपनी प्रगतिशील नीतियों और सतत विकास के लिए जाना जाता है, इस नियम के साथ एक नया उदाहरण स्थापित कर रहा है। कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) की 2024 की एक रिपोर्ट के अनुसार, प्रभावी सीएसआर खर्च ग्रामीण और कम विकसित क्षेत्रों में सार्वजनिक बुनियादी ढांचे और सेवाओं की कमी को पूरा करने की क्षमता रखता है।
हिमाचल में सीएसआर का भविष्य
यह नया नियम हिमाचल प्रदेश में सीएसआर फंड की योजना और कार्यान्वयन को नया रूप देगा। कंपनियों को अब सख्त अनुमोदन प्रक्रिया का पालन करना होगा, जिसमें अधिक विस्तृत दस्तावेजीकरण और राज्य की प्राथमिकताओं के साथ तालमेल शामिल है। स्थानीय समुदायों के लिए इसका मतलब होगा अधिक प्रभावी सीएसआर परियोजनाएं, जैसे कि बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं और पर्यावरण संरक्षण के प्रयास।
यह निर्णय सार्वजनिक-निजी भागीदारी को और मजबूत करने का अवसर भी प्रदान करता है। हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी और दूरदराज के क्षेत्रों में, जहां संसाधनों की कमी अक्सर एक चुनौती होती है, सीएसआर फंड विकास लक्ष्यों को तेज करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। 2025 तक भारत में सीएसआर खर्च के 25,000 करोड़ रुपये से अधिक होने का अनुमान है, और हिमाचल प्रदेश का यह सक्रिय दृष्टिकोण अन्य राज्यों के लिए एक मॉडल बन सकता है।
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