सरकारी-रेस्क्यू की कोशिशें पूँजी के वितरण को प्रभावित करती हैं और निर्णयशीलता राजनीतिक हाथों में चली जाती है।
सिलिकॉन वैली बैंक (SVB) को फिनैंशियल प्रोटेक्शन एंड इनोवेशन विभाग ऑफ कैलिफोर्निया द्वारा मार्च 2023 में बंद कर दिया गया था। संता क्लारा, कैलिफोर्निया में स्थित इस बैंक को अन्य कारकों के बीच उसके निवेश मूल्य बहुत कम हो जाने और उसके जमा करने वाले धनार्थियों द्वारा बड़ी राशि निकाली जाने जैसे कारणों के चलते बंद कर दिया गया था। संयुक्त राज्य ट्रेजरी, फेडरल रिजर्व बोर्ड और फाइनेंशियल डिपॉजिट इन्श्योरेंस कॉर्पोरेशन ने घोषणा की थी कि वे सभी जमा करने वालों को “पूरी तरह से सुरक्षित” रखेंगे जिनके पास सिलिकॉन वैली बैंक में फंड जमा थे। कुछ ही दिनों में नियामक निकाय ने संस्था के नियंत्रण पर कब्जा कर लिया था।
सिलिकॉन वैली बैंक वाला यह प्रकरण अब पूरा हो चुका है। यह संकट अमेरिकी टेक सेक्टर के प्रिय बैंक में शुरू हुआ था, लेकिन सरकार के रेस्क्यू से बड़ी टेक-कम्पनियों को ही सबसे ज्यादा लाभ हुआ है। अब बाजार में अमन-चैन बहाल हो रहा है।
यह मतलब है कि निवेशकों को तो राहत मिल गई है, लेकिन उन्हें बेलआउट पैकेजों के द्वारा होने वाले प्रभाव को समझना आवश्यक है। इसे समझने के लिए, यह जानना जरूरी है कि दो दशक पहले तक पूँजीवाद बाजार में उतार-चढ़ाव के चक्र से गुजरता रहता था। जब भी बाजार में उथल-पुथल होती है, तो बाजार की वर्तमान व्यवस्था बेहद अस्थिर हो जाती है। इसी तरह सिलिकॉन वैली बैंक के संकट के बाद राहत पैकेज से सबसे ज्यादा बड़ी फर्मों को लाभ मिला।
टेक्सस में फोर्ट वर्थ के मेयर ने हाल में कहा कि अगर एसवीबी टेक-इंडस्ट्री के बजाय तेल-इंडस्ट्री की मददगार होती। क्या तब भी सरकार उसके बचाव की कोशिशें करती? मार्च में जब सरकार ने एसवीबी को बचाने के लिए हस्तक्षेप किया तो मेगा कैप स्टॉक्स की चांदी हो गई।
आज अमेरिका की शीर्ष पाँच कम्पनियां टेक फर्में हैं और वे आपस में मिलकर स्टॉक बाजार के 20 प्रतिशत हिस्से का प्रतिनिधित्व करती हैं।
यह बड़ा आंकड़ा है। यह 1960 के दशक के बाद से किसी एक सेक्टर में सर्वाधिक कंसंट्रेशन है। एक दशक पहले यह आँकड़ा आधा भी नहीं था। यह बदलाव बढ़ते पूँजीवाद का परिणाम हो सकता है।
बाजार में प्रतिस्पर्धा की भावना की क्षति रेस्क्यू-संस्कृति का साइड-इफेक्ट है। यह 1980 के दशक के बाद से निरंतर बढ़ रहा है। 1987 के क्रैश के बाद फेडरल रिजर्व ने बाजार को उबारने के लिए हस्तक्षेप किया था, उसके बाद से ही स्टॉक बाजार में नाटकीय तेजी आई है।
यह अमेरिकी इकोनॉमी का आधा हुआ करता था, पर 2020 में यह उसका दोगुना हो गया। हम कल्पना कर सकते हैं कि बाजार जितना फैलेगा, उतना ही वह अधिक प्रतिस्पर्धा के अवसर निर्मित करेगा। लेकिन अमेरिका में ऐसा नहीं होता।
अमेरिका की जिन शीर्ष दस कम्पनियाँ एक दशक के बाद भी अपना मुकाम कायम रखी हुई हैं, उनकी संख्या बढ़ी है। 1980 के दशक के अंत में ये तीन कम्पनियां थीं, 2010 के दशक के अंत तक बढ़कर छह हो गईं। जबकि दुनिया के दूसरे देशों में आज भी प्रतिस्पर्धा की भावना बनी हुई है। 2010 के पूरे दशक में जापान में दो ही कम्पनियां शीर्ष दस में बनी रहीं, यूरोप और चीन में ये चार-चार रहीं।
वैश्विक सूची में ये केवल दो ही थीं- माइक्रोसॉफ्ट और अल्फाबेट। जबकि आज अमेरिका में शीर्ष पाँच बड़ी कम्पनियाँ अगली पाँच बड़ी कम्पनियों से काफी बड़ी हो गई हैं। पहली दो कम्पनियाँ ही शीर्ष दस के कुल मार्केट-कैप के आधे हिस्से पर अपना कब्जा जमा चुकी हैं। एप्पल पहले क्रम पर है और वह दसवें क्रम पर मौजूद यूनाइटेडहेल्थ ग्रुप से छह गुना बड़ी कम्पनी है। तीन दशक पहले एक्सॉन पहले क्रम पर थी और दसवें क्रम पर मौजूद बेलसाउथ से दोगुनी ही बड़ी थी।
अतीत में टेक-कम्पनियाँ उथल-पुथल की शिकार होती रहती थीं। कम्प्यूटर-युग के हर नए चरण के साथ नए नाम सामने आते रहते थे। अब टेक-जगत एआई-क्रांति की ओर मुड़ गया है, लेकिन पुराने नाम आज भी अपना मुकाम बनाए हुए हैं। एकाधिकार वाली कम्पनियाँ छोटी कम्पनियों और स्टार्ट-अप्स की कुर्बानी देकर बड़ी बनती हैं।
चीन में सरकारी अंकुश के कारण अलीबाबा और टेंसेंट जैसी कम्पनियाँ उभरी और गिरी हैं। लेकिन अमेरिका में चीन जैसी स्थिति नहीं है। सरकारी-रेस्क्यू की कोशिशें पूँजी के वितरण को प्रभावित करती हैं और निर्णयशीलता राजनीतिक हाथों में चली जाती है।
बाजार भी इकोनॉमी की भाषा में सोचना बंद कर देते हैं। यह सोचने लगते हैं कि राज्यसत्ता कैसे मदद करेगी। लेकिन आज रेस्क्यू-संस्कृति पर सवाल उठाने के बजाय अनेक टिप्पणीकार यह सवाल उठा रहे हैं कि सरकारें राष्ट्रीयकृत बैंकों पर सख्ती क्यों नहीं करतीं। इसमें रीयल एस्टेट जैसे कॉमर्शियल सेक्टरों को एक अवसर दिख रहा है और वे कह रहे हैं कि वे भी सरकारी मदद के हकदार हैं। लेकिन सरकार हमेशा ही ऐसा नहीं कर सकती, क्योंकि पूँजीवाद के मूल में ही प्रतिस्पर्धा है।