रुसेन कुमार द्वारा
मन अत्यंत शक्तिशाली है। वह इंद्रियों का राजा है। मन ही सभी कर्मों का कर्ता है। मन की तीन शक्तियाँ हैं – जानना, मानना और करना। मन ही हमारी इच्छाओं, भावनाओं और विचारों को नियंत्रित करता है वह हमारे सुख और दुःख का कारक और कारण भी है। मन की सबसे प्रमुख इच्छा है आनंद। मन निरंतर आनंद, स्थायी आनंद आदि की खोज में रहता ही है। संक्षेप में कहें तो मन की असली इच्छा सतत आनंद में लीन हो जाने की है।
मन का आनंद दो प्रकार का होता है:
क्षणिक आनंद: यह आनंद क्षणिक, अस्थिर होता है। यह किसी वस्तु, व्यक्ति या घटना आदि से प्राप्त होता है। उदाहरण के लिए, किसी स्वादिष्ट भोजन को खाना, किसी सुंदर दृश्य को देखना, या किसी प्रियजन के साथ समय बिताना। क्षणिक आनंद का संबंध शरीर के अंगों से संबंधित हो सकता है।
सतत आनंद: यह आनंद निरंतर, स्थिर और टिकाऊ होता है। यह किसी आंतरिक स्रोत से प्राप्त होता है। उदाहरण के लिए, प्रेम, करुणा, और शांति। आनंद हमारे विवेक से उत्पन्न होता है, न कि बाहरी घटना आदि से। सतत आनंद मानसिक होता है।
मन की चाल
मन का अधिकांश समय क्षणिक आनंद की खोज में व्यतीत होता है। यह नए-नए सुखों की तलाश में रहता है। मन को लगता है कि यदि वह इन सुखों को पा लेगा तो वह हमेशा खुश रहेगा। लेकिन सच तो यह है कि क्षणिक सुख हमेशा के लिए नहीं रहते। वे जल्द ही समाप्त हो जाते हैं, और मन फिर से नए सुखों की खोज में निकल जाता है।
परिवर्तनशील
इसका कारण यह है कि क्षणिक सुख बाहरी वस्तुओं और घटनाओं पर आधारित होते हैं। वे स्थिर नहीं होते हैं। वे समय के साथ बदल जाते हैं। उदाहरण के लिए, कोई स्वादिष्ट भोजन शुरू में बहुत स्वादिष्ट लग सकता है, लेकिन कुछ समय बाद वह उबाऊ हो सकता है। कोई सुंदर दृश्य शुरू में बहुत मनमोहक लग सकता है, लेकिन कुछ समय बाद वह आदत हो सकता है। किसी से संबंध कुछ समय के लिए अच्छा लगता है, बाद में उबाऊ लगता है।
निरंतर आनंद
मन की इच्छा निरंतर आनंद की है। वह ऐसा सुख चाहता है जो कभी न समाप्त हो। लेकिन उसे यह सुख नहीं मिल पाता है। इसका कारण यह है कि वह क्षणिक सुखों में ही खोया रहता है। वह अपने भीतर के स्रोत से आनंद प्राप्त करने का प्रयास नहीं करता है।
सतत आनंद
मन का असली स्वरूप है स्थायी आनंद। स्थायी आनंद की खोज में ही मन सब वस्तुओं से प्रियता कर बैठता है। यही भूल उसके दुःख का कारण बनता है। सतत आनंद को प्राप्त करने के लिए, हमें अपने मन को क्षणिक सुखों से दूर करना होगा। हमें अपने भीतर के स्रोत की ओर ध्यान देना होगा। हमें प्रेम, करुणा, ज्ञान, विवेक, सहयोग और शांति जैसे गुणों को विकसित करना होगा।
जब हम अपने भीतर के स्रोत से आनंद प्राप्त करते हैं, तो हमें किसी बाहरी वस्तु या घटना की आवश्यकता नहीं होती है। हम हमेशा खुश रहते हैं, चाहे हमारे जीवन में कुछ भी हो।
मन की इच्छा को नियंत्रित करने के उपाय
मन की इच्छा को नियंत्रित करना एक कठिन कार्य है, लेकिन यह असंभव नहीं है। यदि हम कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखते हैं, तो हम अपने मन की इच्छा को नियंत्रित कर सकते हैं और निरंतर आनंद प्राप्त कर सकते हैं इसके लिए हमें इन बातों का ध्यान रखना होगा:
चाहत की जाँच: अपने मन के विचारों और इच्छाओं को समझना होगा। सबसे पहले, हमें यह पता लगाना होगा कि हमारा मन क्या चाह रहा है, ऐसा क्यों चाह रहा है। हमें अपने विचारों, भावनाओं और इच्छाओं पर ध्यान देना होगा।
आत्म-निरीक्षण: हमें खुद से पूछना होगा कि क्या हमारी इच्छाएँ वास्तविक सुख या केवल अस्थायी राहत के लिए हैं।
मन को शांत करें: मन को भटकने से बचाना चाहिए। जब हम अपने मन को शांत कर देते हैं, तो वह क्षणिक सुखों के पीछे नहीं भागता है। वह अपने भीतर के स्रोत की ओर ध्यान देना शुरू कर देता है। मन को किसी विशिष्ट कार्य में लगाना चाहिए।
सकारात्मक विचार: हमें अपने मन को सकारात्मक विचारों से भरना चाहिए। सकारात्मक विचार हमें खुश और संतोषी महसूस कराते हैं। सकारात्मकता का अर्थ है जो अधिक टिकाऊ और दुःख रहित हो।
मन को संयम में लाना: ध्यान, स्वाध्याय और योग मन को शांत करने और नियंत्रित करने के प्रभावी तरीके हैं। महान ग्रंथों का अध्ययन बहुत लाभकारी हो सकता है।
आंतरिक गुणों का विकास: प्रेम, करुणा, और शांति जैसे आंतरिक गुणों का विकास करें।
(लेखक के बारे में – रुसेन कुमार पत्रकार, लेखक एवं विचारक हैं।)
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