
By रुसेन कुमार
बहुत प्राचीन समय की बात है। नगारा गुलु नामक देश बहुत विकसित था। वहाँ के परिश्रमी लोग अपने अथक श्रम के बल पर ऊँचे से ऊँचे इमारत बनाकर उसी में ही रहते थे। बच्चों के पास सभी प्रकार के विकसित खिलौने थे, बावजूद इसके कोई चीज ऐसी थी जिनकी कमी उन्हें अक्सर महसूस हुआ करती थी। वयस्क माता-पिताओं के पास सुखी रहने के उन्नत प्रबंध तो थे लेकिन उनकी खुशी कुछ ही देर में ही टूट जाया करती थी। वे बाहर की दुनिया में जीत रहे थे लेकिन उन सबके भीतर खुशियों की मात्रा दिनों-दिन कम हो रही थी। उस देश में गुरु सोमायाजुलु बहुत प्रसिद्ध थे। वे अत्यंत समर्थ और भविष्य दृष्टा थे। सभी उनका अपार आदर करते थे।
“जितनी मात्रा में मेरे माता-पिता अब भी मुझसे प्रेम करते हैं, उसकी तुलना में मेरे बच्चे मुझसे उतना प्रेम नहीं करते।” – एक वयस्क शिष्य अंजनेयुलु ने गुरु सोमायाजुलु से अत्यंत आदरपूर्वक प्रश्न किए।
“इस सवाल को तुम अपने माता-पिता के पास जा कर ही दुहरावो।” – सोमायाजुलु ने शिष्य को आदेश पूर्वक कहा।
“ऐसा मुझे लगता है कि मेरी माँ और आप मुझसे अधिक प्रेम करते हैं, उसकी तुलना में मेरे बच्चे मुझसे कम प्रेम करते हैं।” – अंजनेयुलु ने अपने पिता वपन कुलु से शिकायत भरे जिज्ञासु स्वर में प्रश्न किए।
“जब तुम छोटे थे तो बहुत कमजोर किस्म के बच्चे थे। तुम अक्सर बीमार पड़ जाया करते थे। तुम्हारी माँ तुम्हारे पैर दबाया करती थी, ताकि तुम्हारा दर्द कम हो जाय, आराम मिल जाय और मैं तुम्हारे सिर पर थपकियाँ दिया करता है, ताकि तुम जल्दी सो जाओ।” – पिता वपन कुलु ने अपने पुत्र को स्नेहपूर्वक यह बात कह समझाई।
“जब तुम गहरी नींद में सो जाया करते थे तो तुम पर दवाइयों का असर जल्दी होता था।” – पिता ने कहना जारी रखा।
“माता-पिता के स्नेहपूर्ण स्पर्श में जादुई बात होती है। क्योंकि बच्चों को दुःखी देखकर माता-पिता का हृदय द्रवित हो उठता है और वे अपने बच्चों पर विशेष अनुकम्पा बरसाते हैं।” – उन्होंने कहा।
“बचपन में तुम्हारी माँ और मैंने असंख्य बार तुम्हारे सिर को प्रेम से छुआ है। यह जो आज भी तुम हमारे प्रेम का अनुभव करते हो यह उसी छुअन का असर है।” – पिता वपन कुलु ने आगे कहा।
“माता-पिता के स्नेह भरे स्पर्श का असर बच्चों पर ताउम्र बना रहता है।” – पिता ने अपनी बात पूरी की।
“एक अच्छे पिता होने के लिए हमें अपने बच्चों के दुःखों को गहराई से अनुभव करना होता है और तब-तक उसके पास रहना चाहिए जब-तक कि उसका दुःख-दर्द कम न हो जाय।”– अंजनेयुलु ने समझी हुई बात को दोहराते हुए पिता की आँखों की ओर देखकर कहा।
“तुमने ठीक समझा पुत्र।” – पिता वपन कुलु ने सहमति जताते हुए सिर हिलाया।
शिष्य अंजनेयुलु ने यह सारी बातें गुरु सोमायाजुलु को कह सुनाईं।
“तुम्हारी संतानें तुम्हारा स्नेह पाना चाहती हैं, ताकि वे भी अपने में प्रेम का विस्तार कर सकें। वे अधखिली कलियों की तरह हैं और पुष्प बनकर महक बिखेरना चाहती हैं। तुम्हारे संवेदना भरे स्पर्श तुम्हारे बच्चों में उन्नत भावनाओं और नई संभावनाओं को जन्म देंगे। तुम्हारे भावनात्मक लगाव से तुम्हारी मासूम संतानों की दुनिया संवर जाएगी।” – सोमायाजुलु ने शिष्यों को उपदेश देते हुए कहा।
“अस्वस्थ्य होने पर अपनी संतानों को स्वस्थ बनाओ। दुःखी होने पर खुशियों का छिड़काव करो। जब वे रोएँ तो उनके आँसू पोंछकर गले लगाओ। उदास रहने पर उन्हें जीने का बल दो। उन्हें खुली जगहों पर ले जाओ ताकि वे सौंदर्य का अनुभव कर सकें। उनके साथ रहो ताकि वे बढ़ना सीख सकें। अपनी गलतियों के लिए माँफी मांगो ताकि वे माफ करना सीख जाएँ। उन्हें अधिक मान दो ताकि वे भी औरों का अधिक सम्मान करने लग जाएँ।” – गुरु सोमायाजुलु ने उपदेश जारी रखा।
“जाओ तुम अपनी संतानों को आशीषों और स्नेह से सींचो। बदले में वे तुमसे अधिक प्रेम करने लगेंगे।”– गुरु सोमायाजुलु ने शिष्य अंजनेयुलु की ओर देख कर आग्रहपूर्वक कहा।
लेखक के बारे मेंः रुसेन कुमार अग्रणी लेखक एवं विचारक हैं। इंडिया सीएसआर नेटवर्क के संस्थापक हैं।
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