Prime Minister Shri Narendra Modi today interacted via video-conference with various NGOs in Varanasi who are providing relief during the ongoing COVID-19 crisis.
Prime Minister praised the people of the holy & blessed city of Varanasi for brimming with hope and enthusiasm, notwithstanding the Corona Pandemic.
Text of PM’s interaction with representatives of Varanasi based NGOs:
हर-हर महादेव
काशी के पुण्य धरती के आप सब पुण्यात्मा लोगन के प्रणाम हौ। सावन महीना चल रहा है। ऐसे में बाबा के चरणों में आने का मन हर किसी को करता है। लेकिन जब बाबा की नगरी के लोगों से रूबरू होने का मौका मिला है तो ऐसा लगता है कि आज मेरे लिए एक दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। सबसे पहले तो आप सभी को भगवान भोले नाथ के इस प्रिय महीने की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
ये भगवान भोले नाथ का ही आर्शीवाद है कि कोरोना के इस संकटकाल में भी हमारी काशी उम्मीद से भरी हुई है, उत्साह से भरी हुई है। ये सही है कि लोग बाबा विश्वनाथ धाम इन दिनों नहीं जा पा रहे और वो भी सावन में न जा पाना, तो आपकी पीड़ा में समझ सकता हूं। ये भी सही है कि मानस मंदिर हो, दुर्गा कुंड हो, संकट मोचन में सावन का मेला; सब कुछ स्थगित हो गया है, नहीं लग पाया है।
लेकिन ये भी सही है कि इस अभूतपूर्व संकट के समय में और मेरी काशी, हमारी काशी ने, इस अभूतपूर्व संकट का डटकर मुकाबला किया है। आज का ये कार्यक्रम भी तो इसी की एक कड़ी ही है। कितनी ही बड़ी आपदा क्यों न हो, कोई भी काशी के लोगों की जीवटता का कोई मुकाबला नहीं कर सकता। जो शहर दुनिया को गति देता हो, उसके सामने कोरोना क्या चीज है, ये आपने दिखा दिया है।
मुझे बताया गया है कि कोरोना के…काशी की जो विशेषताएं हैं, इस कोरोना के कारण काशी में चाय की अडियां, वो भी सूनी हो गई हैं तो अब डिजिटल अडियां शुरू हो गई हैं। अलग-अलग क्षेत्र की विभूतियों ने अडी परम्परा को तो जीवंत किया है। यहां की जिस संगीत परंपरा को बिस्मिल्ला खां जी, गिरिजा देवी जी, हीरालाल यादव जी जैसे महान साधकों ने समृद्ध किया; उसको आज काशी के सम्मानित कलाकार, नई पीढ़ी के कलाकार आगे बढ़ा रहे हैं। इस तरह के अनेक काम पिछले तीन-चार महीने में काशी में निरंतर हुए हैं।
इस दौरान भी मैं लगातार योगीजी से संपर्क में रहता था, सरकार के अलग-अलग लोगों से संपर्क में रहता था। काशी से जो खबरें मेरे पास आती थीं, उनको क्या करना-क्या नहीं करना, लगातार सबसे बात करता था। और आपमें से भी कई लोग हैं, बनारस में कई लोगों से मैं regularly फोन पर बात करता था, सुख-दुख पूछता था, जानकारियां लेता था, फीडबैक लिया करता था। और उसमें से कुछ इसी कार्यक्रम में भी मुझे पक्का भरोसा है कि यहां पर बैठे होंगे, जिनसे मेरी कभी फोन पर बात हुई होगी।
संक्रमण को रोकने के लिए कौन क्या कदम उठा रहा है, अस्पतालों की स्थिति क्या है, यहां क्या व्यवस्थाएं की जा रही हैं, क्वारंटीन को लेकर क्या हो रहा है, बाहर से आए श्रमिक साथियों के लिए हम कितना प्रबंध कर पा रहे हैं, ये सारी जानकारियां मैं बिल्कुल लगातार लेता रहता हूं।
साथियों, हमारी काशी में बाबा विश्वनाथ और मां अन्नपूर्णा, दोनों विराजते हैं। और पुरानी मान्यता है कि एक समय महादेव ने खुद मां अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगी थी। तभी से काशी पर ये विशेष आर्शीवाद रहा है कि यहां कोई भूखा नहीं सोएगा, मां अन्नपूर्णा और बाबा विश्वनाथ, सबके खाने का इंतज़ाम कर देंगे।
आप सभी के लिए, तमाम संगठनों के लिए, हम सभी के लिए ये बहुत सौभाग्य की बात है कि इस बार गरीबों की सेवा का माध्यम भगवान ने हम सबको बनाया है, विशेषकर आप सबको बनाया है। एक तरह से आप सभी मां अन्नपूर्णा और बाबा विश्वनाथ के दूत बनकर हर ज़रूरतमंद तक पहुंचे हैं।
इतने कम समय में फूड हेल्पलाइन हो, कम्यूनिटी किचन का व्यापक नेटवर्क तैयार करना, हेल्पलाइन विकसित करना, डेटा साइंस की आधुनिक विज्ञान टेक्नोलॉजी की मदद लेना, वाराणसी स्मार्ट सिटी के कंट्रोल एंव कमांड सेंटर का इस सेवा के काम में भरपूर इस्तेमाल करना, यानि हर स्तर पर सभी ने गरीबों की मदद के लिए पूरी क्षमता से काम किया। और मैं ये भी बता दूं, हमारे देश में कोई सेवाभाव ये नई बात नहीं है, हमारे संस्कारों में है। लेकिन इस बार को जो सेवा कार्य है, वो सामान्य सेवा कार्य नहीं है। यहां सिर्फ किसी दुखी के आंसू पोंछना, किसी गरीब को खाना देना इतना नहीं था; इसमें एक प्रकार से कोरोना जैसी बीमारी को गले लगाना, इसका रिस्क भी था; कहीं कोरोना हमारे गले पड़ जाएगा तो। और इसलिए सेवा के साथ-साथ त्याग और बलिदान की तैयारी का भाव भी था। और इसलिए हिन्दुस्तान के हर कोने में जिन-जिन लोगों ने इस कोरोना के संकट में काम किया है वो सामान्य काम नहीं है। सिर्फ अपनी जिम्मेदारी निभाई, ऐसा नहीं है; एक भय था, एक डर था, संकट सामने था और सामने जाना, स्वेच्छा से जाना, ये सेवा का एक नया रूप है।
और मुझे बताया गया है कि जब जिला प्रशासन के पास भोजन बांटने के लिए अपनी गाड़ियां कम पड़ गईं तो डाक विभाग ने खाली पड़ी अपनी पोस्टल वैन इस काम में लगा दीं। सोचिए, सरकारों की, प्रशासन की छवि तो यही रही है कि पहले हर काम को मना किया जाता है। ये तो मेरा डिपार्टमेंट है तुम्हें कौन दूंगा, मुझे तो ये करना है, तुम कौन होते हो, ये होता था। लेकिन यहां हमने देखा है कि आगे बढ़ करके एक-दूसरे की मदद की गई। इसी एकजुटता, इसी सामूहिकता ने हमारी काशी को और भव्य बना दिया है। ऐसी मानवीय व्यवस्था के लिए यहां का प्रशासन हो, गायत्री परिवार रचनात्मक ट्रस्ट हो, राष्ट्रीय रोटी बैंक हो, भारत सेवाश्रम संघ हो, हमारे सिंधी समाज के भाई-बहन हों, भगवान अवधूत राम कुष्ठ सेवा आश्रम सर्वेश्वरी समूह हो, बैंकों से जुड़े लोग हों, कोट-पैंट-टाई छोड़ करके गली-मोहल्ले में गरीब के दरवाजे खड़े हो जाएं, तमाम व्यापारी एसोसिएशन्स हों, और हमारे अनवर अहमद जी ने कितने बढ़िया तरीके से बताया, ऐसे कितने अनगिनत लोग और मैं तो अभी सिर्फ पांच-सात लोगों से बात कर पाया हूं, लेकिन ऐसे हजारों लोगों ने काशी के गौरव को बढ़ाया है। सैंकड़ों संस्थाओं ने अपने-आपको खपा दिया है। सबसे मैं बात नहीं कर पाया हूं, लेकिन मैं हर किसी के काम को आज नमन करता हूं। इसमें जुड़े हुए हर व्यक्ति को मैं प्रणाम करता हूं। और जब मैं आज आपसे बात कर रहा हूं तब सिर्फ जानकारी नहीं ले रहा हूं, मैं आपसे प्रेरणा ले रहा हूं। अधिक काम करने के लिए आप जैसे लोगों ने इस संकट में काम किए, इनके आर्शीवाद ले रहा हूं। और मेरी प्रार्थना है कि बाबा और मां अन्नपूर्णा आपको और सामर्थ्य दें, और शक्ति दें।
साथियों, कोरोना के इस संकट काल ने दुनिया के सोचने समझने, काम-काज करने, खाने-पीने, सबके तौर-तरीके पूरी तरह से बदल दिए हैं। और जिस प्रकार से आपने सेवा की और इस सेवा का समाज जीवन पर बड़ा प्रभाव होता है। मैं बचपन में सुना करता था कि एक सुनार, उसको छोटा-मोटा अपने घर में सुनार के नाते वो अपने घर में काम करते थे और कुछ परिवारों के लिए सोने की चीजें बनाना वगैरह चलता था। लेकिन उन महाशय की एक आदत थी, वह बाजार से दातुन खरीदते थे। सुबह हम पहले के जमाने में, आज ब्रश उपयोग करते हैं पहले दातुन करते थे। और वो अस्पताल में जा करके वो जो मरीज होता था, उसके जो रिश्तेदार होते थे, उतनी संख्या गिन करके हर दिन शाम को दातुन दे करके आते थे, यही काम करते थे और दिनभर अपना सुनार काकाम करते थे। आप हैरान हो जाएंगे एक सुनार के रूप में अपने काम के साथ ये दातुन लोगों को मदद करने का उन्होंने छोटी सी अपनी आदत बना दी, उस पूरे इलाके में उनकी इतनी छवि थी, उनसे सेवाभाव की इतनी चर्चा थी कि सोने का काम कराने के लिए लोग कहते कि अरे भाई, ये तो सेवाभावी है उन्हीं के यहां सोने का काम करवायेंगे। यानी करते थे वो सेवा, लेकिन अपने आप उनकी एक विश्वसनीयता बनी थी, उनके अपने सोने के काम कोर हर परिवार के वो विश्वस्त व्यक्ति बन चुके थे। यानी हमारा समाज ऐसा है सेवा भाव को सिर्फ कुछ पाया, कुछ मिला, उतने से नहीं, उससे भी बहुत अधिक भाव से देखता है। और जो सेवा लेता है वो भी मन में ठान लेता है कि जब मौका मिलेगा वो भी किसी की मदद करेगा, ये चक्र चलता रहता है। यही तो समाज को प्रेरणा देता है।
आपने सुना होगा सौ साल पहले ऐसी ही भयानक महामारी हुई थी, अब सौ साल के बाद ये हुई है। और कहते हैं कि तब भारत में इतनी जनसंख्या नहीं थी कम लोग थे। लेकिन उस समय भी उस महामारी में दुनिया में जो सबसे ज्यादा लोग मरे, उनमें से हमारा हिन्दुस्तान भी था। करोड़ों लोग मर गए थे। और इसलिए जब इस बार महामारी आई, तो सारी दुनिया, भारत का नाम लेते ही उनको डर लगता था। लगता था भाई सौ साल पहले भारत के कारण इतनी बर्बादी हुई थी, भारत में इतने लोग मर गए थे और आज भारत की इतनी आबादी है, इतनी चुनौतियां हैं, बड़े-बड़े एक्सपर्ट्स ये कह रहे थे और भारत पर सवाल खड़ा करने लगे थे कि इस बार भी भारत बिगड़ जाएगा। लेकिन क्या स्थिति बनी। आपने देखा होगा 23-24 करोड़ की आबादी वाला हमारा उत्तर प्रदेश, और उसके लिए तो लोगों को बहुत सारी शंकाएं-कुशंकाएं भी थीं, ये कैसे बचेगा। कोई कहता था कि कोई कहता था, कि यूपी में गरीबी बहुत है, यहां बाहर काम करने गए श्रमिक, कामगार साथी बहुत हैं, वो दो गज की दूरी का पालन कैसे कर पाएंगे? वो कोरोना से नहीं तो भूख से मर जाएंगे। लेकिन आपके सहयोग ने, उत्तर प्रदेश के लोगों के परिश्रम ने, पराक्रम ने सारी आशंकाओं को ध्वस्त कर दिया।
साथियों, ब्राजील जैसे बड़े देश में, जिसकी आबादी करीब 24 करोड़ है, वहां कोरोना से 65 हजार से ज्यादा लोगों की दुखद मृत्यु हुई है। लेकिन उतनी ही आबादी वाले
हमारे यूपी में करीब-करीब 800 लोगों की मृत्यु कोरोना से हुई है। यानि यूपी में
कोरोना से हजारों जिंदगियां, जिसकी मरने की संभावना दिखाई जाती थी, उनको बचा लिया गया है। आज स्थिति ये है कि उत्तर प्रदेश ने न सिर्फ संक्रमण की गति को काबू में किया हुआ है बल्कि जिन्हें कोरोना हुआ है, वो भी तेज़ी से ठीक हो रहे हैं। और इसकी बहुत बड़ी वजह आप जैसे अनेक महानभावों की जागरूकता, सेवाभाव, सक्रियता है। आप जैसे सामाजिक, धार्मिक और परोपकारी संगठनों का ये जो सेवाभाव है, आपका ये जो संकल्प है, आपके संस्कार हैं जिसने इस कठिन समय में, कठिन से कठिन दौर में समाज के हर व्यक्ति को कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़ने की ताकत दी है, बहुत बड़ी मदद की है।
साथियों, हम तो काशीवासी हैं। और कबीरदास जी ने कहा है-
सेवक फल मांगे नहीं, सेब करे दिन रात
सेवा करने वाला सेवा का फल नहीं मांगता, दिन रात निःस्वार्थ भाव से सेवा करता है। दूसरों की निस्वार्थ सेवा के हमारे यही संस्कार हैं, जो इस मुश्किल समय में देशवासियों के काम आ रहें है। इसी भावना के साथ केंद्र सरकार ने भी निरंतर प्रयास किया है, कि कोरोना काल के इस समय में सामान्य जन की पीड़ा को साझा किया जाए, उसको कम करने के लिए लगातार कोशिश की जाए। गरीब को राशन मिले, उसकी जेब में कुछ रुपए रहें, उसके पास रोजगार हो और वो अपने काम के लिए ऋण ले सके, इन सभी बातों पर ध्यान दिया है।
साथियों, आज भारत में 80 करोड़ से ज्यादा लोगों को मुफ्त राशन दिया जा रहा है। इसका बहुत बड़ा लाभ बनारस के भी गरीबों को, श्रमिकों को हो रहा है। आप कल्पना कर सकते हैं कि भारत, अमेरिका से भी दोगुनी आबादी से, एक पैसा लिए बिना उनका भरण-पोषण कर रहा है। और अब तो इस योजना को नवंबर अंत तक, यानि दीपावली और छठ पूजा, यानी 30 नवंबर तक इसको बढ़ा दिया गया है। हमारी कोशिश यही है कि किसी गरीब को त्यौहारों के समय में खाने-पीने की कमी ना हो। खाने के साथ-साथ, लॉकडाउन के कारण गरीब को खाना पकाने के लिए ईंधन की दिक्कत ना हो, इसके लिए उज्जवला योजना के लाभार्थियों को पिछले तीन महीने से मुफ्त गैस सिलेंडर दिया जा रहा है।
साथियों, गरीबों के जनधन खाते में हजारों करोड़ रुपए जमा कराना हो या फिर गरीबों के, श्रमिकों के रोजगार की चिंता, छोटे उद्योगों को, रेहड़ी-ठेला लगाने वालों को, आसान ऋण उपलब्ध कराना हो या खेती, पशुपालन, मछलीपालन और दूसरे कामों के लिए ऐतिहासिक फैसले, और सरकार ने लगातार काम किया है।
कुछ दिन पहले ही 20 हजार करोड़ रुपए की मत्स्य संपदा योजना को भी मंजूरी दी गई है। इसका लाभ भी इस क्षेत्र के मछली पालकों को होगा। इसके अलावा यहां यूपी में कुछ दिन पहले ही रोज़गार और स्वरोज़गार के लिए एक और विशेष अभियान चलाया गया है। इसके तहत हमारे जो हस्तशिल्पी हैं, बुनकर हैं, दूसरे कारीगर हैं या फिर दूसरे राज्यों से जो भी श्रमिक साथी गांव लौटे हैं, ऐसे लाखों कामगारों के लिए रोज़गार की व्यवस्था की गई है।
साथियों, कोरोना की ये आपदा इतनी बड़ी है कि इससे निपटने के लिए लगातार काम करना ही होगा। हम संतोष मानकर बैठ नहीं सकते हैं। हमारे बुनकर भाई-बहन हों, नाव चलाने वाले हमारे साथी हों, व्यापारी-कारोबारी हों, सभी को मैं आश्वस्त करना चाहता हूं कि, हमारा निरंतर प्रयास है कि सभी को कम से कम दिक्कत हो और बनारस भी आगे बढ़ता ही रहे। मैंने कुछ दिन पहले ही बनारस के विकास कार्यों को लेकर प्रशासन से, शहर के हमारे विधायकों से भी टेक्नोलॉजी के माध्यम से लंबी मुलाकात की थी, बहुत डिटेल में बात की थी, एक-एक चीज को मैंने टेक्नोलॉजी और ड्रॉन की पद्धति से मॉनिटर किया था। इसमें सड़कों, बिजली, पानी जैसे तमाम प्रोजेक्ट्स के साथ-साथ बाबा विश्वनाथ धाम प्रोजेक्ट की स्थिति को लेकर भी विस्तृत जानकारी मुझे दी गई थी। मैंने आवश्यक सूचनाएं भी दी थीं। कुछ रुकावटें भी होती हैं तो दूर करने के लिए जहां-जहां कहना था, वहां भी कहा था।
इस समय काशी में ही लगभग 8 हज़ार करोड़ रुपए के अलग-अलग प्रोजेक्ट्स पर काम तेज़ी से चल रहा है। 8 हजार करोड़ रुपए के काम, यानी अनेक लोगों को रोजी-रोटी मिलती है। जब स्थितियां सामान्य होंगी तो काशी में पुरानी रौनक भी उतनी ही तेजी से लौटेगी।
इसके लिए हमें अभी से तैयारी भी करनी है और इसलिए ही टूरिज्म से जुड़े सभी प्रोजेक्ट्स, जैसे क्रूज़ टूरिज्म, लाइट एंड साउंड शो, दशाश्वमेध घाट का पुनुरुद्धार, गंगा आरती के लिए ऑडियो-वीडियो स्क्रीन लगाने का काम, घाटों पर और भी व्यवस्था प्रबंधन का काम, ऐसे हर प्रोजेक्ट को तेज़ी से पूरा करने पर ध्यान दिया जा रहा है।
साथियों, आने वाले समय में काशी को आत्मनिर्भर भारत अभियान का भी एक बड़ा केंद्र बनते हुए हम सभी देखना चाहते हैं और ये हम सब की जिम्मेदारी भी है। सरकार के हाल के फैसलों के बाद यहां की साड़ियां, यहां के दूसरे हस्तशिल्प के लिए, यहां के डेयरी, मत्स्य पालन और मधुमक्खी पालन के व्यवसाय के लिए नई संभावनाओं के द्वार खुलेंगे। बी-वैक्स की बहुत अधिक डिमांड दुनिया में है। इसको पूरा करने का प्रयास हम कर सकते हैं।
मैं किसानों से, युवा साथियों से भी ये आग्रह करूंगा कि इस प्रकार के व्यवसाय में बढ़चढ़ कर भागीदारी सुनिश्चित करें। हम सभी के प्रयासों से हमारी काशी भारत के एक बड़े Export हब के रूप में विकसित हो सकती है और हमें करना चाहिए। काशी को हम आत्मनिर्भर भारत अभियान की प्रेरक स्थली के रूप में भी विकसित करें, स्थापित करें।
साथियो, मुझे अच्छा लगा, आज आप सबके दर्शन करने का मौका मिला और काशीवासियों के सावन के महीने में दर्शन होना अपने-आप में सौभाग्य होता है। और आपने जिस प्रकार से सेवाभाव से काम किया है, अभी भी जिस लगन के साथ आप लोग कर रहे हैं, मैं फिर एक बार आप सबका बहुत-बहुत आभार व्यक्त करता हूं।
परोपकार के, सेवाभाव के अपने काम में आपने सबको प्रेरणा दी है, आगे भी प्रेरणा देते रहेंगे। लेकिन हा, एक बात हमें बार-बार करनी है, हर किसी से करनी है, खुद से भी करनी है। हम सिंगल यूज प्लास्टिक से मुक्ति चाहते हैं, उसको छोड़ना नहीं है। अब रास्तों पर थूकना और उसमें भी हमारा बनारसी पान, हमें आदत बदलनी पड़ेगी। दूसरा, दो गज़ की दूरी, गमछे या फेस मास्क और हाथ धुलने की आदत को न हमें छोड़ना है न किसी को छोड़ने देना है। अब इसको हमारे संस्कार बना देना है, स्वभाव बना देना है।
बाबा विश्वनाथ और गंगा मैया का आशीर्वाद आप सभी पर बना रहे, इसी कामना के साथ मैं मेरी वाणी को विराम देता हूं और फिर से एक बार आपके इस महान कार्य को प्रणाम करता हूं।
बहुत-बहुत धन्यवाद ! हर-हर महादेव !!!