सतत विकास की अवधारणा को प्रत्येक व्यक्ति को अवश्य जानना चाहिए। सतत विकास को स्थायी विकास भी कहा जाता है। स्थायी विकास का अंग्रेजी शब्द है Sustainable Development, जो कि एक महान अवधारणा है। यह एक ऐसी विशिष्ट अवधारणा है जिसमें ऐसा विश्वास किया जाता है कि संसाधनों का इस तरह से उपयोग करना है जिससे कि हमारी वर्तमान की आवश्यकता की पूर्ति हो तथा भविष्य में भी उनकी पूर्ति सुनिश्चित रहे। सतत विकास एक निरंतर चलने वाला क्रम है। इसमें शुरू तो है लेकिन इसका अंत नहीं होना चाहिए।
यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि सतत विकास (निरंतर विकास, संतुलित विकास या स्थायी विकास) केवल पर्यावरण की रक्षा करने के बारे में नहीं है। यह सभी लोगों के लिए जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने के बारे में भी है। सतत विकास के माध्यम से, हम एक ऐसा विश्व बना सकते हैं जो सभी के लिए अधिक न्यायपूर्ण, समृद्ध और टिकाऊ हो।
सतत विकास एक निरंतर प्रक्रिया है। हमें अपनी प्रगति का मूल्यांकन करते रहना चाहिए और आवश्यकतानुसार अपने लक्ष्यों और रणनीतियों को समायोजित करना चाहिए।
दुनियाभर में सतत विकास के लक्ष्यों को जल्दी से पाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। भारत भी इसमें पीछे नहीं है।
सतत विकास का लक्ष्य वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करते हुए भावी पीढ़ियों के लिए जीवन की गुणवत्ता सुनिश्चित करना है। यह एक ऐसा लक्ष्य है जो तीन महत्वपूर्ण स्तंभों पर आधारित है:
- पर्यावरण: स्वस्थ और संतुलित पर्यावरण जीवन का आधार है। जल, वायु, मिट्टी, जैव विविधता और अन्य प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और संवर्धन महत्वपूर्ण है।
- अर्थव्यवस्था: सभी के लिए समृद्धि और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए आर्थिक विकास आवश्यक है। यह विकास न्यायसंगत और टिकाऊ होना चाहिए, ताकि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी अवसर बने रहें।
- समाज: सभी लोगों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, समानता और न्याय तक पहुँच महत्वपूर्ण है। सामाजिक विकास में सभी की भागीदारी और सशक्तिकरण महत्वपूर्ण है।
सतत विकास का लक्ष्य इन तीन स्तंभों के बीच संतुलन स्थापित करना है। इसका अर्थ है कि पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना आर्थिक विकास को बढ़ावा देना, और सभी लोगों के लिए सामाजिक न्याय और समानता सुनिश्चित करना।
“सतत विकास” की अवधारणा का इतिहास
“सतत विकास” की अवधारणा की उत्पत्ति का इतिहास 1970 के दशक के अंतर्राष्ट्रीय संदर्भों से लिया जाता है। उस समय विभिन्न देश के संगठनों को यह गहराई से अनुभव हुआ कि धरती पर संसाधन सीमित हैं। हमें अपनी असीमित संसाधनों की धारणा पर आधारित विकास की प्रक्रिया और विचारों को बदलने की आवश्यकता है। 1980 में, इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) ने “संरक्षण के लिए विश्व रणनीति” नामक रिपोर्ट प्रकाशित की। इस रिपोर्ट में पहली बार “सतत विकास” शब्द का प्रयोग किया गया। यह रिपोर्ट इस अवधारणा को मुख्यधारा में लाने का प्रथम चरण था।
इसके बाद, 1987 में, “हमारा साझा भविष्य” रिपोर्ट, जिसे आमतौर पर ब्रंटलैंड रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है। इसे विश्व पर्यावरण आयोग द्वारा प्रकाशित किया गया। इस रिपोर्ट में सतत विकास की परिभाषा को विस्तृत किया गया तथा इसे विकास के एक मॉडल के रूप में प्रस्तावित किया, जो पर्यावरणीय संरक्षण और आर्थिक विकास को संतुलित करता है। ब्रंटलैंड रिपोर्ट ने सतत विकास को “ऐसे विकास के रूप में परिभाषित किया जो वर्तमान की जरूरतों को पूरा करता है बिना भविष्य की पीढ़ियों की अपनी जरूरतों को पूरा करने की क्षमता को कमजोर किए।” इस परिभाषा ने सतत विकास के महत्व और इसकी नीतियों को आकार देने में विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सतत विकास के कुछ प्रमुख पहलू
- नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग: जलविद्युत, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, आदि।
- पर्यावरण के अनुकूल उत्पादन और खपत: ऊर्जा और संसाधनों का कुशल उपयोग, रीसाइक्लिंग, जैविक खाद्य उत्पादन, आदि।
- सामाजिक न्याय और समानता: शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार के अवसरों तक सभी के लिए समान पहुंच।
- लैंगिक समानता: महिलाओं और पुरुषों के लिए समान अवसर और अधिकार।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग: जलवायु परिवर्तन, गरीबी, और अन्य वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए।
सतत विकास एक चुनौतीपूर्ण लक्ष्य है, लेकिन यह एक ऐसा लक्ष्य है जो हमें सभी के लिए एक बेहतर भविष्य बनाने में मदद कर सकता है।
सतत विकास के महत्व को समझने के लिए कुछ उदाहरण
- जब हम स्थानीय उत्पादों को खरीदते हैं, तो हम स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करते हैं और परिवहन से होने वाले प्रदूषण को कम करते हैं।
- जब हम ऊर्जा और पानी का कुशल उपयोग करते हैं, तो हम प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करते हैं और भविष्य की पीढ़ियों के लिए उन्हें सुरक्षित करते हैं।
- जब हम शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश करते हैं, तो हम सभी लोगों के लिए बेहतर जीवन की संभावनाएँ बनाते हैं।
- सतत विकास के लिए हम सभी की भागीदारी महत्वपूर्ण है। हम अपने दैनिक जीवन में छोटे-छोटे बदलाव करके भी इस लक्ष्य को प्राप्त करने में योगदान दे सकते हैं।
यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि सतत विकास एक निरंतर प्रक्रिया है। हमें अपनी प्रगति का मूल्यांकन करते रहना चाहिए और आवश्यकतानुसार अपने लक्ष्यों और रणनीतियों को समायोजित करना चाहिए।
सतत विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, हमें सभी स्तरों पर – व्यक्तिगत, सामाजिक, और राजनीतिक – मिलकर काम करना होगा।
क्या सतत विकास आवश्यक है?
हाँ, सतत विकास अत्यंत आवश्यक है।
पृथ्वी के संसाधन सीमित हैं। यदि हम उनका अंधाधुंध और अनियंत्रित तरीके से उपयोग करते रहे, तो वे जल्द ही समाप्त हो जाएँगे। इसका मतलब है कि आने वाली पीढ़ियों को इन संसाधनों का लाभ नहीं मिल पाएगा, और उनके जीवन स्तर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
सतत विकास का अर्थ है कि हम अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करते हैं, लेकिन उन्हें भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी सुरक्षित रखते हैं। इसका मतलब है कि हमें अपनी आदतों को बदलने और काम करने के तरीकों में सुधार करने की आवश्यकता है।
सतत विकास के कुछ महत्वपूर्ण पहलू
सतत विकास के लिए हम सभी की भागीदारी महत्वपूर्ण है। हम अपने दैनिक जीवन में छोटे-छोटे बदलाव करके भी इस लक्ष्य को प्राप्त करने में योगदान दे सकते हैं।
- पर्यावरणीय संतुलन: हमें प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और संवर्धन करने की आवश्यकता है।
- आर्थिक विकास: सभी के लिए समृद्धि और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए आर्थिक विकास आवश्यक है।
- सामाजिक न्याय: सभी लोगों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, समानता और न्याय तक पहुँच महत्वपूर्ण है।
यहाँ कुछ उदाहरण दिए गए हैं कि हम कैसे सतत विकास में योगदान कर सकते हैं:
- ऊर्जा और पानी का कुशल उपयोग करें।
- पुनर्चक्रण और खाद बनाना।
- स्थानीय और जैविक उत्पादों का खरीदें।
- सार्वजनिक परिवहन या साइकिल का उपयोग करें।
- पौधे लगाएँ और पेड़ों का संरक्षण करें।
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