रंग भेद भारतीय समाज की प्रमुख समस्या है। त्वचा के रंगों के आधार पर महिलाओं के अस्तित्व पर भेद किया जाता रहा है। विकसित समाज में किसी की त्वचा के रंग के आधार पर व्यक्ति की पहचान नहीं होनी चाहिए। भारतीय समाज में विवाह के पूर्व रिश्ते तय करते लड़कियों को रंग भेद का शिकार होना आम बात है। यह कितनी विडम्बनापूर्ण बात है कि त्वचा के रंग को सौन्दर्य का माध्यम माना जाता है।
दैनिक भास्कर ने महिलाओं में रंग भेद की समस्या को गंभीर सामाजिक विषय मानते हुए इसे दूर करने की पहल की है।
इस पहल के अनुसार, भास्कर समूह ने तय किया है कि अब अखबार में वैवाहिक विज्ञापनों में बेटियों के रंग से संबंधित विवरण जैसे कि कलर कॉम्प्लेक्शन- गोरी, गेहुआं और फेयर जैसे शब्द प्रकाशित नहीं किए जाएंगे।
दैनिक भास्कर ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर और प्रमोटर सुधीर अग्रवाल के संदेश के साथ दैनिक भास्कर के सभी संस्करणों में विशेष संदेश प्रकाशित किया गया है। इस बारे में उन्होंने ट्वीट करके भी कहा है, ‘मुझे भरोसा है कि हम सबका एक छोटा सा प्रयास समाज के निर्माण में एक बड़ा योगदान दे सकता है। आने वाली पीढ़ियों को हम एक स्वस्थ और प्रगतिवादी सोच का वातावरण सौंपें, यही वास्तविक विरासत और असल पूंजी होगी।’
वैवाहिक विज्ञापन में अब ज्यादातर यह काम विज्ञापन, इंटरनेट या मैरिज ब्यूरो द्वारा किया जा रहा है। इन दिनों सभी प्रमुख अखबारों में वैवाहिक विज्ञापनों की अधिकता रहती थी। इन विज्ञापनों में लड़के-लड़कियों के बारे में तमाम विवरण (जैसे-उम्र, रंग, नौकरी व पढ़ाई-लिखाई) दिया रहता है।
समय के साथ हमारे समाज में काफी बदलाव आया है। ऐसे में शादी तय कराने के तौर-तरीके भी काफी बदल गए हैं। पुराने समय में शादी के लिए ज्यादातर पंडित या परिवार के अन्य लोग विवाह योग्य लड़के-लड़कियों की तलाश करते थे और नाई की सहायता से रिश्ते लेकर एक-दूसरे के घर जाया करते थे और रिश्तों की बात करते थे।
लेकिन अब ऐसे वैवाहिक विज्ञापनो में बेटियों का विवरण छापने के विषय में ‘दैनिक भास्कर’ (Dainik Bhaskar) समूह ने एक नई पहल की है।
‘दैनिक भास्कर’ द्वारा किए गए एक ट्वीट के अनुसार, एक प्रगतिशील समाज के लिए हम सबको ऐसे रंगभेद के खिलाफ खड़ा होना होगा। रंग से परे हर बेटी का अपना विशिष्ट व्यक्तित्व व योग्यता होती है। भास्कर की यह सामाजिक पहल जागरूकता के इसी उद्देश्य के साथ की जा रही है।