पहले हुए साक्षर, फिर दुनिया को पढ़ाया खेती का पाठ
भरतपुर। डीग जिले के गांव वाबैन निवासी गोपाल सिंह भले ही खुद साक्षर है, लेकिन अपनी विशेष खेती-किसानी की बदौलत आज वह दूसरों को बेहतर किसानी का पाठ पढ़ा रहे है। गोपाल सिंह ने परम्परागत खेती के बाद नई तकनीक की खेती को अपनाया। इसके बाद उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हुई। उन्होंने पिछले पांच साल में में स्वयं की आय 10 गुना कर ली है। आज वे भरतपुर संभाग के – प्रगतिशील किसानों की सूची में शामिल है।
समृद्ध भारत अभियान के निदेशक सीताराम गुप्ता से नई खेती करने की प्रेरणा लेकर गोपाल सिंह ने मात्र 9 हेक्टेयर भूमि पर नई तकनीक के आधार पर खेती व बागवानी करना शुरू किया और भू-संरक्षण विभाग से अनुदान प्राप्त किया। इस मदद से तालाय का निर्माण कराने के बाद रैन वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर निर्माण भी कराया। इसके जरिए वर्षा जल से भूमिगत जल को उपयोगों किया। उन्होंने बिजली व धन की बचत के लिए बायोगैस संयंत्र लगाए। साथ ही गोबर गैस संयंत्र की गैस से डीजल इंजन चालू कर खेती की।
परम्परागत खेती छोड़ लगाया बगीचा
गोपाल सिंह ने परम्परागत खेती के स्थान पर बेर, अमरुद, नींबू, बेलपत्र एवं आंवला आबि फलदार का बगीचा लगाकर प्रति साल करीब 4 लाख रुपए की आय कर ली। साथ ही सब्जी की पैदावार से प्रति साल 5 लाख रुपए तथा अन्य से करीब 2 लाख रुपए की आय प्राप्त की। साल में कुल वार्षिक आय 11 लाख रुपए हो गई है, जबकि आज से पांच साल पहले मात्र सवा लाख रुपए की आय होती थी।
अनुदान पर लगवाए सौर ऊर्जा लैम्प
गोपाल सिंह ने खेतों पर सौर ऊर्जा लैम्प भी अनुदान पर लगवाए हैं, ताकि रात्रि को रोशनी के अलावा जंगली पशुओं से भी फसलों की सुरक्षा हो सके। बायोगैस संयंत्र से आटा चक्की एवं चारा काटने की मशीन आदि का भी संचालन कर रहे हैं। अब समुद्र भारत अभियान की ओर से गोपाल सिंह को उन्नत किस्मों के फलदार पौधे भी उपलब्ध कराए जाएंगे, ताकि उसे बगीचे में और अधिक आय हो के साथ ही तालाब में मछली पालन करने व वर्षा जल से सिचाई करने जैसे पद्धतियों की जानकारी भी दे रही है।
प्राकृतिक खेती को दिया बढ़ावा, कमा रहे 20 लाख
भरतपुर। सरकारी सेवा में रहते हुए खेती-किसानी के गुर सीखे और अपने 16 बीघा खेत में प्राकृतिक एवं आधुनिक खेती के लिए फॉर्म हाउस बना दिया। आज इसे लोग मिनी कृषि विश्वविद्यालय के नाम से जानने लगे है। यह कर दिखाया है उच्चैन उपखंड क्षेत्र के गांव पना निवासी कमल मीणा ने।
कमल मीणा ने प्राकृतिक व आधुनिक खेती के साथ कृषि व पशु धन पर आधारित व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए फल-फूल, औषधीय, सब्जी, तिलहन एवं अनाज आदि की खेती करना शुरू किया। खुद के साथ कमल ने अन्य किसानों को भी इसके लिए प्रेरित किया। कमल ने 16 वीघा भूमि पर स्वयं का फॉर्म स्थापित कर खेती व थागवानी की। कमल खेती व बागवानी में कीटनाशक दवा व रसायन खाद का उपयोग नहीं करते हैं। इनकी खेती देशी खाद एवं गाय के गोबर से बनी स्वाद पर आधारित है। कमल मीणा ने समृद्ध भारत अभियान के निदेशक सीताराम गुप्ता से प्रेरणा लेकर ये प्राकृतिक खेती व बागवानी अपनाई।
साथ ही गौपालन भी किया। कमल मीणा सरकारी सेवा मैं’ है। सरकारी सेवा के दौरान उन्होंने पंजाब, हरियाणा एवं दक्षिणी राज्यों का भ्रमण किया। उन्होंने वहां देखा कि किसान परम्परागत खेती के स्थान पर अधिक आय देने वाली औषधीय फल-फूल व सब्जियों की खेती कर अधिक मुनाफा कमा रहे है। इसी तर्ज पर उन्होंने अपने खेतों में अधिक आय देने वाली फसलें लगाने का मन बनाया। इसके लिए समृद्ध भारत अभियान संस्था ने तकनीकी जानकारी दी और उन्नत किस्म के फल, फूलदार पौधे तथा खाद्यानों के बीज मुहैया कराए।
कमल ने फॉर्म हाउस के चारों ओर की करीब 8 फुट ऊंची दीवार बनाई, ताकि फॉर्म में लगाई जाने वाली फसले सुरक्षित रह कमल मीणा ने अपनी आय प्रति साल 20 लाख रुपए से अधिक कर ली है। साथ ही पड़ोसी गांव के किसानों के मित्र भी बन गए अब आलम यह है कि देश के एक दर्जन से अधिक प्रान्त के किसान प्रतिदिन फोन पर इनसे खेती की जानकारी प्राप्त करते हैं।
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